नीरजा चौधरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर विश्वकर्मा योजना का ऐलान किया। उस ऐलान के दौरान उन्होंने कहा कि विश्वकर्मा योजना से कारीगरों को खास फायदा होने वाला है, वहां भी ओबीसी समुदाय को काफी मदद मिलेगी। अब ओबीसी का जिक्र पीएम मोदी ने सिर्फ ऐसे ही नहीं किया है, यहां पर ये समझना जरूरी है कि बीजेपी की नजर इस समय ओबीसी वोटबैंक पर है, उस वोटबैंक पर जिसने 2019 के चुनाव में भी पार्टी के लिए निर्णयाक भूमिका निभाई थी।
उत्तर भारत में जीत के लिए बीजेपी का मंत्र
बीजेपी जानती है कि अगर उसे उत्तर भारत में फिर क्लीन स्वीप करना है तो ओबीसी के अंदर आने वाली कई छोटी जातियों को अपने पाले में लाना होगा। उसने पिछले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसा करके दिखाया भी था, जब लग रहा था कि पश्चिमी यूपी में जाट नाराज चल रहे हैं, किसान आंदोलन का असर पड़ सकता है, बीजेपी को ज्यादा चिंता इस बात की थी कि उसका ओबीसी वोट मजबूती के साथ खड़ा रहे। अब ऐसा हुआ भी और उसी वजह से फिर बंपर जीत मिली।
उस चुनाव का संदेश भी यही था कि बीजेपी को अगर वापसी करनी है तो ओबीसी की निचली उपजातियों पर अपना कब्जा जमाना होगा। असल में यादव, कुर्मी ऐसी जातिया हैं जिन पर लालू, तेजस्वी, अखिलेश और नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ है। ऐसे में बीजेपी के पास लोहार, बरहाई, कहर, नाई और धोबी जैसी उपजातियों को अपने वोटबैंक का हिस्सा बनाना होगा। एक आंकड़ा बताता है कि इन छोटी उपजाति वाले ओबीसी समाज की तादाद 30 फीसदी तक रह सकती है।
नौकरी वाला आरक्षण और चुनावी फायदा
अब ये 30 फीसदी बीजेपी के लिए चुनावी मौसम में गेमचेंजर साबित हो सकते हैं। ये नहीं भूलना चाहिए कि जब देश में मंडल कमिशन लागू किया गया था, तब उसमें आरक्षण दिया जरूर जा रहा था, लेकिन काफी भेदभाव के साथ। ऐसा इसलिए क्योंकि जो ओबीसी की बड़ी वाली उपजातियां थीं उन्हें कुल आरक्षण का 97 प्रतिशत फायदा मिल रहा था, वहीं जो छोटी जातियां थीं, उन्हें नौकरी से लेकर दूसरे क्षेत्र में ज्यादा लाभ नहीं मिला। अब उस वंचित समाज को बीजेपी साधने का काम कर रही है।
इसी कड़ी में साल 2017 में मोदी सरकार ने रोहिणी कमिशन का गठन किया था, तब कहा गया था कि ओबीसी समाज को उपजातियों में बांटा जाए जिससे ये पता चल सके कि आरक्षण का लाभ किसे कितना मिल रहा है। अब इस साल 31 जुलाई कमिशन ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। उसमें क्या लिखा है स्पष्ट नहीं, लेकिन अगर उसे लोकसभा चुनाव से पहले पब्लिक कर दिया जाता है, उसके भी सियासी मायने बड़े निकलेंगे।
विश्वकर्मा योजना और बीजेपी की नई रणनीति
अब रिपोर्ट कब तक सार्वजनिक की जाएगी, ये साफ नहीं, लेकिन बीजेपी ने उससे पहले ही इस समाज का दिल जीतने का काम शुरू कर दिया है। इसी वजह से केंद्र सरकार ने हाल ही में 13 हजार करोड़ की एक योजना को हरी झंडी दिखाई है, सीधे 30 लाख कारीगरों को मदद पहुंचाने की कोशिश है। जोर देकर कहा गया है कि इस समाज को भी आसानी से कर्ज मिल पाएगा, वो अपना काम शुरू कर पाएगा। पार्टी का तर्क है कि सीधा पैसा देकर उन्हें सशक्त किया जाएगा और फिर वो समाज चुनावी मौसम में बीजेपी को ही सबसे बेहतर विकल्प समझेगा।