कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार को विधायक मुकुल रॉय को भारतीय जनता पार्टी (BJP) छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के कारण पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया। जस्टिस देबांगसु बसाक और जस्टिस मोहम्मद शब्बर रशीदी की खंडपीठ ने कहा कि यह सिद्ध हो चुका है कि मुकुल रॉय 11 जून, 2021 को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे। इस प्रकार कोर्ट ने फैसला सुनाया कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत उन्हें अयोग्य घोषित किया गया था।

कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस ने आदेश दिया, “प्रतिवादी संख्या 2 को भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची और 1986 के नियमों के अनुसार 11 जून, 2021 से अयोग्य घोषित किया जाता है।” कोर्ट ने पश्चिम बंगाल विधानसभा की लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष के रूप में मुकुल रॉय के नामांकन को भी रद्द कर दिया।

मुकुल रॉय भाजपा के टिकट पर कृष्णानगर उत्तर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा सदस्य चुने गए थे। हालांकि जून 2021 में वे तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। राज्य में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और भाजपा विधायक अंबिका रॉय ने तब उनकी अयोग्यता की मांग की थी। पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष ने 2022 में मुकुल रॉय की अयोग्यता की मांग वाली याचिका खारिज कर दी, लेकिन हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने दलबदल याचिका पर नए सिरे से विचार करने के लिए उसे वापस भेज दिया। बाद में जून 2022 में अध्यक्ष ने एक नए फैसले में फैसला सुनाया कि दलबदल को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।

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सुवेंदु अधिकारी ने दायर की थी याचिका

इसके बाद सुवेंदु अधिकारी और अंबिका रॉय ने हाई कोर्ट का रुख किया और कहा कि दलबदल साबित करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का रिकॉर्ड मौजूद है। उनका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता बिलवादल भट्टाचार्य ने किया। हालांकि अध्यक्ष की ओर से पेश हुए राज्य के महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने तर्क दिया कि समाचार रिपोर्ट के संबंध में साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65बी के तहत कोई प्रमाण पत्र दायर नहीं किया गया था। उन्होंने अध्यक्ष के खिलाफ पक्षपात के आरोपों से भी इनकार किया।

कोर्ट ने शुरू में ही टिप्पणी की कि अध्यक्ष का निर्णय किसी न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए निर्णय के समान है और इसलिए इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अध्यक्ष के निर्णय की जाँच के बाद कोर्ट ने पाया कि अध्यक्ष ने मामले को एक आपराधिक मुकदमे के रूप में निपटाया था। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून में किसी दलबदलू विधायक को उसके निर्णय के लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी बनाने का प्रावधान नहीं है।