Bhima Koregaon Case: भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी आनंद तेलतुंबडे की जमानत के विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंची एनआईए को CJI ने कड़ी फटकार लगाई है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) का कहना है कि केवल इस बिनाह पर कि उनका भाई 30 साल पहले अंडरग्राउंड हो गया था, इसकी सजा आनंद तेलतुंबडे को क्यों दी जाए। उनका कहना है कि आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर ने दलितों का जमावड़ा किया था। क्या इसके लिए उन पर UAPA लगाया जाना चाहिए। सीजेआई ने सवाल उठाया कि उस इवेंट का UAPA से क्या लिंक है।
सुप्रीम कोर्ट ने NIA की स्पेशल लीव पिटीशन को खारिज करते हुए कहा कि ये बेवजह दायर की गई है। एजेंसी ने बांबे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें 73 साल के प्रोफेसर को बेल दी गई थी। हालांकि सीजेआई की बेंच का कहना है कि इस मामले में हाईकोर्ट के ऑब्जरवेशन को अंतिम न माना जाए जब तक कि इस मामले के सभी पहलुओं की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती है।
Supreme Court ने तेलतुंबडे की भूमिका पर पूछे सवाल: इससे पहले हाईकोर्ट के जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने तेलतुंबडे को जमानत देते हुए प्रथम दृष्टया टिप्पणी की कि आनंद तेलतुंबडे के खिलाफ आतंकवादी गतिविधि में शामिल होने का कोई सबूत नहीं है। अदालत ने कहा कि तेलतुंबडे ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, एमआईटी, मिशिगन यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भाषण देने के लिए दौरा किया था और केवल इसलिए कि उनका भाई 30 साल पहले सीपीआई (एम) की वकालत करने के लिए अंडरग्राउंड हो गया था। इससे जोड़ कर अपीलकर्ता को नहीं फंसाया जा सकता है।
वहीं, शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सीजेआई ने पूछा कि तेलतुंबडे की क्या भूमिका थी? सीजेआई ने एनआईए की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी से पूछा, “तेलतुंबडे की भूमिका क्या थी? जिस आईआईटी मद्रास कार्यक्रम का आपने आरोप लगाया है वह दलित मोबिलाइजेशन के लिए है। आनंद तेलतुंबडे के खिलाफ दायर चार्जशीट में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) की विचारधारा को आगे बढ़ाने और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रची।
क्या है मामला? भीमा कोरेगांव मामले में माओवादी कनेक्शन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एजेंसी के सामने सरेंडर करने के बाद 73 वर्षीय पूर्व आईआईटी प्रोफेसर और दलित स्कॉलर को 14 अप्रैल, 2020 को एनआईए ने गिरफ्तार कर लिया था। हाईकोर्ट के जस्टिस एएस गडकरी और मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने तेलतुंबडे को जमानत देते हुए प्रथम दृष्टया टिप्पणी की कि तेलतुंबडे के खिलाफ आतंकवादी गतिविधि के अपराध का कोई सबूत नहीं है।