अब इस बात की सिर्फ घोषणा होनी बाकी है कि पंकज चौधरी उत्तर प्रदेश बीजेपी के नए अध्यक्ष होंगे। पंकज चौधरी के अध्यक्ष बनने के बाद पूर्वांचल उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र बन गया है क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पंकज चौधरी दोनों ही पूर्वांचल से आते हैं।

पंकज चौधरी का राजनीतिक सफर ही गोरखपुर नगर निगम से शुरू हुआ है। वह गोरखपुर नगर निगम में उपमहापौर रह चुके हैं।

पंकज चौधरी कुर्मी समुदाय से संबंध रखते हैं और यह उत्तर प्रदेश में यादवों के बाद ओबीसी समुदाय में दूसरा सबसे बड़ा जाति समूह है। तराई, काशी, गोरखपुर, अवध और रुहेलखंड के इलाकों में कुर्मी मतदाताओं का काफी असर है। यह समुदाय देवरिया और कुशीनगर में भी काफी मजबूत है। बीजेपी इससे पहले स्वतंत्र देव सिंह और विनय कटियार जैसे बड़े कुर्मी नेताओं को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बना चुकी है।

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पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का सीधा मतलब यह है कि बीजेपी की कोशिश पूर्वांचल में अपनी ताकत बढ़ाने और गैर यादव ओबीसी वोटों को एकजुट करने की है। महाराजगंज और गोरखपुर एक दूसरे से सटे हुए हैं। गोरखपुर योगी आदित्यनाथ का गढ़ है जबकि महाराजगंज पंकज चौधरी का।

PDA समीकरण पर है अखिलेश का फोकस

अखिलेश यादव 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए PDA के समीकरण पर ही पूरा फोकस कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने PDA का मतलब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक बताया है। पार्टी का दावा है कि उत्तर प्रदेश में PDA की आबादी 85 से 90% तक है।

समाजवादी पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में PDA समीकरण की वजह से बड़ी जीत मिली थी और बीजेपी को बहुत नुकसान हुआ था। यह साफ है कि बीजेपी की कोशिश गैर यादव ओबीसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर समाजवादी पार्टी के PDA फार्मूले में सेंध लगाने की है।

देखना होगा कि बीजपी को इसमें कितनी कामयाबी मिलेगी?

किसी भी चुनाव में जीत के लिए सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल होना बेहद जरूरी है लेकिन मीडिया के हलकों में इस तरह की चर्चा है कि पंकज चौधरी और योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं। हालांकि पंकज चौधरी खुद ही इस तरह की खबरों को गलत बता चुके हैं।

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