15 अगस्त 1947 को मिली आजादी के बाद तक हमारा देश भारत 565 देशी रियासतों में बंटा था। ये सभी रियासतें स्वतंत्र शासन की तैयारी में बैठीं थीं। हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर को छोड़कर शेष 562 रियासतों ने भारत संघ में शामिल होने की स्वीकृति दे दी थी। अंग्रेज यह जानते थे कि भारतीय रियासतें आजाद रहना चाहती हैं। आजाद रहने की ये इच्छा उस समय और बढ़ गई जब अंग्रेजों ने भारतीय रियासतों को मनमर्जी के मुताबिक भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का अधिकार दे दिया। लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटेन स्वतंत्र रियासतों को अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देगा।

भारत में शामिल न होने वाली रियासतों में भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह भी थे। पाकिस्तान के प्रति उनका झुकाव किसी से छिपा नहीं था। लेकिन तब की भारत सरकार देश के हृदयस्थल में पाकिस्तानी गतिविधियों का कोई केंद्र नहीं बनने देना चाहती थी। ऐसे में सरदार पटेल ने भोपाल पर पूरी नजर रखने के लिए इसे राजधानी बनाने का फैसला किया और नेहरू जी से इस पर सहमति भी प्राप्त कर ली।

हमीदुल्लाह खाँ भोपाल के आखिरी नवाब थे। दीपक तिवारी की किताब ‘राजनीतिनामा’ में बताया गया है कि हमीदुल्लाह खाँ के इरादे कितने खतरनाक थे। 1948 में उन्होंने बैंक ऑफ भोपाल की एक शाखा  कराची में खोल दी थी। वह जनता का सारा धन लेकर वहां चले गए और यहां बैंक का दिवाला निकल गया। नवाब हमीदुल्लाह हैदराबाद के निजाम के साथ मिले हुए थे और भारत का विरोध कर रहे थे। मोहम्मद अली जिन्ना के साथ भी उनके अच्छे संबंध थे।

किताब में बताया गया है कि भोपाल के नवाब 1944 से ही ‘चेंबर ऑफ प्रिंसेस’ के चांसलर थे और वह कांग्रेस के भी विरोधी थे। यह भी कहा जाता है कि पं. जवाहरलाल नेहरू के बाद वायसराय माउंटबैटेन के दूसरे सबसे अच्छे मित्र भोपाल के नवाब ही थे। बहुत ही मुश्किल से उन्होंने भोपाल के विलय को स्वीकृति दी थी और इसके बाद वह खुद इंग्लैंड चले गए।

उनकी बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान पाकिस्तान जाकर बस गईं, जिन्हें वहां की सरकार ने ब्राजील का राजदूत बना दिया था। बड़ी बेटी की शादी कुरवाई के नवाब से हुई और छोटी बेटी साजिदा बेगम की शादी हरियाणा के पटौदी रियासत के नवाब से। उन्हीं छोटी बेटी के बेटे थे नवाब मंसूर अली खान जो देश के प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी थे। टाइगर पटौदी के रूप में ख्यात मंसूर ने बॉलीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से शादी की।

जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने पहुंचे गए थे भोपाल के नवाब
‘पाकिस्तान क्रॉनिकल’ के संपादक अक़ील अब्बास जाफ़री ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि कराची में ख़ुफ़िया पुलिस के कार्यालय पर छापा मारा गया तो प ता चला कि सरकार के उच्च अधिकारियों के फोन रेकॉर्ड किए जाते हैं। इस घटना के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता इतनी बढ़ गई कि चुनाव को रोकने पर विचार होने लगा।

उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति मेजर जनरल (रिटायर्ड)इस्कंदर मिर्जा थे। राष्ट्रपति खुद को बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री फ़िरोज ख़ान के खिलाफ साजिश करने लगे। उन्होंने भोपाल के नवाब को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला कर लिया। अगली सुबह हमीदुल्लाह खाँ कराची पहुंच भी गए। कुल मिलाकर जनता चुनाव का इंतजार कर रही थी और इधर चुनाव को टालने की कवायद शुरू हो गई थी।

हालांकि बाद में पाकिस्तान के राजनीतिक हालात के चलते और इस्कंदर मिर्जा के इरादों का पता लगने के बाद नवाब ने कोई भी जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया।