देश में किसानों ने आज शुक्रवार को भारत बंद का ऐलान कर रखा है। उस भारत बंद का असर भी जमीन पर दिख रहा है, कई सड़कों पर लंबा जाम है, कई इलाकों में दुकानें बंद हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में तो ज्यादा प्रभाव देखने को मिल रहा है। देश में बंद का ऐलान पहले भी कई बार किया जा चुका है, ये कोई नई बात नहीं है। कोई भी विरोध प्रदर्शन करना हो तो बंद कर दिया जाता है। लेकिन विरोध कोई करता है, चक्का जाम कोई करता है, लेकिन भुगतता पूरा देश है।

भारत बंद का पूरा इतिहास

अब भारत बंद का नाम तो कई बार सुन लिया, लेकिन ये होता क्या है, आखिर इसका इतिहास क्या है और सबसे बड़ा सवाल- क्या संविधान लोगों को भारत बंद की इजाजत देता है या नहीं? भारत बंद को लेकर इतिहास के पन्नों में ज्यादा तथ्य मौजूद नहीं हैं, लेकिन कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि देश का सबसे पहला भारत बंद 1862 में लगा था। उस समय देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी, उनकी प्रताड़ना से पूरा देश त्रस्त था। मजदूर समाज का तो बड़े स्तर पर शोषण होता था। उस समय 1862 में एक समय ऐसा आया था जब फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों ने बंद का ऐलान किया था, बड़े स्तर पर हड़ताल की गई थी।

यहां ये समझना जरूरी है कि बंद और हड़ताल में अंतर होता है। हड़ताल सिर्फ वो वर्ग करता है जो विरोध प्रदर्शन कर रहा होता है, वहीं बंद की स्थिति में उन लोगों को भी शामिल किया जाता है जो वैसे तो विरोध का हिस्सा नहीं होते, लेकिन साथ देने के मकसद से अपनी सहमति जताते हैं। इसी वजह से हड़ताल का ज्यादा व्यापक रूप बंद होता है। वैसे इतिहास बताता है कि 1871 में हावड़ा स्टेशन पर भी 1200 कर्मचारियों ने हड़ताल की थी। तब मांग हुई थी कि उनके वर्किंग ऑर को घटाकर आठ घंटा किया जाए।

महात्मा गांधी के सबसे सफल बंद

अब ये सारे आंदोलन या बंद तो सिर्फ एक विशेष वर्ग तक सीमित थे, लेकिन राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने इस आंदोलन संस्कृति को नया स्वरूप देने का काम किया था। माना जाता है कि वो भी बंद का ही एक प्रकार था क्योंकि अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होने के लिए कई लोगों ने साथ में अपनी नौकरी छोड़ी थी, कई ने अंग्रेजों के लिए काम करना बंद कर दिया था और उस तरह से आजादी की लड़ाई को एक नई ऊर्जा मिली थी।

1920 में गांधी ने जब असहयोग आंदोलन का ऐलान किया था, मजदूरों ने बड़े स्तर पर अंग्रेजी हकुमूत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था, फैक्ट्रियों में काम करना बंद कर दिया गया था। इसी तरह 1942 का अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन भी एक तरह का बंद था। ऐसा बंद जिसमें स्कूली छात्रों से लेकर सरकारी कर्मचारियों ने हिस्सा लिया था, कई ने तो अपनी इच्छा से नौकरी छोड़ी थी। लेकिन महात्मा गांधी और आज के भारत बंद में एक बड़ा अंतर है। गांधी अहिंसा के रास्ते पर चल विरोध प्रदर्शन करते थे, आंदोलन करते थे, वहीं वर्तमान में बड़े स्तर पर हिंसा देखने को मिलती है, पुलिस पर पथराव होता है, आंसू गैस के गोले दागे जाते हैं। ऐसे में समय के साथ भारत बंद की परिभाषा बदल गई है।

संविधान बंद को लेकर क्या बोलता है?

