अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन होने वाला है। सालों से इंतजार कर रहे भगवान राम के भक्तों का अब जाकर इंतजार खत्म होने वाला है। सालों से पंडाल में रहने वाले भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। वे दशकों बाद गर्भ गृह में विराजमान होंगे। हर तरफ राम मंदिर की चर्चा हो रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, मंदिर तीन तल का बनेगा। फिलहाल प्रथम तल तैयार हो चुका है। खबर है कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंदिर का काम चालू रहेगा। बता दें कि राम मंदिर का निर्माण बेहद खास तरीके से किया गया है, यह बेहद आकर्षक है। असल में राम मंदिर के निर्माण में लोहे या स्टील का प्रयोग नहीं किया गया है। हालांकि मंदिर की लंबाई-380, चौड़ाई-250 फीट और ऊंचाई-161 फीट होगी फिर भी इसे सिर्फ पत्थर से बनाया गया है। चलिए बताते हैं कि ऐसा क्यों किया गया है।
दरअसल, मंगिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है। इसकी पुष्टि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने की है। असल में लोहे का इस्तेमाल ना करने की वजह से मंदिर की एक हजार सालों तक ऐसे ही रहेगा। वहीं एक इसकी मरम्मत भी नहीं करनी पड़ेगी। इसे बनाने में सीमेंट, कंक्रीट और लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। जब इमारतें बनाई जाती हैं तो लोहे की छड़, सीमेंट और कंक्रीट का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि राम मंदिर में नींव भी आर्टिफिशियल रॉक से बनाई गई है। जो बाद में चट्टान बन जाएगी।
क्यों नहीं किया गया लोहे या स्टील का इस्तेमाल
राम मंदिर में लोहा का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया गया ताकि मंदिर का आयु लंबी हो। यानी मंदिर हजारों सालों सेम रहे। रिपोर्ट के अनुसार, चंपत राय का कहना है कि अगर मंदिर में सरिया लगाया जाता तो इसकी आयु कम हो जाती। इतना ही नहीं, बार-बार मंदिर की मरम्मत करानी पड़ती।
दरअसल, लोहे में जंग लग जाती है। जंग लगने के कारण मंदिर की नींव कमजोर हो जाती और इसकी आयु घट जाती। लोहे की रॉड के कारण मंदिर एक हजार सालों तक नहीं टिक पाता। असल में पहले के समय में ईमारतें बिना लोहे की ही बनती थीं। इसी कारण हम कई सालों पुरानी ईमारतें देख पाते हैं। इसी तरह राम मंदिर को भी आने वाली पीढ़ी कई सालों बाद भी देख पाएगी।