देश को लोकतंत्र का मंदिर एक नए स्वरूप में मिल गया है। नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है। अब कहने को संसद भवन राजधानी दिल्ली में स्थित है, लेकिन इसका असर यहां से 2500 किलोमीटर दूर तमिलनाडु तक पड़ने वाला है। कहने को दक्षिण के इस राज्य से नए संसद भवन के लिए सिर्फ एक सेंगोल लाया गया है, लेकिन राजनीतिक चश्मे से समझें तो ये देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के लिए अवसर का एक नया द्वार है, वो द्वार जो पिछले कई दशकों से बंद पड़ा है, जहां अभी तक तमाम सियासी हथकंडों के बावजूद भी दाल नहीं गल पाई है।
बीजेपी का तमिलनाडु वाला द्वारा कैसे खुलेगा?
अब तमिलनाडु बीजेपी के लिए सियासी रूप से काफी अहम है। पिछले कुछ समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे कार्यक्रम किए हैं, जिनका सीधा कनेक्शन तमिलनाडु से रहा है। शनिवार को ही जब पीएम सेंगोल लेने के लिए राज्य गए थे, उन्होंने जो बयान दिए, वो बताने के लिए काफी रहे कि बीजेपी सियासी फिजा को अपने पक्ष में करना चाहती है। पीएम मोदी ने अधीनम संतों के सामने कहा कि अभी तक सेंगोल को उचित सम्मान नहीं दिया गया था। इसे वॉकिंग स्टिक की तरह इस्तेमाल किया गया, प्रदर्शनी में रख दिया था। जबकि असल में गुलामी के हर प्रतीक से इस सेंगोल ने ही मुक्ति दिलवाई थी। हम अब इस सेंगोल को आनंद भवन से निकालकर लाए हैं। संबोधन में पीएम मोदी ने इस बात पर दुख भी जाहिर किया कि आजादी में तमिल लोगों के महत्व को नहीं समझा गया।
पीएम मोदी के मन में क्या चल रहा?
अब पीएम के इस बयान को दो तरह से देखा जा सकता है। पहला नजरिया तो ये कि जिस सेंगोल को देश के लोग भूल गए थे, या कह सकते हैं उसका ज्यादा जिक्र नहीं करते थे, पीएम मोदी ने अपने एक बयान के जरिए उसकी अहमियत को बताया और उसका तमिलनाडु से कनेक्शन भी जोड़ दिया। यानी कि नए संसद भवन में दक्षिण के इस राज्य की अहम भागीदारी दिखाई गई है। इसी तरह जब पीएम ने ये कहा कि आजादी में तमिल लोगों का अहम योगदान रहा, यहां भी भावनात्मक रिश्ता बनाने का प्रयास हुआ। समझने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पिछले कुछ महीनों में कई बार तमिलनाडु की संस्कृति का जिक्र कर चुके हैं। मन की बात का कार्यक्रम रहे या फिर सरकार का कोई दूसरा प्रोग्राम, पीएम तमिल संस्कृति का जिक्र जरूर कर जाते हैं।
संस्कृति पड़ेगी हिंदुत्व पर भारी!
इसका सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिला जब पिछले साल पीएम मोदी ने वाराणसी में ‘काशी तमिल संगमम’ का उद्घाटन किया। उसका उदेश्य था काशी और तमिलनाडु के प्राचीन संबंधों को समझना और युवा पीढ़ी को दोनों की संस्कृति के बारे में बताना। बड़ी बात ये है कि दसवीं शताब्दी से ही वाराणसी और तमिलनाडु का गहना नाता रहा है। तमिलनाडु में तो कई काशी विश्वनाथ और विशालाक्षी के मंदिर भी हैं। इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा था कि अगर एक तरफ काशी देश की सांस्कृति राजधानी है तो दूसरी तरफ देश की प्राचीनता और गौरव का केंद्र तमिलनाडु रहा है। ये संबंध गंगा-यमुना के संगम जितना पवित्र है। उस कार्यक्रम में पीएम ने तमिल भाषा को ‘महान विरासत’ भी कहा था।
तमिलनाडु की कैसी सियासत, बीजेपी क्यों फेल?
