16 अगस्त 2018 को देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का निधन हो गया। वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वे उन शख्सियतों में शामिल थे, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी। विपरीत परिस्थतियों में भी धैर्य बनाए रखा। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत 18 साल की उम्र में सन् 1947 में भारत छोड़ो आंदोलन से की थी। उसके 11 साल बाद 1953 में उन्होंने अपना पहला चुनाव लड़ा था। यशवंत देशमुख (जिनके पिता यादव राव देशमुख अटल जी के करीबी थे) के अनुसार, अटल जी लखनऊ के अपने पहले चुनाव में हार गए थे। हार के बाद वे सिनेमा देखने चले गए थे। यह एक उपचुनाव था, जो पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित द्वारा यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली ज्वाइन करने के लिए लखनऊ सांसद पद से इस्तीफा देने के बाद हुआ था।

यशवंत देखमुख ने ट्वीट किया, “1957 में अटल जी पहली बार लोकसभा सांसद का चुनाव जीते थे लेकिन उन्होंने 1953 में पहला चुनाव लड़ा था। 1953 के चुनाव की कई कहानियां हैं। उनमें से एक यह भी है कि कैसे हार के बाद अटल जी ने किस तरह की प्रतिक्रिया दी थी। यह बात मेरे पिता जी ने 1984 में बताई थी। उन्होंने बताया कि जब शाम में 1953 में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो अटल जी सिर्फ चुनाव ही नहीं हारे थे, वे तीसरे नंबर पर थे। और 1953 की उस निर्णायक शाम के बाद वे साइकिल से सिनेमा हॉल चले गए।” देशमुख आगे याद करते हुए बताते हैं कि, “वह फिल्म ‘बैजू बावरा’ थी।”

 

यशवंत देखमुख ने 1953 की उस शाम की बातों को लिखा, जो उनके पिता यादव राव देशमुख और अटल जी के बीच हुआ था। दोनों के बीच का संवाद यह बताने का काफी है कि अटल जी के अंदर सभी तरह की परिस्थितयों की सामना करने की शक्ति थी। उनके तरीके अपने थे।