निर्देश निधि

असम में बोरेल पहाड़ियों के बीच रहस्यों से भरी जतिंगा घाटी है। यहां अनेक पक्षी आत्महत्या कर लेते हैं। इसे लेकर दुनिया भर के पक्षी व्यवहार विशेषज्ञों में हैरानी है। विशेषज्ञों के अनुसार कुछ और भी कारण हो सकते हैं, जिनकी वजह से यहां पक्षियों की मृत्यु हो जाती है। घाटी में किसी प्रकार का चुंबकीय दबाव हो सकता है, क्योंकि उस जगह आकर चिड़ियों की उड़ान की गति बहुत तीव्र हो जाती है और वे अपना संतुलन खोकर किसी इमारत या वृक्ष आदि से टकरा जाती और अपने प्राण गंवा बैठती हैं।

ये घटनाएं सितंबर से नवंबर माह तक अधिक घटती हैं। सर्वाधिक अक्तूबर माह में। इन घटनाओं का समय भी संध्या के सात बजे से रात दस बजे तक लगभग निश्चित है। यहां लगभग चालीस प्रजातियों के पक्षी आत्महत्या करते हैं। विशेषज्ञ यह नहीं समझ पाए हैं कि आखिर पक्षी रात में उड़ान भरते ही क्यों हैं। जतिंगा में घने कोहरे वाला मौसम भी पक्षियों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार माना जाता है। कोहरे के कारण उनकी दृष्टि बाधित हो जाती है। साथ ही तेज हवा पक्षियों को दूर तक, तेजी से उड़ा कर ले जाती है।

सबसे पहले इन घटनाओं को सन 1900 में नागा साधुओं ने देखा। वे इस स्थान को शापित मानकर वहां से भाग गए। पर 1905 में वहां जयंतिया लोग बस गए और उन्होंने रहस्यमय रूप से मरने वाले इन पक्षियों को शाप नहीं, आशीर्वाद के रूप में लिया और उनका मांस खाने लगे। वे लाठी-डंडों से खुद भी पक्षियों को मारने लगे। जतिंगा में जागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष जतिंगा उत्सव मनाया जाता है, ताकि वहां अंधविश्वास पर रोक लगाई जा सके। कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के हस्तक्षेप से इस प्रथा में कमी आई है।

बीस-तीस वर्ष पहले एक ही रात में लगभग एक हजार पक्षी यहां अपनी जान दे देते थे। ये घटनाएं घाटी की मात्र डेढ़ किलोमीटर लंबी और दो सौ मीटर चौड़ी एक पट्टी में ही मुख्य रूप से घटती हैं। यह भी देखा गया कि शिकारी जानबूझकर प्रकाश कर देते हैं, ताकि पक्षी प्रकाश की ओर आकर्षित होकर उधर उड़ें और टकराकर मर जाएं।

1957 में एक ब्रिटिश चाय बागान मालिक और पक्षी विज्ञानी ईपी जी को जब इस घटना का पता चला, तो वे जतिंगा घाटी गए और स्थानीय लोगों से जानकारी एकत्र की। 1957 में उनकी ‘द वाइल्ड लाइफ आफ इंडिया’ पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने माना कि ऐसी घटना केवल भारत की जतिंगा घाटी में होती है। खासकर तब, जब कोहरा हो, हल्की बारिश, धुंध और अंधेरी रात हो।

महत्त्वपूर्ण बात है कि पक्षी टार्च या कार की रोशनी के आगे नहीं आते, बल्कि वे हल्के और चमकदार प्रकाश पर आते हैं। 1977 में भारतीय प्राणि सर्वेक्षण के ‘बर्ड एक्टिविटी’ विशेषज्ञ डाक्टर सुधीर सेन गुप्ता ने दुनिया भर के पक्षी विज्ञानियों को पत्र लिखकर इस घटना के बारे में बताया और उनसे राय मांगी। सबने यही कहा कि ऐसी घटनाएं दुनिया में कहीं और नहीं होतीं।

‘बर्डमैन आफ असम’ नाम से प्रसिद्ध सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी अनवारुद्दीन चौधरी जतिंगा की भौगोलिक स्थिति बताते हुए कहते हैं कि ‘जतिंगा समुद्र तल से दो सौ मीटर ऊपर है। इसके चारों तरफ हजार-दो हजार मीटर ऊंची पहाड़ियां हैं। वे अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि खाने के लिए दूर निकल गए पक्षी जब लौटते हैं तो उनमें से छोटे और बीमार पक्षी मृत्यु का ग्रास बन जाते हैं। डाक्टर चौधरी लिखते हैं कि मलेशिया और फिलिपींस में भी ऐसे कुछ स्थान पाए गए हैं, जहां झुंड के झुंड पक्षी एक साथ मर जाते हैं। अनेक विशेषज्ञ पंछियों के मरने के कारण तो बताते हैं, पर उस स्थान पर चिड़ियां रात में उड़ान क्यों भरती हैं, यह अभी तक नहीं बता सके हैं।

आज संसार भर में रात को किया जाने वाला तेज प्रकाश भी चिड़ियों की जान लेने का बड़ा कारण है। रात को प्रकाश के कारण चिड़ियों को दिन का भ्रम हो जाता है और वे उनकी ओर उड़ती हैं, फिर टकराकर गिरकर मर जाती हैं। धरती पर चिड़ियों, विशेषकर गौरैया का होना कितना आवश्यक है इसका अंदाजा पड़ोसी देश चीन में घटी एक घटना से लगाया जा सकता है।

1958 से 1962 के दौरान माओत्से तुंग को अधिकारियों ने बताया कि गौरैया के कारण फसल को हानि होती है। वह बोया हुआ बीज तक खा लेती है और जो थोड़ा-बहुत अनाज उगता है उसका भी बड़ा हिस्सा खा जाती है। तब माओत्से तुंग ने ‘ग्रेट स्पैरो कैंपेन’ चलाया। तीस लाख लोगों की बड़ी फौज तैयार कर दी गई गौरैया को निपटाने के लिए। गौरैया पंद्रह मिनट से अधिक निरंतर उड़ान नहीं भर सकती।

लोग शोर मचा-मचा कर उन्हें तब तक उड़ाते रहते जब तक वे थक कर गिर नहीं पड़तीं, फिर उन्हें मार दिया जाता या वे डर और थकान से खुद ही मर जातीं। चीन में मात्र दो वर्षों में गौरैया की संख्या न के बराबर रह गई। पर गौरैया का अंत चीन में भयानक त्रासदी लेकर आया। जिन कीटों को गौरैया खाती थी उन्होंने फसलों पर धावा बोल दिया, खासकर टिड्डों ने। चीन में भयंकर अकाल पड़ा। तब चीन को रूस आदि देशों से गौरैया का आयात करना पड़ा। पारिस्थितिकी तंत्र को सुचारु रूप से चलाए रखने या जीवन को बचाए रखने के लिए पक्षियों का बहुत महत्त्व है और हर हाल में उनकी रक्षा की जानी चाहिए।