Amitava Chakraborty
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में साल 2013 की सांप्रदायिक हिंसा का उपकेंद्र रहा कवाल गांव एक बार फिर सुर्खियों में है। दरअसल यहां के विधायक विक्रम सैनी ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को काउंटर करने के लिए 25 पाकिस्तानी शरणार्थी परिवारों को गांव में बसाने की पेशकश की है। अपने दो मंजिला घर के आंगन में बैठे खतौली से विधायक सैनी ने कहा, ‘मैं राष्ट्र हित में ऐसा करना चाहता है। 25 परिवारों में से सात परिवार ऐसे हैं जो पहले से ही मुजफ्फरनगर में रह रहे हैं। मैं पांच बीघा जमीन चाहता हूं जहां इन परिवारों को बसाया जा सके। अगर ऐसी जमीन नहीं मिल रही तो मैं खुद अपनी जमीन दान कर दूंगा। उसमें हम शौचालय के साथ टू-रूप का फ्लैट बनाने की योजना बना रहे हैं।’ सैनी साल 2013 के दंगों के दौरान हत्या की कोशिश के मामले का भी सामना कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि सीएए नियमों को अभी तक लागू नहीं किया गया है, मगर यूपी सरकार ने राज्य में शरणार्थियों की एक अस्थायी सूची तैयार करना शुरू कर दिया है। मुजफ्फरनगर सहित 21 जिलों में सरकार ने कम से कम 32,000 शरणार्थियों की पहचान कर ली है।
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक करीब 10,8000 लोगों के गांव कवाल में ज्यादातर घर ईंट और टाईल के बने हैं। इसी गांव के पंकज सैनी कहते हैं कि सरकार ने शरणार्थियों को आजीविका प्रदान करने के लिए क्या योजना बनाई है? राज्य में अगली हिंसा बेरोजगारी और सरकार की दोषपूर्ण रोजगार सृजन नीतियों के कारण होगी।’ पंकज सैनी पिछले कुछ सालों से शिक्षा मित्र हैं और उन्हें उम्मीद है कि वो एक दिन स्थाई सरकारी शिक्षक के रूप में नियुक्त होंगे।
बता दें कि गांव के आसपास के क्षेत्रों में कोई कारखाना नहीं होने के कारण, कवाल के अधिकांश निवासी मुख्य रूप से गन्ने की खेती में लगे हुए हैं। गांव में आठवीं तक एक सरकारी स्कूल है, जिसके छह कमरों में 360 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। इनमें से भी दो कमरें साल 2013 से सुरक्षाकर्मियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इसके अलावा स्कूल में 9 शिक्षक हैं। इसके अलावा छात्रों को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए करीब छह किलोमीटर दूर जानसठ तहसील जाना पड़ता है। हालांकि कवाल गांव में साक्षरता दर 70.61 फीसदी है जो पूरे प्रदेश की साक्षरता दर (67.68 फीसदी) से ज्यादा है।
