प्याज को लेकर हुए अपने कटु अनुभवों के कारण भाजपा शीर्ष नेतृत्व चिंतित है। उसे आशंका है कि कहीं दो महीने बाद होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में उसे इसके आसमान छू रहे दामों की राजनीतिक कीमत न चुकानी पड़ जाए। मोदी सरकार हर हालत में अगले महीने तक इसके दामों में कमी लाने के लिए जुट गई है। उसकी दिक्कत यह भी है कि संयोग से दामों के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने वाले दोनों ही मंत्रालय बिहार के ही मंत्रियों के पास हैं।
नरेंद्र मोदी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुके बिहार विधानसभा में भाजपा के लिए अब चिंता की वजह लालू-नीतीश गठबंधन न होकर प्याज की आसमान छू रही कीमतें हैं। हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की अध्यक्षता में हुई आला नेताओं की बैठक में प्याज का मुद्दा छाया रहा। एक वरिष्ठ नेता ने तो यहां तक कह दिया कि हमारे लिए असली चुनौती तो प्याज है।
मालूम हो कि केंद्र में कृषि मंत्रालय राधा मोहन सिंह के पास है तो खाद्य मंत्रालय के प्रभारी रामविलास पासवान हैं। चुनाव आयोग कह चुका है कि वह दीपावली से पहले राज्य में विधानसभा चुनाव करवाना चाहता है। इसे देखते हुए अगले डेढ़ माह में उसकी नई फसल आने के पहले कीमतों में कमी ला पाना बहुत मुश्किल नजर आ रहा है। नाफेड को प्याज हासिल कर पाने में सफलता नहीं मिली है और 10 लाख टन प्याज आयात किया जा रहा हैं।
प्याज कभी भी भाजपा के लिए शुभ नहीं रहा। उसे इसके दामों में बढ़ोतरी के कारण अनेक बार बहुत बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी है। जहां कांग्रेस के शासनकाल में उसकी सरकारों के लिए चीनी के बढ़े दाम चुनावों में बहुत घातक साबित हुए वहीं भाजपा के लिए प्याज सिरदर्द बन चुका है। यह उसके लिए इतना अशुभ साबित हुआ कि 1998 में इसके आसमान छूते दामों के कारण ही दिल्ली में सुषमा स्वराज की सरकार सत्ता से बाहर हुई। उसके बाद भाजपा ने दिल्ली में कभी जीत हासिल नहीं की।
तीन बार लगातार कांग्रेस के जीतने के बाद आम आदमी पार्टी ने उसका रास्ता रोक दिया। उसी साल राजस्थान में भी भाजपा को प्याज के कारण सरकार गंवानी पड़ी थी। राजग के 2004 में सत्ता से बाहर होने की तमाम वजहों में से एक वजह प्याज के दाम भी थे। जनता पार्टी की 1980 में हार का बड़ा कारण प्याज की कीमतें भी थीं। तब इंदिरा गांधी ने यह मामला उछाला था कि इस सरकार ने गरीब से उसका प्याज तक छीन लिया।
अहम बात तो यह है कि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा ही प्याज की कीमतों का सबसे ज्यादा राजनीतिक लाभ लेती रही। उसके नेता विजय गोयल ने 25 रुपए किलो प्याज बेचा। पार्टी नेताओं ने प्याज रखने के लिए बैंक लॉकर किराए पर लेने से लेकर दस किलो प्याज की सुरक्षा के लिए शार्प शूटर तक तैनात किए जाने का नाटक किया।
सुषमा स्वराज ने 29 अक्तूबर 2013 को प्याज की कीमतों का जिक्र करते हुए कहा था, ‘शीला दीक्षित ने मेरे खिलाफ प्याज को मुद्दा बनाया था। उन्होंने प्याज की माला पहनी थी। अब प्याज की कीमतें उनकी ही सरकार का सफाया करेंगी। इसे कहते हैं दैवीय न्याय’।