सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने पांचों की गिरफ्तारी के मामले की जांच के लिए एसआईटी (विशेष जांच दल) गठित करने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस एएम. खानविलकर और जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ भी शामिल थे। जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ ने बहुमत के फैसले के प्रति असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि इस मामले में वह पीठ के दो अन्य जजों की राय से सहमत नहीं हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘पांचों आरोपियों की गिरफ्तारी असहमति पर लगाम लगाने का प्रयास है। जबकि असहमति लोकतंत्र का प्रतीक है।’ बता दें कि पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में संलिप्तता को लेकर तेलगु कवि वारवरा राव, अरुण फेरारिया, वरनॉन गोंजालवेस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया था। इनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पांचों को घर में ही नजरबंद करने का फैसला दिया है।
जस्टिस चंद्रचूड़ की तल्ख टिप्पणी: तीन सदस्यीय पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र पुलिस के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने पुलिस द्वारा इस मामले में प्रेस कांफ्रेंस करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिस की मीडिया ब्रीफिंग आमलोगों की राय को बदलने का एक जरिया बन चुकी है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘सुधा भारद्वाज द्वारा कथित तौर पर लिखी गई चिट्ठी टीवी चैनलों पर दिखाए गए। पुलिस ने जानबूझकर जांच के एक हिस्से की जानकारी मीडिया को दी। इससे निष्पक्ष जांच के प्रभावित होने की आशंका है। जांच के लिए एसआईटी गठित करने का यह बिल्कुल उचित मामला है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच होनी चाहिए।’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसरो जासूसी कांड से बरी हुए नाम्बी नारायण का उदहारण भी दिया। उन्होंने कहा कि जब जांच की निष्पक्षता प्रभावित होने की आशंका हो तो सुप्रीम कोर्ट को जरूर हस्तक्षेप करना चाहिए। बता दें कि पुलिस का आरोप है कि पांचों कार्यकर्ताओं के नक्सलियों से साठगांठ हैं। नक्सलियों ने कथित तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तर्ज पर पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रची थी।

