मुकेश भारद्वाज

चंडीगढ़। जब शहीदे-आजम भगत सिंह को 23 मार्च सन 1931 में ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी के तख्ते पर लटकाया तो उनकी बहन प्रकाश कौर सिर्फ 10 साल की थीं। रविवार को 94 साल की अवस्था में कनाडा में उनका निधन हो गया। दुखद संयोग यह कि देश जब 28 सितंबर को मातृभूमि के महान सपूत भगत सिंह का जन्मदिन मना रहा था, सुदूर टोरंटो में उनकी यह आखिरी बहन आखिरी सांसें ले रही थीं।

परिवार में सुमित्रा उपनाम से चर्चित प्रकाश कौर को इतनी छोटी सी उम्र में ही अपने भाई को फांसी पर लटकाए जाने का सदमा पूरी उम्र बर्दाश्त करना पड़ा। पर उन्हें इस बात का बड़ा फख्र रहा कि उनके भाई ने मातृभूमि को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए जान की बाजी लगा दी। बीबी प्रकाश कौर की उम्र 94 साल थी और वे भगत सिंह की आखिरी जीवित बहन थीं।

कनाडा स्थित आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता वहां भगत सिंह के जन्मदिवस की उन्हें बधाई देने गए थे और यही लोग उनसे मुलाकात करने वाले आखिरी लोग भी थे। प्रकाश कौर चलने-फिरने में मजबूर थीं, क्योंकि बीते 6-7 साल से बिस्तर पर थीं। उनके पति हरबंस सिंह का देहांत एक दशक पहले ही हो चुका था।

प्रकाश कौर के पास उन इतिहासविदों का आना-जाना लगातार लगा रहता था जिन्हें उनके भाई भगत सिंह के बारे में ज्यादा गहराई से जानने की उत्सुकता रहती थी। जेएनयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर चमन लाल भी हाल ही में इसी सिलसिले में उनसे मिलने गए थे। उन्होंने ‘जनसत्ता’ से चर्चा में प्रकाश कौर की टोरंटो में मौत के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें अपने भाई के बलिदान पर हमेशा बड़ा गर्व रहा।

क्रांतिकारी भगत सिंह पर काफी कुछ लिख चुके चमन लाल ने बताया, ‘उन्हें अपने भाई के साथ खेलने-कूदने का ज्यादा वक्त तो नहीं मिल पाया क्योंकि वे छोटी उम्र में ही क्रांतिकारी हो गए थे और अपने उसी अभियान में मगन रहते थे। वे जान-बूझकर अपने घर-परिवार से दूर रहते थे ताकि उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों की आंच परिवार पर नहीं आ पाए। प्रकाश कौर अपने भाई की जिंदगी के कुछ अहम पहलुओं को जगजाहिर करने में संकोच करती रहीं, पर उन्हें हमेशा अपने भाई पर गर्व रहा।’

प्रकाश कौर पंजाब में आतंकवाद के दौर में तब सुर्खियों में आर्इं थीं जब उनकी शादीशुदा बेटी के बेहद नजदीकी रिश्तेदार कुलजीत सिंह ढाट को जुलाई, 1989 में होशियारपुर में पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया था। प्रदेश में तब यह एक बड़ा मुद्दा बना था। पुलिस का दावा था कि ढाट के आतंकवादियों से संपर्क हैं, पर प्रकाश कौर ने इस बात से हमेशा इनकार किया। परिवार का दावा था कि ढाट को पंजाब पुलिस के पांच मुलाजिमों ने फर्जी मुठभेड़ में मारा गिराया। इन्हीं ढाट के परिवार लिए प्रकाश कौर ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और परिवार के नाम पर लगे कलंक से उसे मुक्ति भी दिलाई।
चमनलाल ने बताया, ‘ढाट के लिए उन्होंने दृढ़ इच्छा के साथ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और विदेश से भी इसे चलाती रहीं और कभी-कभी भारत भी इस सिलसिले में आना पड़ा।’ दरअसल, तब कछुए की चाल से चला यह मामला प्रकाश कौर के सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद तेज गति से निपटा।

भगत सिंह के परिवार में सदस्यों की संख्या काफी थी। वे खुद को मिलाकर कुल नौ भाई-बहन थे: जगत सिंह, भगत सिंह, अमर कौर, कुलबीर सिंह, शकुंतला देवी, कुलतार सिंह, प्रकाश कौर, रणबीर सिंह और रजिंदर सिंह। जगत सिंह की मृत्यु युवावस्था में हो गई थी, जबकि सिर्फ 23 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूमने वाले शहीद भगत सिंह को छोड़कर अन्य सभी सदस्य दीर्घायु निकले। प्रकाश से पहले कुलतार सिंह की मृत्यु वर्ष 2004 में 86 साल की उम्र में हुई। कुलतार सिंह विधायक रहे और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन एनडी तिवारी की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री भी। कुलबीर सिंह भी 60 के दशक में पंजाब में जनसंघ से विधायक थे।

इस बीच मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने प्रकाश कौर के निधन पर शोक प्रकट किया और शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदना प्रकट की है।