अब भारत बंद और हड़ताल का इतिहास तो पता चल गया, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या देश का संविधान भारत बंद या हड़ताल को किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार मानता है या नहीं? क्या कानून किसी तरह से लोगों को भारत बंद या हड़ताल की इजाजत देता है? अब संविधान का अनुच्छे 19 (1) (c) देश के किसी भी नागरिक को यूनियन बनाने का अधिकार देता है। वहीं 19 (a) के तहत सभी को अभिव्यक्ति की आजादी मिलती है। इसी तरह विरोध प्रदर्शन को भी 19 (a) में शामिल किया जा सकता है, वो एक प्रकार की अभिव्यक्ति है। लेकिन फर्क ये रहता है कि वो प्रदर्शन हिंसक नहीं होना चाहिए, पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

लेकिन बड़ी बात ये है कि संविधान में कही भी हड़ताल, बंद जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। साफ कहा गया है कि हड़ताल, चक्का जाम और बंद किसी का मौलिक अधिकार नहीं हो सकता है। यानी कि संविधान को सहारा बनाकर भारत बंद का ऐलान नहीं किया जा सकता है। ये अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही कई फैसलों में ये साफ कर दिया है कि शांतिपूर्वक अंदाज से निकाली गईं हड़तालें असंवैधानिक नहीं हो सकती हैं। Bharat Kumar K. Palicha v. State of Kerala केस में भी ये बात स्पष्ट रूप से कही गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी कर रखी गाइडलाइन

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी बंद और हड़ताल को लेकर विस्तृत गाइडलाइन जारी कर रखी है। उन गाइडलाइन्स के मुताबिक अगर हड़ताल या बंद किया भी जा रहा है, तो पहले आयोजकों को पुलिस से मुलाकात करनी होगी, शांति बनाए रखने का आश्वासन देना होगा। इसी तरह हड़ताल के दौरान लाठी, ब्लेड की इजाजत नहीं जाएगी। वही जिस जगह पर हड़ताल या बंद चल रहा है, उस एरिया की जिम्मेदारी पुलिस के सर्वोच्च अधिकारी को दी जानी चाहिए। इसके अलावा अगर हड़ताल या बंद के दौरान पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान हुआ है तो उस स्थिति में जितना नुकसान हुआ है, उसकी दोगुनी रकम बतौर जुर्मानी वसूली जा सकती है।

अब इतिहास, कानूनी वैधता के बारे में तो सारी जानकारी मिल गई, इस भारत बंद का एक हैरान कर देने वाला पहलू ये है कि ऐसे प्रदर्शनों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है। कई रिपोर्ट्स में दावा हो चुका है कि एक दिन के भारत बंद से हजारों करोड़ की चपत लगती है। असल में जब कई कारखाने बंद हो जाते हैं, जब कई सेवाएं घंटों के लिए रोक दी जाती हैं, इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। Confederation of Indian Industry का ही एक अनुमान बताता है कि अगर पूर्ण भारत बंद रहता है तो 25 से 30 हजार करोड़ तक का नुकसान हो सकता है।

सिर्फ 24 घंटे का बंद और करोड़ों का चूना

इसी कड़ी में Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry बताती है कि भारत बंद से कितना नुकसान होगा, इसका आकलन इस बात से भी किया जाता है कि आखिर किस वर्ग की तरफ से इसका आव्हान किया गया है। उदाहरण के लिए अगर बैंक कर्मचारी बंद का ऐलान करते हैं तो उस स्थिति में बैंकिंग सेवाएं बाधित हो जाएंगी। उससे देश को करीब 25 हजार करोड़ का नुकसान होगा। अगर मजदूर हड़ताल पर चले जाएंगे तो देश को करीब 26 हजार करोड़ की चपत लगेगी। वहीं इस समय तो क्योंकि किसान भारत बंद में शामिल है, इसका और ज्यादा व्यापक असर देखने को मिल सकता है।

एक रिपोर्ट बताती है कि देश में करीब 15 करोड़ किसान हैं, अगर वो सभी 24 घंटे के लिए अपना काम बंद कर दें, अगर उनकी तरफ से पूरी तरह से बंद का पालन किया जाए, तो करीब-करीब 32 हजार करोड़ तक का चूना लग सकता है। अब ये जो आंकड़े बताए गए हैं, ये सिर्फ कुछ रिपोर्ट्स के आधर पर हैं, असल आंकड़ा इससे ज्यादा भी हो सकता है।