अब एक तरफ बीजेपी हिंदी भाषा को हर जगह तवज्जो देती है, तमिलनाडु में दही जैसे विवाद को भी हवा दे चुकी है, लेकिन बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे पीएम मोदी को ‘न्यूट्रल’की तरह दिखाया जा रहा है। उनकी तरफ से कई मंचों से तमिल भाषा के इतिहास और इसकी खूबसूरती का जिक्र किया जा चुका है। यानी कि पीएम लगातार तमिलनाडु को संदेश दे रहे हैं कि वे उनकी भाषा को भी पसंद करते हैं और उनकी संस्कृति का भी पूरा सम्मान रखते हैं। ये बात मायने इसलिए रखती है क्योंकि विपक्षी दल बीजेपी को ‘हिंदी पट्टी’ पार्टी कहकर सीमित दायरे में रखने का काम करते हैं, इसी वजह से कर्नाटक छोड़कर दक्षिण के दूसरे राज्यों में बीजेपी मजबूत पैठ नहीं जमा पाई है।
लेकिन अब नए संसद भवन के सेंगोल के जरिए, ‘काशी तमिल संगमम’ कार्यक्रम के जरिए, तमिल के बड़े कवियों को याद कर बीजेपी तमिलनाडु में अपनी छवि की रीब्रान्डिंग करना चाहती है। ये रीब्रान्डिंग इसलिए क्योंकि पार्टी कई कारणों की वजह से तमिलनाडु में अपनी सियासत नहीं चमका पाई है। इसका एक कारण ये है कि पार्टी के पास कोई भी बड़ा स्थानीय नेता नहीं है। जब दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां उंगलियों पर एक नहीं कई नेताओं को आगे कर सकती हैं, बीजेपी के पास पीएम मोदी के अलावा कोई दूसरा नेता नजर नहीं आता। इसी तरह तमिलनाडु ने जिस तरह से खद को द्राविडियन विचारधारा से जोड़कर रखा है, उस वजह से बीजेपी के हिंदुत्व वाला नेरेटिव हमेशा कमजोर पड़ा है।
39 सीटों पर कितनी मजबूत हो पाएगी बीजेपी?
ऐसे में अब बीजेपी तमिलनाडु में हिंदुत्व से आगे बढ़ संस्कृति और इमोशनल कार्ड की तरफ बढ़ गई है। जो काम ध्रुवीकरण वाले मुद्दे नहीं कर पाए, वो इतिहास और प्राचीन संस्कृति के सहारे पूरे करने की कोशिश होगी। तमिलनाडु से लोकसभा की 39 सीटें निकलती हैं, बीजेपी यहां पर वर्तमान में तो निल बट्टे सन्नाटा है, लेकिन अब जब जयललिता और करुणानिधि जैसे बड़े दिग्गज नेताओं का निधन हुआ है, एक सियासी वैक्यूम बन गया है। बीजेपी इसी वैक्यूम का इस्तेमाल करना चाहती है। इसी कड़ी में पार्टी अब संस्कृति को अपना नया हथियार बना रही है। तमिलनाडु के लोग धार्मिक से ज्यादा भाषा और संस्कृति के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं, ऐसे में बीजेपी को पूरा भरोसा है कि नए संसद भवन का सेंगोल और पीएम मोदी के तमिल संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम राज्य में पार्टी के लिए सियासी फिजा को बदल देंगे।
इस समय वैसे भी कर्नाटक में मिली करारी हार के बाद से दक्षिण से पूरी तरह अभी बीजेपी का सफाया हो चुका है। वो किसी भी राज्य में सरकार में नहीं है। पार्टी अब इसकी भरपाई लोकसभा चुनाव में करना चाहती है। उसे पता है कि अकेले दक्षिण के राज्यों से 100 से ज्यादा सीटें निकलती हैं, ऐसे में अगर कहीं दूसरी जगह प्रदर्शन कमजोर पड़ा तो इन्हीं राज्यों से भरपाई की जाएगी।