भोपाल में बना नया रेल ओवरब्रिज (ROB), जो अपने करीब 90 डिग्री के तेज मोड़ की वजह से सोशल मीडिया पर मजाक का विषय बना था, अब जांच के घेरे में आ गया है। जैसे-जैसे इस अजीबोगरीब डिजाइन की वजहें सामने लाने की कोशिश हो रही है, वैसे-वैसे पीडब्ल्यूडी और रेलवे के अधिकारी एक-दूसरे पर दोष मढ़ते नजर आ रहे हैं। राजधानी के ऐशबाग इलाके में स्थित 648 मीटर लंबे इस पुल के बनने में कुल लागत 18 करोड़ रुपये आई थी। इसको बनाने के पीछे रेलवे क्रॉसिंग पर लगने वाले जाम से छुटकारा दिलाने और रोजाना लगभग तीन लाख यात्रियों के आवागमन को आसान बनाना उद्देश्य था।

पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर-इन-चीफ केपीएस राणा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पुल के डिजाइन को 2018 में मंजूरी दी गई थी। यह डिजाइन ब्रिज इंजीनियरिंग विभाग की टीम ने तैयार किया था, जिसमें सहायक अभियंता, अधीक्षण अभियंता, कार्यपालन अभियंता और मुख्य अभियंता स्तर के अधिकारी शामिल थे।

अधिकारियों की भूमिका की जांच के लिए एक समिति का गठन

राणा ने बताया, “हमने इन अधिकारियों की भूमिका की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है।” उन्होंने यह भी साफ किया कि सभी आरओबी परियोजनाओं के लिए आवश्यक विस्तृत लेआउट योजना – जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग (GAD) – भारतीय रेलवे के सहयोग से बनाई जाती है और इसकी निगरानी पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता (पुल) द्वारा की जाती है। हालांकि, इस मामले में मुख्य अभियंता जीपी वर्मा ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

राणा ने यह भी कहा कि “अंतिम स्वीकृति” मुख्य अभियंता (पुल) के विभाग तक ही सीमित रही और यह डिजाइन उच्च अधिकारियों तक नहीं पहुंच पाया। उन्होंने बताया, “डिजाइन ब्रिज इंजीनियरिंग विभाग द्वारा तैयार किया गया था। रेलवे और पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की मदद से जीएडी को अंतिम रूप दिया गया। निर्माण कार्य के लिए एक निजी ठेकेदार को नियुक्त किया गया था, जिसकी भूमिका बाद के चरणों में और भी महत्वपूर्ण रही। यदि बेहतर समन्वय होता, तो हम डिजाइन में सुधार कर सकते थे या अंडरब्रिज का विकल्प चुन सकते थे। रेलवे ने भी जगह की कमी को देखते हुए अपने स्तर पर आरओबी का निर्माण किया।”

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राणा ने माना कि परियोजना में स्थान की सीमाएं थीं और एलाइनमेंट से जुड़ी समस्याएं जीएडी के निर्माण चरण में ही उजागर की जानी चाहिए थीं।

उन्होंने आगे कहा, “इस मामले में विभागों के बीच संवाद की कमी थी। यदि हमें यह जानकारी पहले मिल जाती, तो रेलवे इस परियोजना को मंजूरी देने से मना कर सकता था और हम डिजाइन पर दोबारा काम कर सकते थे।” उन्होंने स्वीकार किया कि विभागों ने मौजूदा डिजाइन के साथ ही काम करना जारी रखा और न ही अंडरग्राउंड क्रॉसिंग या वैकल्पिक एलाइनमेंट पर विचार किया गया।

रेलवे के प्रवक्ता नवल अग्रवाल ने भी स्वीकार किया कि डिजाइन चरण के दौरान दोनों विभागों ने समन्वय किया था और रेलवे ने एलाइनमेंट को लेकर प्रारंभिक आपत्तियां दर्ज की थीं। उन्होंने कहा, “हमने अपना हिस्सा जीएडी के अनुसार बनाया। हमने पीडब्ल्यूडी को डिजाइन में कमियों की जानकारी पहले ही पत्र के माध्यम से दे दी थी।”

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मुख्य परियोजना प्रबंधक अनुपम अवस्थी ने विस्तृत टिप्पणी करने से इनकार किया। उन्होंने केवल इतना कहा कि जीएडी तैयार होने के समय वे इसमें शामिल नहीं थे। उन्होंने सुझाव दिया कि उस समय कोई भी खामी संशोधन प्रस्ताव के माध्यम से सुधारी जा सकती थी। उन्होंने कहा, “यदि कोई दृश्यता से जुड़ी समस्या थी, तो संशोधन प्रस्ताव लाया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।”

इस परियोजना का ठेका भोपाल स्थित एक निजी फर्म, मेसर्स पुनीत चड्ढा को दिया गया था। वरिष्ठ संरचना इंजीनियर कैलाश कुशवाह, जिन्होंने दो वर्षों तक साइट पर कार्य किया और 60 लोगों की टीम का नेतृत्व किया, ने बताया कि डिजाइन सीधे पीडब्ल्यूडी से मिला था।

उन्होंने कहा कि एक ओर मेट्रो निर्माण और दूसरी ओर इलेक्ट्रिफाइड रेलवे लाइन के कारण स्थान सीमित था, जिससे डिजाइन प्रभावित हुआ। कुशवाह ने आरोप लगाया कि “पीडब्ल्यूडी ने स्थान की सीमाओं को पहले ही उजागर कर दिया था; यह रेलवे की गलती है कि उसने समुचित समन्वय नहीं किया।”

पीडब्ल्यूडी ने मंत्री राकेश सिंह के निर्देश पर दो मुख्य अभियंताओं और एक कार्यपालन अभियंता सहित चार सदस्यीय समिति का गठन किया है। यह समिति डिजाइन का मूल्यांकन करेगी, जिम्मेदारियों को तय करेगी और सुधारात्मक उपायों की सिफारिश देगी। विचाराधीन सुरक्षा उपायों में पांच स्थानों पर स्पीड ब्रेकर लगाना, 90 डिग्री मोड़ पर दृश्यता के लिए दर्पण, परावर्तक रेडियम पट्टियां, गति सीमा संकेत, पुल पर 20 नई स्ट्रीट लाइटें लगाना और आरओबी के त्रिकोणीय आधार पर गर्डर्स का उपयोग करके मोड़ को चौड़ा करना शामिल हैं।

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