जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि मुस्लिमों सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत अयोध्या में जमीन नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद को 5 एकड़ जमीन नहीं लेनी चाहिए। अयोध्या बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में कोर्ट ने सबूतों के आधार पर फैसला दिया है और हम सभी को इसका सम्मान करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ‘कोर्ट ने यह भी माना कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई। जिन लोगों ने मस्जिद तोड़ी थी, उन्ही के हक में फैसला सुना दिया गया। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद तोड़ने के लिए भी उन्हें ही अपराधी भी माना है। फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करनी है या नहीं इसका फैसला कमेटी की बैठक में लिया जाएगा।’

बता दें कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाया है कि विवादित 2.77 एकड़ की जमीन को हिंदू पक्ष को दिया जाए जबकि पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन दी जाए।

जमीन मुहैया करवाए जाने के इस फैसले पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि हमें जमीन नहीं चाहिए। यह जमीन कोर्ट ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दी है लेकिन हम उनसे भी कहेंगे की वह जमीन वापस कर दें। कोई हमें मस्जिद के लिए पांच एकड़ तो क्या 500 एकड़ जमीन भी दे तो हमें तब भी नहीं लेनी चाहिए।

एआईएमपीएलबी नहीं बनना चाहती पक्षकार: अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पुर्निवचार की मांग करने या न करने को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक के मद्देनजर मुख्य वादी इकबाल अंसारी ने कहा कि वह इसमें पक्षकार नहीं बनना चाहते और बोर्ड जो चाहे वह कर सकता है।