यही बात तृणमूल कांग्रेस के अधिकांश नेता कह रहे हैं। लेकिन अहम सवाल यह है सियासी जमीन पर किसने कितनी खेती की है और किसकी बाड़बंदी कितनी मजबूत है। भाजपा हर दांव आजमा रही है।
इन दिनों सियासी चर्चा के केंद्र में पश्चिम बंगाल है। वहां अप्रैल-मई 2021 में विधानसभा चुनाव होना है। विधानसभा का कार्यकाल मई 2021 में खत्म हो रहा है। बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस 10 साल से सत्ता में है। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में मतों के जो समीकरण रहे, उसके हिसाब से तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच मुख्य मुकाबले की संभावना बन रही है। कांग्रेस और वाममोर्चा का खास प्रभाव नहीं बचा है। हालांकि, दोनों दलों ने पिछले चुनाव की तरह गठबंधन किया है।
भाजपा ने बंगाल की जमीन पर वोटों की खेती करने में हर दांव आजमाया है। अपनी बाड़ बचाने के लिए तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपने अंदाज में कमर कसी हुई है। सियासी मैदान में उनका अपना खास अंदाज है, मतदाताओं के बीच उनकी पकड़ बनी हुई है। चुनाव प्रचार के दौरान वे खुद दरवाजे-दरवाजे अभियान में उतर जाती हैं। हाल में भाजपा नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बंगाल दौरे के बाद ममता बनर्जी ने अपना जनसंपर्क तेज कर दिया है।
लोकसभा चुनाव के बाद से ही उन्होंने जिलों के हफ्तावार दौरे करने शुरू कर दिए हैं। कार्यकर्ताओं के साथ उनके सीधे संपर्क का नतीजा है कि हाल में शुभेंदु अधिकारी समेत तृणमूल कांग्रेस के 10 विधायकों और कई प्रमुख नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बावजूद उनके कार्यकर्ताओं का आधार बना हुआ है। मंगलवार को ममता बनर्जी के वीरभूम दौरे में यह स्पष्ट दिखा है।
पश्चिम बंगाल में बीते तीन चुनावों (लोकसभा और पिछले दो विधानसभा चुनाव) के आंकड़ों से स्पष्ट है कि तृणमूल कांग्रेस ने अपना वोट फीसद कमोबेश बरकरार रखा है। तृणमूल को लोकसभा चुनाव में 44.91 फीसद वोट मिले थे और भाजपा को 40.3 फीसद। भाजपा को कुल 2.30 करोड़ वोट मिले, जबकि तृणमूल को 2.47 करोड़ वोट। दूसरी ओर, कांग्रेस पांच फीसद और वाममोर्चा चार फीसद पर सिमट गए।
बंगाल में तृणमूल और भाजपा के बीच सीधी टक्कर की संभावना है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ दो सीटें हासिल की थीं। जबकि, 2019 के चुनावों में उसने 18 सीटें हासिल कीं। लोकसभा चुनाव के हिसाब से भाजपा ने राज्य की 128 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल की, जबकि तृणमूल की बढ़त घटकर सिर्फ 158 सीटों पर रह गई थी।
लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 17 फीसद वोट मिले थे, जो विधानसभा चुनावों में घटकर 10 फीसद पर रह गया था। 294 सदस्यों वाली बंगाल विधानसभा में 2016 में भाजपा ने 291 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे, लेकिन उसे सिर्फ तीन सीटें मिलीं। तब उसे 10.16 फीसद वोट मिले थे। वामो और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़े थे, लेकिन उनका प्रयोग पूरी तरह फेल रहा था। कांग्रेस ने 40 और वामो ने 31 सीटों पर जीत हासिल की थी।
दक्षिण बंगाल में जंगलमहल की आधा दर्जन सीटों पर भाजपा की खास नजर है। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा था, लेकिन मई 2018 में हुए ग्राम पंचायत के चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रही। जंगलमहल इलाके के चार जिले पुरुलिया, पश्चिम मेदिनीपुर, झाड़ग्राम और बांकुड़ा माओवादी हिंसा से प्रभावित रहे हैं।
वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को यहां मिली कामयाबी के पीछे माओवादी समर्थकों की बड़ी भूमिका मानी जाती है। जहां तक उत्तर बंगाल का सवाल है, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर बंगाल में सिर्फ दार्जिलिंग सीट मिली थी, लेकिन मतों के मामले में वह दूसरे स्थान पर रही। 2019 में भाजपा ने वहां की छह सीटों पर दखल जमा लिया।
मुसलिम वोटों में बंटवारे और ध्रुवीकरण से प्रभावित हो सकते हैं समीकरण
बंगाल में 10 ऐसे संसदीय क्षेत्र हैं, जहां मुसलिम मतदाताओं की संख्या 30 फीसद से अधिक है। ये सीटें हैं- रायगंज (47.36 फीसद), मालदह उत्तर (49.73 फीसद), मालदह दक्षिण (53.46 फीसद), जंगीपुर (63.67 फीसद), मुर्शिदाबाद (66 फीसद), बहरामपुर (63.67 फीसद), डॉयमंड हार्बर (33.24 फीसद), वीरभूम (40 फीसद), जयनगर (33.24 फीसद), मथुरापुर (33.24 फीसद), पुरुलिया (30 फीसद)। बंगाल में असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा की है। वह मुसलिम बहुल इलाकों में वोटकटवा पार्टी बन सकती है। ओवैसी के ऐलान से विधानसभा की करीब 60 सीटों पर वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है।