भारत पिछले एक साल से कोरोना संकट से जूझ रहा है। इस बीच कोविड के साथ-साथ लोगों के सामने नौकरी को लेकर भी चिंता है। टेलीग्राफ की खबर के अनुसार केंद्र सरकार ने 2020-2021 में पिछले साल की तुलना में 31 हजार कम नौकरी दी है। जिसे लेकर लोगों में आक्रोश है। उनका कहना है कि केवल कमाई के लिए सरकार की तरफ से फॉर्म निकाले जाते हैं।
खबर में सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए भर्ती की घटती संख्या के पीछे नकदी संकट का अहम योगदान है। देश की कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण सरकार की तरफ से निजी संस्थाओं को कम दरों पर काम की आउटसोर्सिंग, पदों की संख्या में कमी, बड़े पैमाने पर निजीकरण और सार्वजनिक उपक्रमों को बंद करने की तरफ कदम बढ़ाने के लिए मजबूर किया है। महामारी के कारण परीक्षाओं का संचालन नहीं हो पाया।
इलाहाबाद के एक बेरोजगार युवक अजीत सोनकर ने कहा कि वह हैरान नहीं हैं। ‘यह सरकार राजस्व अर्जित करने के लिए भर्ती परीक्षाओं का उपयोग कर रही है। नौकरी देने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।’ उन्होंने कहा कि हमारा उदाहरण आप देख सकते हैं। मेरे जैसे लगभग 20 लाख छात्रों ने दिसंबर 2019 में केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग की संयुक्त उच्चतर माध्यमिक स्तर की परीक्षा के लिए आवेदन किया था। हमने एक साल पहले वस्तुनिष्ठ प्रकार की परीक्षा और निबंध-लेखन की परीक्षा दी थी। परिणाम घोषित होना बाकी है।
परिणाम के बाद, हमें टाइपिंग टेस्ट के लिए जाना होगा। आदर्श रूप से, परीक्षा आयोजित करने और अंतिम परिणामों की घोषणा में लगभग एक वर्ष का समय लगता है। लेकिन इस बार प्रक्रिया 18 महीने से चल रही है और अभी भी कोई उम्मीद नहीं दिख रहा है।
एनएसओ की तरफ से जारी डेटा के अनुसार राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) के लिए नए ग्राहकों की संख्या 2020-21 में 1,18,843 से घटकर 87,423 रह गयी। बताते चलें कि केंद्र सरकार की नियमित नौकरी में शामिल होने वाले किसी भी व्यक्ति को एनपीएस की सदस्यता लेनी होती है।
ईपीएफओ के आंकड़ों के अनुसार भी नए रोजगार में कमी की बात कही गयी है। कर्मचारी भविष्य निधि से इस साल मार्च में कुल 11,22 लाख कर्मचारी जुड़े यह संख्या इसी साल फरवरी में 11.28 लाख कर्मचारियों की तुलना में कम है। बीते वित्त वर्ष 2020-2021 के दौरान ईपीएफओ ने कुल 77.08 लाख नए सदस्यों को जोड़ा जबकि एक साल पहले की अवधि में यह संख्या 78.58 लाख थी।