रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा में विवाद जारी है। सोमवार को पशुपति पारस ने मीडिया से बात कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी। उसके कुछ ही देर बाद रामविलास पासवान के पुत्र और लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान पशुपति पारस के घर पहुंचे लेकिन उनकी मुलाकात पशुपति पारस से नहीं हो पायी। एक घंटे तक इंतजार करने के बाद भी उनकी मुलाकात नहीं हो पायी। इधर पशुपति कुमार पारस को सर्वसम्मति से लोकसभा में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) संसदीय दल का नेता चुन लिया गया है।
जानकारी के अनुसार चिराग पासवान खुद गाड़ी चलाकर चाचा के घर पहुंचे थे। चिराग पासवान करीब 10 मिनट तक हॉर्न बजाते रहे जिसके बाद किसी ने उनका दरवाजा खोला। राजनीतिक जानकारों और विश्लेषकों के मुताबिक, यह मामला सिर्फ राजनीतिक नहीं है, बल्कि बेहद निजी और पारिवारिक है। कहा जाता है कि रामविलास पासवान जब अस्पताल में भर्ती थे, तभी से उनकी चाचा से नहीं बनती थी। पारस भी अपने भतीजे के फैसलों से तब असहमत थे।
#BREAKING : अपने चाचा पशुपति पारस से मिलने उनके घर पहुंचे LJP नेता चिराग पासवान#ChiragPaswan #Bihar @callkundan pic.twitter.com/MlI0oyf0Co
— News24 (@news24tvchannel) June 14, 2021
गौरतलब है कि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में दरार पड़ गए हैं। पार्टी के छह लोकसभा सदस्यों में से पांच ने चिराग पासवान को संसद के निचले सदन में पार्टी के नेता के पद से हटाने और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को इस पद पर चुनने के लिए हाथ मिला लिया है। असंतुष्ट सांसदों में प्रिंस राज, चंदन सिंह, वीना देवी और महबूब अली कैसर शामिल हैं, जो चिराग के काम करने के तरीके से नाखुश हैं। 2020 में पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद कार्यभार संभालने वाले चिराग अब पार्टी में अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं।
बिहार के हाजीपुर से लोकसभा सांसद पशुपति कुमार पारस ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी बिखर रही थी कुछ असामाजिक तत्वों ने हमारी पार्टी में सेंध डाला और 99% कार्यकर्ताओं के भावना की अनदेखी करके गठबंधन को तोड़ दिया। मैं अकेला महसूस कर रहा हूं। पार्टी की बागडोर जिनके हांथ में गई। पार्टी के 99% कार्यकर्ता, सांसद, विधायक और समर्थक सभी की इच्छा थी कि हम 2014 में NDA गठबंधन का हिस्सा बनें और इस बार के विधानसभा चुनाव में भी हिस्सा बने रहें।
नियमों अनुसार अगर किसी भी राजनीतिक दल की संसदीय पार्टी में दो-तिहाई सदस्य अलग होकर गुट बनाते हैं तो वो दल-बदल के दायरे में नहीं आते हैं। ये दो तिहाई सांसद किसी अन्य पार्टी में विलय कर सकते हैं।