लोकसभा में मंगलवार (10 मई) को भाजपा के एक सदस्य ने न्यायपालिका पर आरोप लगाया कि कार्यपालिका और विधायिका की तरह न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है और वह केवल दूसरों को निर्देश देती रहती है। भाजपा के हरीश मीणा ने शून्यकाल में इस विषय को उठाते हुए देश में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन की मांग की ताकि न्यायाधीशों का चयन और कामकाज पारदर्शी हो। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकतर जजों और वकीलों के परिवारों के लोग ही न्यायाधीश बन जाते हैं।
इससे पहले भाजपा के ही अर्जुन राम मेघवाल और उदित राज कुछ मुद्दों पर सदन में न्यायपालिका पर इसी तरह के आरोप लगा चुके हैं। उन्होंने विधायिका और कार्यपालिका के अधिकारों पर ‘अतिक्रमण’ के विषय को भी इसमें रखा। मीणा ने कहा, ‘‘विधायिका जनता के प्रति जवाबदेह है। कार्यपालिका सरकार के प्रति जवाबदेह है। लेकिन न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। भारत में यदि लोग सर्वाधिक किसी चीज से प्रताड़ित हैं तो वह न्यायपालिका की कार्यशैली से।’’
उन्होंने कहा, ‘‘करोड़ों मामले लंबित हैं और एक मामले को निपटाने में 20 साल तक लग जाते हैं जिसमें एक साल लगना चाहिए। वे अपना काम ठीक से नहीं करते बल्कि कार्यपालिका को बताते हैं कि वे क्या करें। विधायिका को बताते हैं कि यह करें और यह नहीं करें।’’
मीणा पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं जो डीजीपी के तौर पर सेवानिवृत्त हुए। वह राजस्थान के दौसा से सांसद हैं। उनके विचार का कई अन्य सदस्यों ने भी समर्थन किया जिनमें अधिकतर सत्तापक्ष के थे।