उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड स्थित सूखाग्रस्त जिले बांदा में सरकारी राशन लेने जा रहे दलित की कथित रूप से भूख के कारण रास्ते में ही मौत हो गई। इस मुद्दे को लेकर विपक्षी पार्टियां खासकर भाजपा प्रदेश सरकार पर हमलावर हो गई है। पुलिस सूत्रों ने बुधवार को बताया कि बांदा के ऐला गांव में नाथू नामक व्यक्ति की मंगलवार को मौत हो गई। नाथू की पत्नी मुन्नी देवी के मुताबिक परिवार पिछले चार दिन से भूखा था और उसका पति सरकारी मदद का इंतजार कर रहा था। नाथू सरकारी राशन लेने के लिए घर से निकला। लेकिन भूख की वजह से रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।

हालांकि, जिलाधिकारी योगेश कुमार ने नाथू की मौत भूख के कारण होने के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि नैरनी के उपजिलाधिकारी की जांच रिपोर्ट के मुताबिक इस दलित व्यक्ति की मौत गर्मी के कारण या दिल का दौरा पड़ने से हुई है। कुमार ने कहा कि चूंकि परिजनों ने नाथू के शव का अंतिम संस्कार कर दिया है, इसलिए उसकी मौत के कारण के बारे में दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता।

दूसरी ओर, मुन्नी देवी का आरोप है कि राहत पैकेट काफी देर में पहुंचे और उसके पति की भूख से मौत हो गई। उसका कहना है कि हलके के लेखपाल ने नाथू के शव का जल्द से जल्द अंतिम संस्कार करने का दबाव डाला ताकि उन्हें कोई मुआवजा न मिल सके। साथ ही एक अधिकारी कुछ कागजात पर उसके अंगूठे का निशान लगवाने आया और कहा कि वह अपने घर में अनाज न होने की बात किसी को न बताए। मुख्य सचिव आलोक रंजन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए बांदा के जिलाधिकारी से इस घटना की विस्तृत जांच कर रिपोर्ट 24 घंटे के अंदर पेश करने को कहा है।

इस बीच, भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष केशव मौर्य ने राज्य की अखिलेश सरकार पर सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में राहत उपलब्ध कराने में नाकामी का आरोप लगाते हुए बांदा में दलित की भूख से हुई मौत को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि सपा सरकार ऐसे संवेदनशील मामलों पर जवाबदेही तय करने में नाकाम रही है। राज्य का प्रशासनिक तंत्र सूखा पीड़ित लोगों को राहत राशि वितरित करने के प्रति तनिक भी गंभीर नहीं है। मालूम हो कि प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड व प्रदेश के अन्य सूखाग्रस्त क्षेत्रों में राहत कार्यों की निगरानी के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाया था।