ओमप्रकाश ठाकुर
1971 की जंग में भारत की जीत के बाद दो और तीन जुलाई, 1972 की रात को राजधानी शिमला के बर्नेस कोर्ट में जिन कुर्सियों पर बैठ कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला समझौते का दस्तावेज पढ़ा था और जिस मेज पर उसे रखकर दोनों नेताओं ने उस पर दस्तख्त किए थे वे कुर्सी-मेज आज भी राजभवन आने वाले अतिथियों की सेल्फियां और तस्वीरें खिंचवाने का आकर्षण लिए हुए हैं। बर्नेस कोर्ट में पहले राज्य अतिथि गृह हुआ करता था। अब यहां राज्यपाल रहते हैं।
राजभवन के लोक संपर्क अधिकारी जयंत शर्मा कहते हैं कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जब शिमला आए थे तो उन्होंने व उनके परिवार के सदस्यों ने भी यहां पर तस्वीरें खिंचवाई थीं। इसी तरह बाकी अतिथि भी यहां तस्वीरें खिंचवाते हैं। यह मेज कुर्सियां आज भी राजभवन के समिट हॉल में यहां आने वाले अतिथियों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यही वे मेज-कुर्सियां हैं जहां पर बांग्लादेश युद्ध के दौरान पाकिस्तान के कैद किए 93 हजार के करीब फौजी जवानों व अफसरों को छोड़ने का रास्ता साफ हुआ था।
इनमें से 195 ऐसे पाकिस्तानी फौजी अफसर थे जिन पर युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चलना था। 1971 में तीन से 16 दिसंबर तक 13 दिन की जंग में जिस तरह की हार पाकिस्तान को मिली थी और उसके 93 हजार के करीब फौजियों ने आत्मसमर्पण किया था। करगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल और तोलोलिंग की चोटियों को पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुक्त कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह कहते भी हैं-‘तब दुनिया ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार देखा था कि किसी देश के दो टुकड़े कर दिए गए। यह सब राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से हुआ था। सेना के अलावा कूटनीतिक स्तर पर भी जबरदस्त काम हुआ था।’ शिमला समझौते से जुड़ी ये कुर्सियां और मेज बेशक निर्जीव पड़ी हैं लेकिन यह याद दिलवाने में जरूर सक्षम रहेंगी कि भारत आगे भी इस तरह शक्ति के साथ निपट सकता है।