देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश के चुनाव में अब कुछ ही महीने रह गए हैं। इसके चलते सत्तारूढ़ भाजपा समेत सभी दलों ने अपनी रणनीति बनाने की तैयारियां तेज कर दी हैं। दूसरी तरफ सभी दलों से टिकट पाने के लिए संभावित उम्मीदवार अपनी ओर से जोर-आजमाईश और सिफारिश की कवायद भी बढ़ा दी है। हर सीट पर सभी दलों से कई-कई लोग टिकट पाने की कोशिश में लगे हैं।

इस बीच भाजपा ने टिकट वितरण के लिए एक तय फॉर्मूला बनाया है। उसके तहत ही टिकट देने का फैसला किया है। अगर इस फॉर्मूले को पूरी तरह अपनाया गया तो इस बार 150 से ज्यादा विधायकों का टिकट कटना तय हैं। पार्टी ने तय किया है कि संगठन और सरकार की गतिविधियों में सक्रिय ना रहने वाले विधायकों काे इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा। इसके अलावा 70 वर्ष से अधिक उम्र और गंभीर बीमारी से जूझ रहे विधायकों काे भी टिकट नहीं दिया जाएगा।

सबसे बड़ी बात यह है कि पार्टी ने अपनी ओर से एक सर्वे करवाकर लिस्ट बना ली है। इस लिस्ट में उन विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों के टिकट काटे जाने की सिफारिश की गई है, जिनसे स्थानीय जनता नाराज है। पार्टी का मानना है कि ऐसे लोगों को टिकट देकर जनता के गुस्से का शिकार नहीं बनने देना चाहिए।

भाजपा की चुनावी रणनीति की कमान संभाल रहे सीनियर पदाधिकारियों के मुताबिक इस बार टिकट वितरण में अपेक्षाकृत युवा चेहरों को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही उनकी छवि भी साफ सुथरी होनी चाहिए और अपने क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ और जनता में पहचान भी मापदंड का एक मानक होगा।

इधर, समाजवादी पार्टी में टिकट पाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों ने आवेदन करना शुरू कर दिया है। इसमें डॉक्टर, इंजीनियर, सेवानिवृत्त अधिकारी, पत्रकार, शिक्षक और व्यापारी शामिल हैं। हालांकि पार्टी की ओर से कहा गया है कि टिकट देने से पहले सभी की स्क्रीनिंग की जाएगी। फिर उनकी सियासी हैसियत का भी आकलन होगा। इन सभी परीक्षाओं में पास होने वाले को टिकट दिया जाएगा।

फिलहाल राज्य में दोनों बड़े दलों के राज्य कार्यालयों और बड़े नेताओं के बंगलों पर संभावित प्रत्याशियों की दौड़भाग तेज हो गई है। कई संभावित उम्मीदवार अपना टिकट पक्का करने के लिए बड़े नेताओं के संपर्क में हैं। हालांकि भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह अपने फार्मूले के हिसाब से ही टिकट वितरण करेगी।