BJP Punjab Municipal Elections 2024: हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज करने वाली बीजेपी के लिए एक और राज्य से खुशखबरी है। यह खुशखबरी हिंदुस्तान के सरहदी सूबे पंजाब से आई है। पंजाब में हाल ही में नगर निकाय के चुनाव हुए हैं और इस चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बीजेपी ने राज्य में अपने पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि पंजाब में पार्टी के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं।

पंजाब में पांच नगर निगम और 43 नगर पालिका परिषदों के लिए हुए चुनाव में अकाली दल और बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा।

निकाय चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बीजेपी ने अर्ध ग्रामीण इलाकों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है और यह निश्चित रूप से तमाम मुसीबतों से जूझ रहे अकाली दल के लिए चिंता का विषय है क्योंकि अकाली दल का जो थोड़ा बहुत आधार बचा है, वह राज्य के ग्रामीण इलाकों में ही है।

हालांकि अकाली दल के कई उम्मीदवारों ने पार्टी के चुनाव चिन्ह के बिना ही निर्दलीय चुनाव लड़ा क्योंकि उन्हें अकाल तख्त द्वारा सुखबीर बादल को दी गई धार्मिक सजा और पार्टी में मची उथल-पुथल के कारण लोगों की नाराजगी का सामना करने का डर था।

Punjab MC Elections Result: क्यों पंजाब में नगर निगम चुनाव परिणाम बताए जा रहे आम आदमी पार्टी के लिए ‘खतरे की घंटी’?

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MC Elections Result: पंजाब में AAP के लिए कैसा रहा निगम चुनाव परिणाम? (X/AAPPunjab)

आप के लिए भी खराब रहे नतीजे

2022 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज करने वाली आम आदमी पार्टी के लिए भी निकाय चुनाव के नतीजे बेहद खराब रहे हैं। पांच में से सिर्फ एक नगर निगम में ही आम आदमी पार्टी को जीत मिली जबकि जालंधर और लुधियाना नगर निगम में वह सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है। यहां तक कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के गृह इलाके संगरूर की नगर पालिका परिषद में भी आम आदमी पार्टी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकी। आम आदमी पार्टी के दो विधायकों की पत्नियों को भी निकाय चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।

अकाली दल से तीन गुना ज्यादा रहा सक्सेस रेट

बहरहाल, अगर पंजाब के पांच नगर निगमों के चुनाव नतीजों को देखें तो लुधियाना, अमृतसर, जालंधर, पटियाला और फगवाड़ा में 368 वार्ड हैं। बीजेपी ने इनमें से 319 वार्डों में चुनाव लड़ा और 55 में जीत दर्ज की। बीजेपी का सक्सेस लेट 17.2% रहा जबकि अकाली दल ने 213 वार्डों में चुनाव लड़कर सिर्फ 11 पर ही जीत दर्ज की और उसका सक्सेस रेट 5.1% रहा।

आंकड़ों को देखें तो पंजाब के सबसे बड़े नगर निगम लुधियाना के 95 वार्डों में से बीजेपी ने 90 वार्डों पर चुनाव लड़ा और 19 पर जीत हासिल की। जालंधर में बीजेपी ने 83 वार्डों में से 19 पर जीत हासिल की, जबकि 2017 में उसने 8 वार्डों पर जीत हासिल की थी। अकाली दल ने जालंधर में 31 वार्डों पर चुनाव लड़ा लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत पाई। मतलब बीजेपी ने वार्डों की सीट दोगुनी की लेकिन अकाली दल खाता तक नहीं खोल पाया।

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Delhi Election: चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। (फेसबुक)

फगवाड़ा नगर निगम में बीजेपी ने 50 में से 37 वार्डों पर चुनाव लड़ा और 4 में जीत हासिल की जबकि अकाली दल ने 9 वार्डों में चुनाव लड़कर 3 पर जीत हासिल की। ​​2015 में अकाली दल-बीजेपी गठबंधन ने यहां 30 वार्डों में जीत दर्ज की थी। तब अकाली दल ने 9 और बीजेपी ने 21 वार्ड जीते थे। अमृतसर नगर निगम में बीजेपी ने 85 में से 84 वार्डों पर चुनाव लड़ा और 9 पर जीत हासिल की, जबकि शिअद ने 69 में से सिर्फ 4 वार्ड जीते।

संगरूर नगर पालिका परिषद में बीजेपी ने 29 में से 3 वार्ड जीते और 4 वार्ड में मामूली अंतर से हार गई। पटियाला की भादसों नगर पंचायत में बीजेपी ने 13 में से 2 सीटें जीतीं।

