केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सोमवार (13 सितंबर) को कहा कि “अच्छे दिन” का नारा गले की हड्डी बन गया है। गडकरी ने मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा कि “अच्छे दिन” आने की बात सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कही थी। गडकरी के बयान पर लोगों का हैरान होना वाजिब है। देश में शायद ही किसी को उम्मीद रही हो कि बीजेपी का कोई वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री “अच्छे दिन” का श्रेय भी पूर्व पीएम मनमोहन को दे देगा। बहरहाल, ये नारा जिसने भी सबसे पहले उछाला हो ये मौजूं सवाल ये है कि “अच्छे दिन” को बीजेपी के गले की हड्डी बनाया किसने? मनमोहन सिंह ने? गडकरी भी मानेंगे कि इसका श्रेय पूरी तरह बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। गडकरी शायद भूल गए कि पिछले आम चुनाव में एनडीए को पूर्ण बहुमत दिलाने में “काला धन” और “अच्छे दिन” की अहम भूमिका रही थी।

सत्ता में आने के बाद बीजेपी नेता जिस तरह इन नारों से मुंह फेरते जा रहे हैं उसे कोई अहसान-फरामोशी कह दे क्या गलत होगा। गडकरी से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विदेशों में जमा “काला धन” वापस लाकर “हर एक के खाते में 15 लाख रुपये” जमा करने की बात को “चुनावी जुमला” बता चुके हैं। गडकरी उनसे भी एक कदम आगे बढ़ कर “अच्छे दिन” को “विपक्षी दलों की साजिश” बताना चाह रहे हैं। गडकरी भूल गए कि बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में इस नारे को केंद्र में रख कर कई विज्ञापन बनवाए थे और उनका रियल और डिजिटल वर्ल्ड दोनों में खूब प्रचार किया था। चुनाव में भारी बहुमत हासिल करने के बाद नरेंद्र मोदी का पहला ट्वीट था, “India has won! भारत की विजय। अच्छे दिन आने वाले हैं।” मोदी का ये ट्वीट उस साल के सबसे ज्यादा बार री-ट्वीट किए जाने वाले ट्वीट में शामिल था। अभी तक इसे 84 हजार से अधिक लोग री-ट्वीट और 58 हजार से ज्यादा लाइक कर चुके हैं।

इतना ही नहीं आम चुनाव जीतने के बाद जब पीएम मोदी ने अपनी पहली सार्वजनिक रैली में उपस्थित श्रोताओं को आश्वस्त किया कि “अच्छे दिनों का अब इंतजार नहीं करना। अच्छे दिन आ गए हैं।” उस समय पीएम मोदी को इस बात की उम्मीद नहीं रही होगी कि जिस नारे को वो कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं वही नारा बहुत जल्द उनके ही गले की हड्डी (बकौल नितिन गडकरी) बन जाएगा। गडकरी इस बात से शायद बेहद नाराज हैं कि देश की जनता और विपक्षी नेता उन्हें और उनकी पार्टी को “अच्छे दिन” को भुलाने नहीं दे रही। शायद क्रोधवश ही उन्होंने इशारों में कह दिया कि जनता कभी संतुष्ट नहीं हो सकती। गडकरी ने कहा, “हमारा देश अतृप्त महाआत्माओं का सागर है। जिसके पास साइकिल है वो मोटर साइकिल मांग रहा है। और जिसके पास मोटर साइकिल है वो कार मांग रहा है।”

लेकिन सत्ता में आने के बाद जनता की उम्मीदों का मजाक बनाने के बजाय क्या ये बेहतर नहीं होता कि गडकरी “अच्छे दिन” के नारे के सबसे बड़े लाभार्थी पीएम मोदी से कहते कि वो खुद ही इस गले की हड्डी को निकाल फेंकें। शायर ने पहले ही कहा है, तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना, गरीब जान के…

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