1881 में कराई गई जनगणना के बाद सर डेंजिल इब्ट्समैन ने जाटों के बारे में कहा था, ‘आर्थिक और प्रशासनिक नजरिए से देखें तो जाट समुदाय काफी संपन्न नजर आता है। ये शांतिप्रिय होने के साथ ही अच्छे टैक्सपेयर भी हैं।’ लेकिन वक्त के साथ परिस्थियां भी बदलती चली गईं और आज जाट समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन कर रहा है। हरियाणा सरकार ने उन्हें आरक्षण का भरोसा भी दिया है। आइए जानते हैं जाट आरक्षण से जुड़ी खास बातें..
-1966 में पंजाब से अलग होने के बाद हरियाणा में अब 10 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। इनमें से सात जाट समुदाय से हैं। मनोहर लाल खट्ठर से पहले लगातार 20 साल तक हरियाणा का सीएम कोई जाट नेता ही रहा। हरियाणा की कुल आबादी में 29 प्रतिशत जाट हैं, जबकि 27 प्रतिशत मतदाता जाट समुदाय ही आते हैं।
-केसी गुप्ता कमीशन के मुताबिक, क्लास वन और क्लास टू सरकारी नौकरियों में 17.82% लोग जाट समुदाय से ही हैं। जाट समुदाय में पुरुषों 45% पुरुष साक्षर हैं, जबकि महिलाएं 30 प्रतिशत। जमीन की बात करें तो प्रत्येक जाट के पास औसतन 2 से 3 एकड़ जमीन है। केवल 10 प्रतिशत जाट भूमिहीन हैं। कुछ दशक पहले जाटा समुदाय का एक वर्ग पिछ़ड़ी जाति में शामिल नहीं होना चाहता था, क्योंकि उस वक्त उनके जमीन बहुत ज्यादा थी और अधिकतर परिवार ज्वॉइंट थे।
-साल 2002 में राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने हरियाणा समेत कई राज्यों में जाटों के पिछड़ेपन को लेकर सर्वे किया था।
लेकिन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में जाट समुदाय को दूसरी जातियों के मुकाबले उच्च माना था।
-साल 2005 में कांग्रेसी नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जाटों को ओबीसी आरक्षण देने का वादा किया था और वो मुख्यमंत्री बने थे। अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम दिनों में हुड्डा ने ने जाट समेत चार जातियों को 10 प्रतिशत आरक्षण के साथ विशेष पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल किया था। हालांकि, जाट इससे संतुष्ट नहीं थे।
-मौजूदा सीएम मोनहर लाल खट्टर ने जाटों को 20 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही है, जिसे जाट मानने को तैयार नहीं हैं। वे 27 प्रतिशत आरक्षण मांग रहे हैं। इसके अलावा खट्टर ने यह भी वादा किया है कि वह सालाना 6 लाख कमाने वालों को भी आर्थिक रूप से पिछड़ा मानने को तैयार हैं। अभी सालाना ढाई लाख कमाने वाले जाट ही पिछड़े माने जाते हैं।
-2014 में ही आम चुनाव से ठीक पहले यूपीए सरकार ने हरियाणा समेत नौ राज्यों के जाटों को ओबीसी का दर्जा दे दिया था। हालांकि, राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने जाति आधारित आरक्षण को गलत बताया था, लेकिन यूपीए सरकार ने मार्च 2014 में नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। हालांकि, उसका यह फैसला ज्यादा दिन टिका नहीं और मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। मोदी सरकार ने इस फैसले के बाद रिव्यू पिटीशन डाली हुई है, जिस पर अभी तक फैसला नहीं आया है।
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