डॉ. शमिका सरवणकर

अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा की चर्चा दुनियाभर में हो रही है। इसके साथ ही रामकथा और भगवान को लेकर विभिन्न धर्मग्रंथों में लिखी गईं बातों को लेकर भी चर्चा हो रही है। जैन रामायण में एक जगह यह बताया गया है कि लंका के राजा रावण का वध राम ने नहीं लक्ष्मण ने किया था। जैन रामायण दार्शनिक स्तर पर अन्य रामायणों से बहुत अलग है।

जैन रामायण में असुरों, राक्षसों और बंदरों के बारे में भी है कथा

इस रामायण की शुरुआत वाल्मिकी रामायण की तरह नहीं है, बल्कि कहानी की शुरुआत में विद्याधर, असुर और वानर क्षेत्र का वर्णन है। यह रामायण आज भी भारतीय जनमानस के मन में असुर, राक्षस कहने पर जो छवि बनी रहती है, उसे तोड़ती है। इसमें विमलसूरि ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि राक्षस, असुर भयानक नहीं होते। यह सांस्कृतिक रूप से उन्नत समाज है। रावण मेघवाहन कुल का है और एक सम्मानित जैन है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई जैन मंदिरों का निर्माण कराया। मूलतः इस रामायण के अनुसार रावण सुन्दर एवं गुणवान था और जैन मन्दिरों का रक्षक था। केवल सीता ही उसकी कमजोरी थी और वही उसकी गलती थी। जैसा कि वाल्मिकी रामायण में है, यहां रावण प्रतीकात्मक रूप से दस मुख वाला है। रावण को उसकी मां द्वारा दिए गए नौ बहुमूल्य रत्नों के हार से पत्थरों पर प्रतिबिम्ब के कारण उसके अपने तथा नौ अन्य चेहरों का आभास होता था। इसीलिए उनका नाम दशमुख पड़ा, ऐसा जैन रामायण कहता है। इस रामायण में जो वानरों का समूह है वह वानरों का समूह नहीं है। तो यह एक जुझारू आदिवासी समाज है।

सोने के मृग को मारने के बारे में नहीं बताया गया है

इस रामायण में कहीं भी राम ने सोने के मृग को नहीं मारा। दूसरी ओर, रावण ने लक्ष्मण का रूप धारण करके सीता को धोखा दिया और उनका अपहरण कर लिया। पूरी कहानी में बार-बार राम और रावण द्वारा जैन धर्म का सम्मान करने का उल्लेख मिलता है। राम जैन धर्म के सिद्धांतों के अनुयायी थे। इसलिए इन सिद्धांतों का सम्मान करने के लिए उन्होंने किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुंचाया। इसीलिए राम ने अंतिम युद्ध में रावण के विरुद्ध हथियार नहीं उठाए। अत: लक्ष्मण ने रावण का वध किया। इसके बाद लक्ष्मण और रावण दोनों को नरक की प्राप्ति हुई। जैन धर्म में राम पूजनीय हैं। राम जैन धर्म में 63 शलाका पुरुषों (अत्यधिक पूजनीय) में से एक हैं। जैन धर्म में राम को आठवां बलभद्र माना जाता है। रावण और लक्ष्मण के बीच युद्ध के बाद, राम एक जैन ऋषि बन गए। और अंततः राम को महाराष्ट्र के तुंगीगिरी में निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हुआ, जैसा कि रामायण के निर्वाणकांड में वर्णित है। आज भी महाराष्ट्र में तुंगी जैनियों का तीर्थ स्थान है।

जैन रामायण में महिला भूमिकाओं का सम्मान किया गया है

विमलसूरि की जैन रामायण एक नारीवादी रामायण है। इस रामायण में सीता को अग्नि-परीक्षा नहीं देनी पड़ती, बल्कि वह जैन संप्रदाय में दीक्षा लेकर साध्वी बन जाती हैं। वस्तुतः कैकेयी यहां खलनायिका नहीं है। विमलसूरि कैकेयी को दोष नहीं देते। वह बताते हैं कि उनके कार्यों के पीछे एक मां की भूमिका होती है। भरत ने इस मायावी दुनिया को त्यागकर जैन मुनि बनने का फैसला किया। उस समय वह दशरथ को इस भूमिका से विमुख करने के लिए उन्हें राजा बनाने के लिए मनाती है। जैसे ही राम को इस बात का एहसास होता है, राम स्वयं वनवास स्वीकार कर लेते हैं। क्योंकि वह कल्पना करते हैं कि भरत उनके रहते कभी भी सत्ता नहीं संभालेंगे।

जैन धर्म की शुरुआत को लेकर है मतभेद

भारतीय संस्कृति विभिन्न दर्शनों की उत्पत्ति के लिए जानी जाती है। इसमें सभी प्रकार के दर्शनों को स्वतंत्र अस्तित्व दिखता है। इसी दार्शनिक परंपरा में एक प्राचीन दर्शन जैन धर्म के रूप में भारतीय संस्कृति को समृद्ध कर रहा है। कुछ विद्वानों का मानना है कि जैन संप्रदाय की उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान हुई थी। इसको लेकर मतभेद हैं, लेकिन ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि जैन धर्म की वास्तविक इतिहास ईसा पूर्व छठी शताब्दी से शुरू होता है। प्रथम मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म की दीक्षा लेने के बाद अपने जीवन के अंत में पश्चिमी भारत के महाराष्ट्र और कर्नाटक चले गए। ऐसे में मौर्य काल से ही पश्चिमी भारत में जैन सम्प्रदायों के प्रभाव के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं।

जैन रामायण और महाराष्ट्र के बीच संबंध

ईसा पूर्व से ही महाराष्ट्र में प्राकृत भाषा का प्रयोग होता आया है। यह भाषा मुख्यतः सातवाहन काल के कई अभिलेखों में पाई जाती है। इसीलिए यह भाषा महाराष्ट्रियन प्राकृत के नाम से प्रसिद्ध है। जैन धर्म की मानी जाने वाली आद्य रामायण इसी भाषा में उपलब्ध है। इससे विद्वानों का मानना है कि रामायण की उत्पत्ति महाराष्ट्र या उसके आसपास हुई होगी। इस रामकथा के रचयिता विमलसूरि एक जैन मुनि हैं। उनके द्वारा लिखी गई पौमचरियु रामायण जैन साहित्य की 17 विभिन्न राम कहानियों में से सबसे शुरुआती है। पौमचरियु का अर्थ है ‘पद्म (राम) की जीवन कहानी’। विमलसूरि प्रथम ‘हरिवंशाचार्य’, जैन महाभारत के लेखक भी हैं।