बड़े उद्योगपतियों को बैंक खोलने का लाइसेंस देते वक्त रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक्स्पर्ट्स की सलाह को दरकिनार कर दिया। सोमवार को आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने आरबीआई के इस कदम की आलोचना की है। दरअसल बिजनेस से जुड़े घरानों को बैंकिंग सेक्टर में एंट्री के लिए जिस प्रोपोजेल को आरबीआई की Internal Working Group (IWG) ग्रुप ने स्वीकृति दी है उसमें कई आर्थिक विशेषज्ञों की सलाह को दरकिनार कर दिया गया है।
रघुराम राजन के लिंक्डइन साइट पर आरबीआई के इस कदम को लेकर कहा गया है कि यह सभी विशेषज्ञ IWG से जुड़े थे। सिर्फ एक को छोड़कर सभी की सलाह थी कि बड़े कॉरपोरेट या उद्योगपतियों को बैंक खोलने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। इन विशेषज्ञो में से 2 लोगों को मानना था कि उद्योगपतियों के इस सेक्टर में आने के बाद कर्ज बढ़ेंगे और उनके मुताबिक यह हमेशा खतरनाक साबित होगा। इतना ही नहीं इन विशेषज्ञों का यह भी कहना था कि इसके आर्थिक और राजनीतिक शक्तियों का बिजनेस घरानों में संतुलन खराब होगा।
IWG ने पिछले सप्ताह अपनी रिपोर्ट जारी कर यह माना था कि सिर्फ एक विशेषज्ञ को छोड़कर अन्य सभी एक्सपर्ट्स की राय थी कि कॉरपोरेट हाउस को बैंकिंग सेक्टर में आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। IWG का नेतृत्व कर रहे पी के मोहंती ने विशेषज्ञों द्वारा दर्ज कराई गई आपत्तियों का जिक्र प्रोपोजल में किया है। इसमें कहा गया है कि कॉरपोरेट हाउस अपने बिजनेस को अनुचित क्रेडिट दे सकते हैं या फिर उधार देने के मामलों में अपने नजदीकी बिजनेस सहयोगियों का पक्ष ले सकते हैं।
विशेषज्ञों ने जो सलाह आरबीआई को दी थी उसमें यह भी कहा गया है कि यह कॉरपोरेट हाउस तेजी से अपना कारोबार बढ़ा रही हैं और अधिक से अधिक उधारी लेकर परिसंपत्तियां खरीद सकती हैं। ऐसा करने से बैंकिंग प्रणाली के लिए जोखिम खड़ा हो सकता हैं। रघुराम राजन औऱ विरल आचार्य ने संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि ‘जब औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस की जरूरत होगी तो वे बिना किसी बाधा के अपने द्वारा खड़े किए गए बैंकों से कर्ज ले लेंगे। ऐसी उधारी से जुड़ा इतिहास बहुत बुरा रहा है। अहम सवाल यह है कि कोई बैंक कैसे एक गुणवत्ता पूर्ण कर्ज का आवंटन कर सकता है जब स्वयं इसका नियंत्रण कर्ज लेने वाले के हाथ में है?’
राजन और आचार्य ने यह भी कहा कि औद्योगिक घरानों के नियंत्रण वाले बैंक राजनीतिक दबाव में भी आ सकते हैं। इन दोनों ने कहा कि हाल में ही वर्ष 2016 में आए समूह उधारी निदशानिर्देशों में ढील दी गई है। उन्होंने कहा कि इसका भी अंतर कर पाना मुश्किल है कि कर्ज लेने वाली कोई इकाई समूह इकाई का हिस्सा है या नहीं।