दिल्ली के संसद भवन के पास बनी मस्जिद में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की कथित बैठक को लेकर राजनीतिक विवाद गहराता जा रहा है। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा और उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने इस मामले पर तीखी आपत्ति जताई है। मस्जिद को राजनीति का मंच बनाए जाने को लेकर न सिर्फ धार्मिक भावनाएं आहत होने की बात कही जा रही है, बल्कि सियासी मर्यादाओं को भी तार-तार करने का आरोप लग रहा है।

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने इस मामले को लेकर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि संसद मार्ग पर मौजूद एक पवित्र मस्जिद में सपा की बैठक ने धार्मिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया है। उनका आरोप है कि अखिलेश यादव और डिंपल यादव ने मस्जिद को राजनीतिक गतिविधि के लिए इस्तेमाल कर मुस्लिम समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। सिद्दीकी ने मस्जिद के इमाम मोहिबुल्लाह नदवी पर भी सवाल उठाए, जो खुद समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए हैं। उन्होंने डिंपल यादव के बैठने के तरीके को इस्लामिक परंपराओं के खिलाफ बताते हुए मांग की कि दोनों नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो और कानूनी कार्रवाई की जाए।

जमाल सिद्दीकी ने कहा कि अगर कोई और नेता ऐसा करता तो अब तक बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया होता। उन्होंने तंज कसते हुए पूछा कि खुद को मुसलमानों का रहनुमा कहने वाले असदुद्दीन ओवैसी अब इस मामले में चुप क्यों हैं? भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने ऐलान किया है कि 25 जुलाई को नमाज के बाद एक बैठक की जाएगी, जिसकी शुरुआत राष्ट्रगीत से और समापन राष्ट्रगान से किया जाएगा, ताकि यह संदेश जाए कि धार्मिक स्थलों का राजनीतिक इस्तेमाल अब और बर्दाश्त नहीं होगा।

इस पूरे विवाद पर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के चेयरमैन शादाब शम्स ने भी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि मस्जिदें इबादत की जगह होती हैं, न कि राजनीतिक रणनीतियों की। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव ने मस्जिद में बैठक कर मुस्लिम समाज की आस्था को आहत किया है, जिसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए।

विवाद बढ़ने पर अब समाजवादी पार्टी की ओर से सफाई भी आने लगी है। अखिलेश यादव ने कहा, “आस्था जोड़ती है, लेकिन भाजपा चाहती है कि लोग बंटे रहें। हमारी सभी धर्मों में आस्था है, जबकि भाजपा धर्म को हथियार बनाकर लोगों को गुमराह कर रही है।” वहीं, सपा सांसद डिंपल यादव ने कहा, “वहां कोई बैठक नहीं हुई थी। भाजपा हमेशा जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाना चाहती है। सरकार न तो मतदाता पुनरीक्षण पर बात करना चाहती है, न ही कश्मीर के हालात और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा करना चाहती है।” सपा सांसद राजीव राय ने सवाल उठाते हुए कहा, “क्या अब हमें मंदिर या मस्जिद में जाने के लिए भाजपा से लाइसेंस लेना पड़ेगा?”

दूसरी तरफ, यूपी के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने समाजवादी पार्टी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि सपा हमेशा संविधान का उल्लंघन करती रही है। भारतीय संविधान साफ कहता है कि धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता। लेकिन समाजवादी पार्टी बार-बार आस्था की सीमाओं को लांघती रही है।

यह विवाद अब केवल मस्जिद की मर्यादा का नहीं, बल्कि धर्म और राजनीति की सीमाओं को लेकर बड़ी बहस में बदल चुका है। सियासत और श्रद्धा की यह टकराहट आने वाले दिनों में और तूल पकड़ सकती है।