Ram Navami Surya Tilak Ayodhya: अयोध्या के राम मंदिर में इस बार राम जन्मोत्सव एक ऐतिहासिक वैज्ञानिक चमत्कार का गवाह बनेगा। अब हर रामनवमी को दोपहर ठीक 12 बजे सूर्य की किरणें सीधे रामलला के मस्तक पर आभामंडल रचेंगी। यह सूर्य तिलक तंत्र आने वाले 20 वर्षों तक लगातार कार्य करेगा, जिससे हर वर्ष राम जन्मोत्सव पर यह अद्भुत नजारा देखने को मिलेगा। इस तकनीक को विकसित करने के लिए रुड़की से वैज्ञानिकों की एक टीम अयोध्या पहुंच चुकी है, जो विशेष दर्पण और लेंस की मदद से सूर्य की किरणों को गर्भगृह तक पहुंचाने की व्यवस्था कर रही है।

न बिजली का उपयोग होगा और न ही बैटरी का किया जाएगा

वैज्ञानिकों ने इस पूरे तंत्र को “सूर्य तिलक तंत्र” नाम दिया है, जो पूरी तरह गियर आधारित है और इसमें बिजली या बैटरी जैसी किसी आधुनिक ऊर्जा का उपयोग नहीं किया गया है। इस बार 6 अप्रैल को रामनवमी के दिन इस तंत्र का पहला सार्वजनिक प्रयोग होगा, जिसमें दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें रामलला के माथे पर 75 मिमी के गोलाकार रूप में तीन से चार मिनट तक ठहरेंगी। सीबीआरआई रुड़की के विशेषज्ञों ने इसे इस प्रकार डिजाइन किया है कि यह हर वर्ष बिना किसी अतिरिक्त बदलाव के सुचारू रूप से कार्य करता रहेगा।

अयोध्या में राम लला का भव्य सूर्य तिलक, इस तरह हुआ विज्ञान का चमत्कार

सूर्य तिलक की प्रक्रिया अपने आप में एक अनूठा इंजीनियरिंग चमत्कार है। मंदिर की तीसरी मंजिल पर लगे शीशे से सूर्य की किरणें परावर्तित होकर पीतल के पाइप में प्रवेश करेंगी। फिर यह किरणें कई दर्पणों और लेंसों से गुजरकर तीव्र होती जाएंगी और अंततः गर्भगृह में प्रवेश कर रामलला के मस्तक पर पड़ेंगी। इस पूरे सिस्टम में 90 डिग्री पर घूमने वाली परावर्तन तकनीक का उपयोग किया गया है, जिससे किरणों की दिशा नियंत्रित रह सके।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु के शोध के अनुसार, इस सूर्य तिलक का समय हर साल थोड़ा-थोड़ा बढ़ता जाएगा। यह चक्र 19 वर्षों तक चलेगा और फिर 2025 जैसी स्थिति 2044 में दोहराई जाएगी। वैज्ञानिकों ने इसे भारतीय पंचांग और ग्रेगोरियन कैलेंडर के जटिल अंतर के आधार पर निर्धारित किया है। यह विज्ञान और आध्यात्म का अनूठा संगम है, जहां खगोलीय गणनाओं का उपयोग आस्था की सजीव अनुभूति को और भी दिव्य बनाने के लिए किया गया है।

इस प्रकार का सूर्य तिलक पहले भी कुछ जैन मंदिरों और कोणार्क के सूर्य मंदिर में किया गया है, लेकिन राम मंदिर में इसे एक नई इंजीनियरिंग तकनीक के साथ लागू किया जा रहा है। यह तंत्र न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक दिव्य अनुभव होगा बल्कि भारतीय विज्ञान और परंपरा के अद्भुत मेल का एक जीवंत प्रमाण भी बनेगा। अयोध्या में राम जन्मोत्सव अब केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ऐतिहासिक बन चुका है।