पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मुद्दा सिर्फ टीएमसी बनाम बीजेपी का नहीं है बल्कि राज्य की चरमराती अर्थव्यवस्था भी एक अहम मुद्दा है। सीएम ममता के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर होने के पीछे एक वजह स्थानीय स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार, रुका पड़ा औद्योगिकरण, कमजोर क्रेडिट ग्रोथ, नए रोजगार न होना, बुनियादी ढांचे का विकास न होना और कृषि क्षेत्र पर होने वाला खर्च है।
2019-20 में, पश्चिम बंगाल की विकास दर 7.26 प्रतिशत थी, जो उसी साल राष्ट्रीय विकास दर से 4 प्रतिशत से ज्यादा थी। लेकिन 2015-16 से 2019-20 के बीच पांच सालों में से चार साल के दौरान, पश्चिम बंगाल की विकास दर की वृद्धि राष्ट्रीय स्तर की तुलना में कम रही है। 2018 से 2020 की चौथी तिमाही के बीच, जहां पूरे देश के बैंकों के क्रेडिट में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई, वहीं पश्चिम बंगाल में यह सिर्फ 10 प्रतिशत रही।
इन दो सालों में जहां देश भर में बैंक डिपोजिट में 19.8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई वहीं पश्चिम बंगाल में यह सिर्फ 14.1 प्रतिशत रही। लेकिन आबादी के हिसाब से चौथे सबसे बड़ा राज्य में बेरोजगारी भी एक अहम मुद्दा है। फरवरी 2021 के सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में बेरोजगारी दर 6.2 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय स्तर पर 6.9 प्रतिशत के आंकड़े से कम थी। हालांकि राज्य 27 राज्यों में 17 वें स्थान पर था।
राज्य में हर दिन मिलने वाली दिहाड़ी और प्रति व्यक्ति आय भी कम है। वित्त वर्ष 2020 के लिए गैर-कृषि क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय स्तर पर हर मजदूर को जहां हर दिन 294 रुपये दिहाड़ी मिलती है वहीं केयर रेटिंग की एक रिपोर्ट बताती है कि पश्चिम बंगाल में मजदूरी दर लगभग इस आंकड़े से 8.5 प्रतिशत कम थी। प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी, पश्चिम बंगाल का 1.16 लाख रुपये का आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से 16% कम था।
यही नहीं, MSME उद्यम पंजीकरण प्रक्रिया को पूरा करने वाले 13.47 लाख उद्यमों के विश्लेषण के मुताबिक पश्चिम बंगाल शीर्ष 10 राज्यों की सूची में कहीं भी दिखाई नहीं देता है। पश्चिम बंगाल में सिर्फ 27,776 एमएसएमई रजिस्टर्ड थे और उन्होंने औसतन 5.84 व्यक्तियों को रोजगार दिया था।
हालांकि आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2019-20 में शिक्षा और ग्रामीण-शहरी विकास क्षेत्रों पर राज्य का खर्च राष्ट्रीय औसत से ऊपर है लेकिन सड़क, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में पीछे है। शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, कला और संस्कृति, आवास, जल आपूर्ति, श्रम कल्याण और अन्य पर खर्च में लगातार वृद्धि हुई है।
2019-20 में कृषि में ममता बनर्जी सरकार ने बहुत कम खर्च किया। कुल व्यय में कृषि व्यय का हिस्सा मार्च 2020 में बीते छह सालों में सबसे कम था। यहां तक कि बुनियादी ढांचे पर खर्च में 2019-20 में गिरावट देखी गई और 2019-20 में यह कुल खर्च का केवल 3.33 प्रतिशत रहा।
2019-20 (बजट अनुमान) में स्वास्थ्य क्षेत्र पर राज्य का व्यय 5.1 प्रतिशत है, जो इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय औसत 5.3 प्रतिशत से थोड़ा कम है। पश्चिम बंगाल ने 2019-20 में कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों के लिए अपने व्यय को 5.1 प्रतिशत रखा, जो सभी राज्यों के 7.1 प्रतिशत के औसत से काफी कम है।
2019-20 में राज्य ने शिक्षा क्षेत्र के लिए खर्च को16.8 प्रतिशत रखा, जो औसत 15.9 प्रतिशत से अधिक था। ग्रामीण विकास के मोर्चे पर राज्य का खर्च राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
2019-20 में ग्रामीण विकास के लिए पश्चिम बंगाल ने 10.1 प्रतिशत खर्च किया, जो कि ग्रामीण विकास के औसत खर्च से 6.2 प्रतिशत अधिक है। शहरी विकास पर, पश्चिम बंगाल ने 2019-20 के लिए अपने व्यय का 5 प्रतिशत आवंटित किया, जो कि शहरी विकास के औसत आवंटन से 3.4% अधिक है।
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च और पश्चिम बंगाल के बजट दस्तावेजों के मुताबिक, 2019-20 के लिए सड़कों और पुलों पर राज्य का खर्च बाकी राज्यों के 4.2 प्रतिशत के औसत से काफी पीछे है।
राज्य सरकार पर केंद्रीय योजनाओं को लागू न करने का आरोप लगाया गया है जिनमें पीएम स्वनिधि योजना, आयुष्मान भारत और पीएम किसान सम्मान निधि योजना शामिल हैं।