पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या में दोषी पाए गए और बब्बर खालसा के आतंकवादी बलवंत सिंह राजोआना ने अपनी मौत की सजा को उम्र कैद में बदलने की मांग सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी थी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जब एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से पूछा, “आपने उसे अब तक फांसी क्यों नहीं दी?”, तो इसे लेकर फिर से राजनीतिक हलचल शुरू हो गई। इससे बीजेपी पंजाब में राजनीतिक मुश्किल में फंस गई है।

बलवंत सिंह राजोआना पंजाब पुलिस में कांस्टेबल था। 

बेअंत सिंह सहित 17 लोगों की हुई थी मौत 

31 अगस्त, 1995 को चंडीगढ़ में स्थित सचिवालय के बाहर बम धमाका हुआ था जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 17 लोग मारे गए थे। इस मामले में राजोआना पर साजिश रचने के आरोप लगे थे और जुलाई 2007 में उसे मौत की सजा सुनाई गई थी लेकिन राजनीतिक दबाव की वजह से उनकी मौत की सजा को टाल दिया गया था। 

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राजोआना की फांसी की तारीख 21 मार्च, 2012 तय की गई लेकिन इसके खिलाफ पंजाब में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए और उसे फांसी नहीं दी जा सकी। सिखों की धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) ने राजोआना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दया याचिका दायर की।

गृह मंत्रालय ने जारी किया था नोटिफिकेशन

इस मामले में एक अहम घटनाक्रम यह हुआ कि 2019 में गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी किया। इस नोटिफिकेशन में राजोआना की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने का प्रस्ताव रखा लेकिन यह कभी लागू नहीं हो सका। 

2022 में बीजेपी ने कहा था कि जेलों की सलाखों के पीछे कैद सिख राजनीतिक कैदियों के मामले में उचित कदम उठाया जाएगा। इससे पहले सिख संगठनों ने अपनी इस मांग को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने रखा था। 

अप्रैल, 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना की मौत की सजा को कम करने से इनकार कर दिया और कहा कि कोई ‘सक्षम प्राधिकरण’ ही दया याचिका पर फैसला कर सकता है। 

रवनीत सिंह बिट्टू ने लगाया था राहुल पर आरोप

बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू जब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए तो उन्होंने एक बड़ा आरोप लगाया। बिट्टू ने कहा कि राहुल गांधी चाहते थे कि वह राजोआना को माफी देने की मांग का विरोध ना करें। लेकिन बाद में बिट्टू ने कहा कि अगर केंद्र सरकार बलवंत सिंह राजोआना को रिहा करने का फैसला करती है तो वह इसका विरोध नहीं करेंगे। 

जनवरी, 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह राजोआना की दया याचिका पर फैसला करे, अगर वह ऐसा नहीं करती है तो अदालत खुद ही इस मामले में फैसला करेगी। 

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बीजेपी के लिए इस मामले में राजनीतिक मुश्किल यह है कि अगर राजोआना को फांसी दे दी जाती है तो उसे दमदमी टकसाल सहित कुछ अन्य सिख संगठन उससे नाराज हो सकते हैं। दूसरी ओर, उस पर यह भी आरोप लग सकता है कि वह एक सिख आतंकवादी के प्रति नरम रुख अपना रही है। 

इस मामले में 15 अक्टूबर को अगली सुनवाई होनी है। 

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने क्या कहा?

पंजाब के राजनीतिक दलों की बात करें तो राज्य में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी ने इस मामले में खुलकर कोई टिप्पणी नहीं की है जबकि कांग्रेस का कहना है कि इस मामले में फैसला केंद्र सरकार को लेना है। शिरोमणि अकाली दल ने कहा, “केंद्र सरकार ने कहा था कि राजोआना की मौत की सजा को कम किया जाएगा, अब बीजेपी अपनी ही सरकार की ओर से जारी किए गए नोटिफिकेशन पर अमल क्यों नहीं कर रही है?” 

बीजेपी ने क्या कहा?

पंजाब बीजेपी के प्रवक्ता सरचंद सिंह खियाला कहते हैं कि 2019 का नोटिफिकेशन बताता है कि केंद्र सरकार इस मामले में गंभीर है और  फिलहाल इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी की सरकार अदालत के फैसले का पूरा सम्मान करेगी।

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