Jagdeep Dhakar Resignation: मानसून सेशन की शुरुआत में विपक्षी दल फ्लोर पर अपनी रणनीति को लेकर पूरी तरह से एकमत थे। विपक्षी दल सरकार को पहलगाम टेरर अटैक और सीजफायर में अमेरिका के कथित रोल पर चर्चा के लिए फोर्स करना चाहते थे। इसके अलावा बिहार में चुनाव आयोग द्वारा वोटर लिस्ट को लेकर चलाए जा रही SIR पर भी घेरना था। लेकिन अचानक से जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि सरकार अगले हफ्ते ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए राजी हो गई है लेकिन वह बिहार में चल रही SIR एक्सरसाइज पर पीछे हटने के लिए राजी नहीं है। ऐसे में अब विपक्ष के सामने दो नए चैलेंज आ गए हैं।

विपक्ष के ज्यादातर नेताओं का मानना है कि जगदीप धनखड़ के पीछे रहस्य है। इन नेताओं में जयराम रमेश में भी शामिल हैं, उन्होंने कहा कि धनखड़ के “पूरी तरह से अप्रत्याशित” इस्तीफे में जो दिख रहा है उससे कहीं अधिक है। लेकिन बड़ी बात यह है कि विपक्षी खेमे में इस बात को लेकर स्पष्टता का अभाव है कि सरकार पर बढ़त बनाने के लिए इसका फायदा कैसे उठाया जाए। इस फैक्ट को भी कोई नकार नहीं सकता कि जगदीप धनखड़ और विपक्षी दलों के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे।

इसके अलावा एक अन्य चैलेंज विपक्ष द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त उम्मीदवार उतारना है। इसके लिए चुनाव आयोग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में टीएमसी ने वोटिंग से दूर रही थी। टीएमसी ने तब दावा किया था कि विपक्षी दलों से उससे चर्चा किए बिना ही मार्गरेट अल्वा को अपना उम्मीदवार चुन लिया।

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हालांकि तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है, पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है, ऐसे में टीएमसी अपने विकल्पों से ध्यान से काम करेगी। वो कोशिश करेगी कि वह किसी भी खेमे में न दिखाई दे। आम आदमी पार्टी पहले ही यह घोषणा कर चुकी है कि वह इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं है। गौर करने वाली बात यह है कि टीएमसी की तरफ से अभी तक जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर कोई विशेष कमेंट करने से बचा गया है।

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता जयराम रमेश की शुरुआती प्रतिक्रिया ने उनकी अपनी ही पार्टी को चौंका दिया।जयरमेश ने कहा कि “धनखड़ ने सरकार और विपक्ष, दोनों को समान रूप से आड़े हाथों लिया” और उनसे अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध भी किया। उन्होंने कहा, “यह देशहित में होगा। खासकर किसान समुदाय को इससे बहुत राहत मिलेगी।”

हालांकि उनकी प्रतिक्रिया पर कांग्रेस के नेता ने कहा कि कभी-कभी वह (रमेश) अकेले पड़ जाते हैं। धनखड़ स्पष्ट रूप से राज्यसभा के अब तक के सबसे पक्षपाती सभापति थे।

प्रियंका चतुर्वेदी ने खुलकर जाहिर की असहमति

शिवसेना यूबीटी की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने खुलकर जयराम रमेश से असहमति जाहिर करते हुए कहा, ” ‘श्री धनखड़ ने सरकार और विपक्ष दोनों को समान रूप से आड़े हाथों लिया’। फैक्ट चेक: गलत। ध्यान दें: विपक्ष को सभापति के पक्षपातपूर्ण आचरण के कारण ही अविश्वास प्रस्ताव लाने पर मजबूर होना पड़ा। कम से कम हमें यह नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि यह क्षण एक सरप्राइज के रूप में आया है।”

समाजवादी पार्टी ने क्या कहा?