फिर हारा अकाली दल

पिछले दो विधानसभा चुनाव और इस बार के लोकसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन के बाद से ही अकाली दल में निराशा का माहौल है। अकाली दल के पूर्व अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल अकाल तख्त के द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद धार्मिक सजा काट चुके हैं और उन्होंने निकाय चुनावों में पार्टी के लिए प्रचार नहीं किया। हाल ही में चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में भी अकाली दल ने हिस्सा नहीं लिया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में अकाली दल सिर्फ एक सीट पर चुनाव जीत सका।

2019 में सुखबीर सिंह बादल जिस फिरोजपुर की लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे, वहां भी इस बार अकाली दल को हार मिली है। इससे पता चलता है कि अकाली दल की स्थिति बेहद खराब है।

सुखबीर बादल पार्टी के कई बड़े नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा चुके हैं। ऐसे नेताओं में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर, पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, पूर्व मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा, सिकंदर सिंह मलूका, सुरजीत सिंह रखड़ा, पूर्व विधायक गुरप्रताप सिंह वडाला, सुरिंदर सिंह ठेकेदार और सुखबीर सिंह बादल के राजनीतिक सचिव चरणजीत सिंह बराड़ शामिल हैं। इन सभी नेताओं ने सुखबीर के खिलाफ लगातार मोर्चा खोला हुआ है।

क्या साथ आएंगे बीजेपी-अकाली दल?

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पिछले महीने जब बयान दिया था कि अकाली दल को फिर से खड़ा करने की जरूरत है तो यह सवाल उठा था कि क्या पंजाब में बीजेपी और अकाली दल फिर से साथ आ सकते हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी के उभार के बाद से ही अकाली दल को जबरदस्त नुकसान हुआ है और ताजा हालात में ऐसा नहीं लगता कि अकाली दल बिना किसी राजनीतिक सहारे के फिर से पंजाब में खड़ा हो सकता है। उसका कमजोर होता जनाधार बीजेपी के लिए सुनहरा मौका साबित हो रहा है।

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा लेकिन अकाली दल का वोट शेयर लगातार गिरता जा रहा है। पंजाब में बीजेपी और अकाली दल लंबे वक्त तक साथ रहे और दोनों ही दलों ने 2007 से 2017 तक इस सूबे में सरकार भी चलाई लेकिन 2020 में मोदी सरकार के द्वारा लाए गए कृषि कानूनों की वजह से यह गठबंधन टूट गया।

बीजेपी ने पंजाब में सभी 13 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था हालांकि वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी लेकिन पार्टी का वोट शेयर 2019 के चुनाव में 9.63% से बढ़कर 2024 में 18.56% हो गया था। 

गिरता गया अकाली दल का वोट शेयर

सालअकाली दल को मिले वोट (प्रतिशत में)
2012 विधानसभा चुनाव34.73%
2014 लोकसभा चुनाव 26.4%
2017 विधानसभा चुनाव25.4%
2019 लोकसभा चुनाव 27.45%
2022 विधानसभा चुनाव18.38%
2024 लोकसभा चुनाव 13.42%

2 साल बाद होने हैं विधानसभा चुनाव

पंजाब में फरवरी, 2027 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव में 2 साल का वक्त बचा है। बीजेपी पंजाब में बड़ी राजनीतिक ताकत बनने की कोशिश कर रही है। हालांकि उसके पास पंजाब में कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है, जो वहां पार्टी को खड़ा कर सके। पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिख समुदाय के साथ नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की है।

लेकिन मुश्किल यह है कि पंजाब में पार्टी के भीतर हालात ठीक नहीं हैं। प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कुछ महीने पहले पार्टी हाईकमान को अपना इस्तीफा भेज दिया था और अभी तक हाईकमान इस मामले में कोई फैसला नहीं ले सका है। सुनील जाखड़ सक्रिय राजनीति से दूर हैं और पार्टी के कार्यक्रमों में भी उनकी मौजूदगी नहीं दिखाई देती। पंजाब में चल रहा किसान आंदोलन भी वहां बीजेपी के लिए एक चुनौती है।

इसके बावजूद भी लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन और अब निकाय चुनावों में अकाली दल को पीछे छोड़ने से बीजेपी ने यह संकेत दे दिया है कि वह राज्य में अगर मजबूती से काम करे तो 2027 के चुनाव में कुछ सीटें जीत सकती है।