इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला सुप्रीम कोर्ट के सिर के ऊपर से गुजर गया। टॉप कोर्ट के जस्टिस इतने ज्यादा नाराज थे कि उन्होंने फैसला देने वाले जस्टिस की कानूनी समझ पर भी सवाल उठाए। फिलहाल हाईकोर्ट के फैसले के खारिज करके जस्टिस से जवाब तलब किया गया है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने फैसले की समीक्षा करते हुए कहा कि ये कैसा कानून है। एक तरफ आप आरोपी की अग्रिम जमानत की याचिका को नामंजूर कर रहे हैं। दूसरी तरफ पुलिस को उसे गिरफ्तार करने से भी रोक रहे हैं। डबल बेंच का सवाल था कि कानून की किस किताब में ये लिखा है कि एक जज दो विरोधाभाषी फैसले दे। डबल बेंच का कहना था कि या तो आप जमानत दीजिए या फिर खारिज कर दीजिए। ये कैसे हो सकता है कि आप जमानत की अर्जी को खारिज कर रहे हैं लेकिन आरोपी को अरेस्ट करने से भी रोक रहे हैं।

दरअसल यूपी सरकार बनाम मो. अफजल के केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी की अग्रिम जमानत की अर्जी को सुनने के बाद उसे खारिज करने का फैसला किया। हाईकोर्ट की सिंगल जज के बेंच का कहना था कि मामले को देखने के बाद लगता है कि आरोपी की अग्रिम जमानत की अर्जी को खारिज करना ही ठीक रहेगा। लेकिन उसी दिन उन्होंने पुलिस को आदेश देते हुए कहा कि वो आरोपी को दो माह तक अरेस्ट न करे।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया

डबल बेंच ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों के बेंच के फैसले का हवाला देकर कहा कि हाईकोर्ट आरोपी की याचिका को खारिज या मंजूर कर सकता है। लेकिन एक ही मामले में विरोधाभाषी फैसले से हम भी हैरत में हैं। जस्टिस गवई ने कहा कि जांच के दौरान किसी भी आरोपी को राहत देना गलत है। हाईकोर्ट अग्रिम जमानत की याचिका को मंजूर कर सकता था। लेकिन रिट को खारिज करके आरोपी को राहत देना गले नहीं उतरता। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।