दशकों पुराने अयोध्या मामले में एकबार फिर मध्यस्थता की कवायद विफल साबित हुई है। सुप्रीम कोर्ट में मध्यस्थता पैनल ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट पेश की। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई ने कहा कि मध्यस्तथा के लिए गठित पैनल किसी भी अंतिम निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सका। सीजेआई ने कहा कि मामले की सुनवाई अब हर दिन होगी। गोगोई ने कहा कि मामले को सुप्रीम कोर्ट में 6 अगस्त से रोजाना सुना जाएगा। मालूम हो कि अब तक 4 बार मध्यस्थता की कोशिश हुई है और सभी कोशिशें बेकार रही हैं।
सबसे पहले 1994 में विश्व हिंदू परिषद् (वीएचपी) और बाबरी एक्शन कमेटी के बीच भी इस तरह की कवायद की गई लेकिन यह अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सकी। इसके बाद 2003 में कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य ने इस विवाद को सुलझाने की कोशिशि की थी लेकिन यह कोशिश भी असफल रही। इसके बाद मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एकबार फिर कोशिश की। तत्कालीन सीजेआई जेएस खेहर ने कहा कि अगर तमाम पक्ष मसले को सुलझाने के लिए कोर्ट के बाहर बातचीत के लिए तैयार हैं तो कोर्ट भी मध्यस्थता के लिए तैयार है। इसमें बीजेपी के फायरब्रांड नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी अहम भूमिका निभाई लेकिन मसला जस का तस रहा। इसके बाद 2017 में ही आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी के बीच मध्यस्थ्ता की कोशिशें फेल रही।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक पैनल बनाया गया था जिसके सदस्य रिटायर्ड जस्टिस एफ एम आई कलिफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और सीनियर एडवोकेट श्रीराम पांचू थे। इस पैनल को मध्यस्था की प्रक्रिया को पूरी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।मध्यस्थता प्रक्रिया की सीक्रेसी बरकरार रखने और इसे किसी किस्म के मीडिया ट्रायल से बचाने के लिए अदालत ने इसकी रिपोर्टिंग पर भी बैन लगाया हुआ था।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि राम लला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड जमीन को तीन बराबर हिस्सों में आपस में बांट लें। हालांकि मामले पर अभी तक यथास्थिति बरकरार है। इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें दायर की गई हैं।