बिहार के मुस्लिम बहुल जिले किशनगंज के कोचाधामन विधानसभा क्षेत्र में पिपला चौक। एक सफेद स्कॉर्पियो आकर खड़ी हुई। गाड़ी पर भाजपा का झंडा लहरा रहा था। 38 साल के अब्दुल रहमान गाड़ी से बाहर निकले। रहमान बिहार में भाजपा के दो मुस्लिम उम्मीदवारों में से एक हैं। सीमांचल इलाके के वह इकलौते मुस्लिम भाजपा उम्मीदवार हैं। किशनगंज में 70 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। इनमें से ज्यादातर की राय यही है कि रहमान का भाजपाई झंडा थामना ईशनिंदा जैसा है। खास कर तब जब असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी यह प्रचार कर रही है कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा भाजपा को फायदा पहुंचाएगी।
रहमान कहते हैं, ‘मैं जहां भी जाता हूं, लोग मुझे रुला देते हैं। वे मेरी कॉलर पकड़ कर मेरे ऊपर सवालों की बौछार कर देते हैं। यहां तक कि मेरे पिता भी कई सवाल पूछते हैं। यह (भाजपा में जाना) बहुत बड़ा फैसला था। चुनौतियों से भरा हुआ।’
चौक पर चाय की दुकान पर ढेर सारे लोग जमा थे। वे बातें सुन रहे थे। रहमान कह रहे थे, ‘लोग नहीं समझते थे। पर अब मुझे लगता है कि वे मेरी बातों पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। पिछले साल भाजपा में जाने के बाद से ही मैं लगातार इसकी वजह बताता रहा हूं। मैं पक्का मुसलमान हूं। भाजपा या नरेंद्र मोदी से नहीं डरता। मैं जेडीयू या आरजेडी से नहीं डरता। मैं केवल अल्ला से डरता हूं। मैं विकास चाहता हूं। खास कर किशनगंज के मुस्लिम बेल्ट में।’
रहमान कोचाधामन से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां कांटे की टक्कर है। उनके खिलाफ महागठबंधन की ओर से मुजाहिद आलम और ओवैसी की एआईएमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरउल इमान खड़े हैं। ये दोनों बहुसंख्यक सुरजापुरी मुसलमान हैं। रहमान शेरशाहबादी मुसलमान है। यहां मुस्लिमों में शेरशाहबादियों की आबादी 20 फीसदी है।
कोचाधामन में सुरजापुरी और शेरशाहबादी मुसलमान आपस में बंटी हुई हैं। और शायद यही वजह है कि भाजपा ने रहमान को उम्मीदवार बनाया है। उसे उम्मीद है कि अख्तरउल इमान महागठबंधन का वोट काटेंगे। वह बोलेने में माहिर हैं और इलाके में उनकी लोकप्रियता भी है। कुछ खास वर्ग में ओवैसी की अपील का असर भी उनके हक में जा सकता है। भाजपा को शेरशाहबादियों और हिंदू अल्पसंख्यकों से उम्मीदें हैं। हालांकि, जमीनी हकीकत इतनी सुलझी हुई नहीं दिखती। 2010 में आरजेडी के टिकट पर जीतने वाले इमान कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हैं। वह अपने भाषणों में भी कहते हैं, ‘अब्दुल रहमान हमारा भाई है। हमें नुकसान पहुंचाने के लिए दुश्मनों ने उसे अगवा कर लिया है। हमें उसे बचाने की जरूरत है।’
भाजपा में शामिल होने की वजह बताते हुए रहमान कहते हैं, ‘मुसलमानों से सालों तक धोखा करने वालों के खिलाफ मैंने बगावत की है। अगर मैंने नहीं की होती तो मेरे जैसा कोई दूसरा ऐसे लोगों का वर्चस्व तोड़ने के लिए आगे आता। ये लोग लगातार चुनाव जीतते रहे हैं, लेकिन लोगों के लिए इन्होंने कुछ नहीं किया।’ उन्होंने सबसे बड़ा कारण बताया, ‘किशनगंज की जनता ने हमेशा भाजपा के खिलाफ वोट दिया है और बदलें में लोगों को झूठी उम्मीदें मिलीं कि मुसलमानों का भला होगा। लेकिन जब सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट सामने आई तब हमें मालूम चला कि मुसलमानों की हालत तो दलितों और महादलितों से भी बदतर है। मेरा सवाल है कि जब बिहार में भाजपा कभी नहीं जीती है, फिर भी यहां मुसलमानों की हालत ऐसी क्यों है?’
पांच बच्चों के पिता रहमान राजनीति में आने से पहले कपड़े की दुकान चलाते थे। उन्होंने बताया, ‘अब मैं दीनी (धार्मिक) पब्लिक स्कूल चलाता हूं। भाजपा में आने से पहले मैं कांग्रेस का ब्लॉक प्रमुख था। कांग्रेस में रहते हुए कुछ करने का मौका मिलना संभव नहीं था।’ बीफ विवाद पर रहमान ने कहा, ‘मेरा मजहब मुझे इसे खाने की इजाजत देता है। मैं इसे खाऊंगा। कोई मुझे रोक नहीं सकता। बिहार चुनाव होते ही बीफ विवाद भी खत्म हो जाएगा। सब राजनीति है।’
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