बिहार के लगभग 77,895 बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) इन दिनों चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के तहत दिन-रात जुटे हैं। 25 जुलाई तक अपने-अपने बूथों के सभी मतदाताओं के फार्म और दस्तावेज़ अपलोड करने की समयसीमा ने उनकी नींद छीन ली है। लेकिन इंटरनेट की धीमी रफ्तार और ऐप की तकनीकी दिक्कतें उन्हें रोज नई चुनौती देती हैं। दक्षिण बिहार के एक जिले में कार्यरत 49 वर्षीय मिडिल स्कूल शिक्षक और बीएलओ की दास्तान इस पूरी व्यवस्था की जमीनी सच्चाई बयां करती है।
वहां नेटवर्क के लिए पहाड़ चढ़ने की सलाह दी जाती है और फील्डवर्क से ज्यादा दबाव अपलोडिंग का है। इस मुश्किल काम को समझने और यह जानने के लिए कि इससे जुड़े लोग कितनी परेशानियां झेल रहे हैं, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक बीएलओ का पूरा दिन और उसकी रात का हाल करीब से देखा।
बीएलओ सुबह गांव-गांव जाकर गणना फॉर्म बांटते हैं और फिर देर रात तक अपलोड करते हैं
बीएलओ सुबह से गांव-गांव जाकर गणना फॉर्म बांटते हैं और फिर देर रात तक उन फॉर्मों को ऐप पर अपलोड करने में जुटे रहते हैं। किसी दिन उन्हें 60 फार्म और संबंधित दस्तावेज अपलोड करने होते हैं, जिनमें से अधिकतर अधूरे होते हैं। चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार, 1 जुलाई 1987 के बाद जन्मे लोगों को नागरिकता साबित करने के लिए माता-पिता के दस्तावेज भी देने होते हैं, पर आधार, पैन या मौजूदा वोटर ID इसमें स्वीकार्य नहीं हैं। इससे ज़्यादातर लोगों के फॉर्म अधूरे रह जाते हैं। बीएलओ बताते हैं कि वह 1,200 मतदाताओं वाले बूथ में अभी तक केवल 50 ही फॉर्म अपलोड कर पाए हैं।
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इस बीच नियमों में बार-बार हुए बदलावों ने बीएलओ को असमंजस में डाल दिया है। पहले 2003 की सूची में नाम होने पर भी दस्तावेज मांगे गए, फिर इनसे छूट दी गई। हाल ही में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि दस्तावेज़ बाद में भी दिए जा सकते हैं, लेकिन इसके कुछ घंटों बाद ही फिर कहा गया कि 24 जून के निर्देश ही मान्य होंगे। इससे जमीन पर काम कर रहे बीएलओ के लिए तय करना मुश्किल हो गया है कि किस नियम का पालन करें। ब्लॉक स्तर से भी कभी-कभी दबाव आता है कि बिना दस्तावेज़ के फॉर्म अपलोड कर दिए जाएं। ऐसे में बीएलओ को फार्म भरवाने से ज़्यादा चिंता अब यह है कि काम समय पर कैसे पूरा हो।
बीएलओ की दिनचर्या सुबह सत्तू से शुरू होकर देर रात तक ऐप से जूझने में बीतती है। थायरॉइड जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद वे लगातार 10 से 16 घंटे काम कर रहे हैं। बीएलओ कहते हैं, “हम सलाह नहीं दे सकते, लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि ऐसा अभियान चुनाव के साल में न चलाया जाए। दस्तावेज जमा करने के लिए नागरिकों को पर्याप्त समय मिलना चाहिए, और वोटर कार्ड को आधार से लिंक किया जाए ताकि दोहराव रोका जा सके।” हालांकि मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान में लगे बीएलओ शाम की चाय के साथ भले ही मुस्कुराते हैं, पर उनके चेहरे की थकान साफ झलकती है, क्योंकि उन्हें अभी और फार्म अपलोड करने हैं।