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “हमारे बेहद लोकप्रिय उपराष्ट्रपति जी ने अपने स्वास्थ्य की चिंता जताते हुए इस्तीफा दे दिया, लेकिन किसी ने उनका हालचाल नहीं पूछा। कोई उनका हालचाल पूछने नहीं गया। बहुत सारे बीजेपी सदस्य तो स्वास्थ्य और कुशलक्षेम पूछने के लिए किसी संदेश का इंतजार कर रहे होंगे। मुझे नहीं लगता कि कोई बीजेपी सदस्य उनका हालचाल पूछने पहुंचा होगा… आज एक शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य की चिंता जताते हुए इस्तीफा देना पड़े और बीजेपी से कोई भी उनसे पूछने वाला न हो, तो इसका मतलब है कि ‘कुछ दाल में काला है’, जिसका अंदाजा हमें नहीं है।”

विपक्षी दलों द्वारा इस तरह की प्रतिक्रियाएंं रुख में एक दिलचस्प बदलाव का संकेत देती हैं क्योंकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा थे। इन दलों का जगदीप धनखड़ के साथ पहले भी कई बार टकराव हो चुका है। पिछले साल दिसंबर में उन्होंने उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का अभूतपूर्व कदम भी उठाया था, जिसमें उन पर राज्यसभा के सभापति के रूप में “पक्षपातपूर्ण आचरण” का आरोप लगाया गया था।

अपने महाभियोग नोटिस में, जिसे बाद में उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था, विपक्ष ने आरोप लगाया था कि जगदीप धनखड़ ने सार्वजनिक मंचों पर सरकार की नीतियों का “भावुक प्रवक्ता” बनने का बीड़ा उठा लिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि वह “स्पष्ट रूप से पक्षपातपूर्ण” थे और उच्च सदन की कार्यवाही “बेहद पक्षपातपूर्ण” तरीके से चला रहे थे।

विपक्षी दलों में किस बात की दुविधा?

ज्यादातर विपक्षी नेताओं का मानना है कि जगदीप धनखड़ से जबरन इस्तीफा दिलवाया गया है। यह उनके इस बड़े आरोप से मेल खाता है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार संविधान और संस्थाओं को कमजोर कर रही है – लेकिन वे इस मुद्दे पर पूरी तरह से आगे बढ़ने से कतरा रहे हैं। एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने कहा, “क्या होगा अगर हम इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दें और वह कल बयान दें कि उन्हें अपने इस्तीफे के राजनीतिकरण से दुख हुआ है? अभी तक वह चुप रहे हैं। हमें उम्मीद है कि वह एक दिन बोलेंगे।” इससे विपक्ष का यह विश्वास भी उजागर होता है कि धनखड़ सत्यपाल मलिक की राह पर चलेंगे।

सीपीएम के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा, “दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा की रक्षा और बढ़ती अटकलों पर विराम लगाने के लिए, सरकार को जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से जुड़ी परिस्थितियों को स्पष्ट करना चाहिए। कुछ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एक वरिष्ठ मंत्री ने सरकार की ओर से उनका इस्तीफा मांगा था। प्रधानमंत्री द्वारा धनखड़ जी की उम्मीदवारी के दौरान उन्हें ‘किसान पुत्र’ कहने और उनके इस्तीफे के बाद देरी से दिए गए बयान के बीच का अंतर, रहस्य को और बढ़ा देता है।”

ब्रिटास ने कहा, “अगर सरकार सवालों से बचती रही, तो धनखड़ जी के लिए अपने पद की गरिमा बनाए रखने के लिए अपनी चुप्पी तोड़ना उचित होगा। विपक्ष कई मुद्दों पर पूर्व उपराष्ट्रपति से असहमत था, लेकिन बीजेपी सरकार जिस तरह से इस संवैधानिक पद को संभाल रही है, वह बेहद चिंताजनक और चिंताजनक है।”

दूसरी ओर, इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस और डीएमसी की लगभग चुप्पी दर्शाती है कि सभी विपक्षी दल एकमत नहीं हैं।

बीजेपी का क्या है रुख?

बीजेपी का मानना है कि यह मुद्दा कुछ ही दिनों में शांत हो जाएगा और ध्यान नए उपराष्ट्रपति के चुनाव पर केंद्रित हो जाएगा। और फिर, विपक्ष को अपनी अगली चुनौती का सामना करना पड़ेगा। सिर्फ तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ही नहीं हैं जो कांग्रेस के साथ नहीं दिखना चाहतीं, बल्कि माकपा भी खासकर राहुल गांधी से नाराज है। राहुल गांधी ने अपनी पिछली केरल यात्रा के दौरान उस पर हमला किया था।

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