पश्चिम बंगाल में आए दिन हो रही हिंसा की घटनाओं पर भाजपा और कांग्रेस की तरफ से राज्य में आर्टिकल 355 लागू करने की मांग हो रही है। वहीं सोमवार को विपक्षी दल के नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा, “बंगाल में हर दिन कुछ न कुछ हो रहा है। केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और यहां हो रही हिंसा को कंट्रोल करने के लिए धारा 356 या 355 का उपयोग करना चाहिए। इतनी खराब हालत देश के अंदर कहीं नहीं है।”

इसके अलावा बीते मार्च में कांग्रेस के अधीर रंजन ने भी बीरभूम हिंसा के बाद पश्चिम बंगाल में आर्टिकल 355 लागू करने की बात कही थी। राष्ट्रपति कोविंद को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा था कि पिछले एक महीने में बंगाल में 26 लोगों की राजनीतिक हत्या हुई हैं। पश्चिम बंगाल की खराब कानून व्यवस्था को संभालने के लिए अनुच्छेद 355 लागू किया जाए।

आर्टिकल 355 क्या है?: बता दें कि केंद्र सरकार का यह दायित्व होता है कि वो किसी राज्य की अंदर की उथलपुथल या फिर बाहरी आक्रमण से रक्षा करे और सुनिश्ति करे कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार चलती रहे। इसके लिए संविधान में केंद्र को कुछ शक्तियां दी गई हैं। इसमें केंद्र राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था को संभालने के लिए दखल देने का अधिकार रखता है।

केंद्र कब दे सकता है दखल: जब राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो और कानून का राज कायम ना हो तो ऐसी स्थिति में केंद्र राज्य की कानून व्यवस्था संभालने के लिए दखल दे सकता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि राज्य की पुलिस व्यवस्था राज्य सरकार के पास होती है और राज्यों के पास इन मामलों पर कानून बनाने की विशेष शक्ति है। लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी भी आ सकती हैं जब राज्य सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और लोगों की सुरक्षा करने में असमर्थ दिखे।

ऐसी स्थिति में केंद्र आर्टिकल 355 लागू कर सकता है। जिसके बाद से राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्र के पास होगी। इसके बाद केंद्र सेना की तैनाती आदि जैसे उपाय कर सकता है। वहीं आर्टिकल 356 लगने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है। यह आपातकाल जैसी स्थिति लागू होता है।