Bihar Rupauli: बिहार के रूपौली विधानसभा उपचुनाव में आरजेडी की करारी शिकस्त हुई है। यहां पर निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह पहले नंबर पर रहे और जेडीयू के उम्मीदवार कलाधर मंडर दूसरे नंबर पर रहे। आरजेडी की उम्मीदवार बीमा भारती को तीसरा स्थान हासिल हुआ। इसने एक बार फिर से दिखा दिया कि पार्टी ईबीसी को लुभाने में कामयाब नहीं रही है। यह एक ऐसा कारण है जिसने पार्टी को लोकसभा इलेक्शन में भी नुकसान पहुंचाया था।

बिहार विधानसभा का चुनाव अगले साल अक्टूबर में होना है। मुख्य विपक्षी दल के लिए काम अब आसान नजर नहीं आता है। रूपौली उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जीत दर्ज की है। उन्होंने सत्तारूढ़ जेडीयू के कलाधर प्रसाद मंडल को 8000 से ज्यादा वोटों से करारी शिकस्त दी है। पूर्व मंत्री बीमा भारती जेडीयू के टिकट पर तीन बार जीत चुकी थी। हालांकि, इस बार आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ने पर वह करीब 37,000 वोटों से हार गईं। सिंह जहां ऊंची जाति के राजपूत नेता हैं, वहीं मंडल और भारती दोनों ही गंगोटा समुदाय से हैं। यह राज्य में ईबीसी में शामिल हैं।

बीमा भारती को रूपौली विधानसभा उपचुनाव में मिली करारी हार

बता दें कि बीमा भारती लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू का साथ छोड़कर आरजेडी में शामिल हो गई थीं और पूर्णिया संसदीय सीट से आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं, लेकिन उन्हें एक निर्दलीय राजेश रंजन उर्फ ​​पप्पू यादव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। भारती को पप्पू यादव के 5.67 लाख वोटों के मुकाबले केवल 27,000 वोट मिले थे। यहां भी जेडीयू दूसरे ही नंबर पर रही और 23 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हार गई।

ईबीसी का प्रभाव ज्यादा

पूर्णिया लोकसभा सीट का हिस्सा रही रूपौली विधानसभा सीट पर ईबीसी का काफी ज्यादा असर है। यह कुल वोटर्स का 25 फीसदी से ज्यादा है। वहीं, राजपूत केवल 7 फीसदी ही हैं। बिहार के एक जेडीयू नेता ने कहा कि यह तथ्य कि आरजेडी के ईबीसी उम्मीदवार को एक ही क्षेत्र में दो बार करारी हार का सामना करना पड़ा है। यह इस बात का सबूत है कि ईबीसी नीतीश कुमार पर अपना भरोसा बनाए हुए हैं।

जेडीयू नेता ने यह भी कहा कि यह वे नीतीश हैं जिन्होंने जाति सर्वे को आगे बढ़ाया है। इस जाति सर्वे में ही पता चला कि ईबीसी ही राज्य का सबसे बड़ी जातियों का ग्रुप है। इसी के हिसाब से राज्य में उनके लिए आरक्षण बढ़ाया गया। उन्होंने यह भी कहा कि हम एक निर्दलीय उम्मीदवार से हार गए हैं, लेकिन आरजेडी मुकाबले में भी नहीं है। राज्य के एक वरिष्ठ आरजेडी नेता ने इस बात को मान लिया और कहा कि लोकसभा इलेक्शन में ही माहौल तय हो गया था।

हमने लोकसभा इलेक्शन में दो ईबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। दोनों को हार का मुंह देखना पड़ा। हमने यादवों और मुसलमानों के अपने पारंपरिक वोट बेस पर बहुत फोकस किया और समुदाय को तीन टिकट देकर कुशवाहा को जोड़ने की कोशिश की। इससे शायद ईबीसी के वोटर्स पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। बिहार की जनसंख्या में ईबीसी की हिस्सेदारी करीब 36 फीसदी है। वहीं कुशवाहों की हिस्सेदारी केवल 4 फीसदी ही है।

लोकसभा इलेक्शन में आरजेडी ने पूर्णिया, सुपौल और मुंगेर में तीन ईबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। पार्टी की उम्मीदवार अनीता देवी महतो को स्थानीय लोगों में कुर्मी चेहरा माना जाता था। अशोक महतो ने उनको मैदान में उतारा था। अशोक महतो एक गैंगस्टर हैं और उन्होंने अनीता से चुनाव से ठीक पहले शादी की थी।

वीआईपी पार्टी ईबीसी वोट बैंक को अपनी तरफ नहीं खींच पाई

आरजेडी नेता के मुताबिक, पार्टी ने सहयोगी वीआईपी पर दांव लगाया। इससे यह उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में ईबीसी वोटों को अपनी तरफ खींच पाएगी। लेकिन यह दांव सफल नहीं हुआ। सूत्रों ने कहा कि मुकेश साहनी के नेतृत्व वाली वीआईपी मल्लाह वोटों के केवलर एक ही हिस्से को आरजेडी की तरफ ला पाई। आरजेडी नेता ने यह भी साफ किया कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी को अपना सामाजिक आधार बढ़ाना होगा।

पप्पू यादव भी एक वजह

सूत्रों के मुताबिक, जातीय गणित के अलावा रूपौली उपचुनाव में एक अहम कारण पप्पू यादव भी थे। कांग्रेस पार्टी में होने के बाद भी पूर्णिया के इस कद्दावर नेता और सांसद के पिछले कुछ समय से आरजेडी के साथ में संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। पप्पू यादव ने पहले भी आरजेडी के परिवारवाद की राजनीति की आलोचना की थी। आरजेडी के आलाकमान ने पूर्णिया से कांग्रेस का टिकट दिए जाने का कड़ा विरोध किया था। आरजेडी ने इस सीट से बीमा भारती को मैदान में उतारा और पप्पू यादव को मजबूरन निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ना पड़ा और जीत भी हासिल की। रूपौली उपचुनाव में पप्पू यादव का आरजेडी उम्मीदवार को समर्थन बहुत ज्यादा अच्छा नहीं था।

लोकसभा इलेक्शन में सत्तारूढ़ एनडीए ने 40 में से 30 सीटें जीतकर बिहार में अपना दबदबा बनाए रखा। भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू ने 12-12 सीटें जीतीं और एलजेपी को पांच सीटें मिली। वहीं, इंडिया अलायंस को कुल 9 ही सीटें मिलीं। इसमें आरजेडी को 4 और कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं। वहीं, सीपीआई (ML) को दो सीटें मिलीं।