असम की हेमंता विस्व सरमा की सरकार ने छह छह धार्मिक अल्पसंख्कों को माईनॉरिटी सर्टिफिकेट देने का फैसला किया है। इनमें मुस्लिमों के अलावा ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन व पारसी समुदाय को शामिल किया गया है। असम के मंत्री केशब महंता का कहना है कि सरकार ने ये फैसला अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट पर लिया है। इससे समुदायों को सहूलियम मिलेगी।

केशब महंता ने बताया कि असम में अल्पसंख्यकों को ये सर्टिफिकेट क्यों दिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि इससे अल्पसंख्यकों की पहचान करने में मदद मिलेगी। सरकार के पास अल्पसंख्यकों के लिए कई सारी योजनाएं हैं। उनके लिए अलग से विभाग है। लेकिन अल्पसंख्यक कौन हैं, इसकी पहचान नहीं है। सरकारी योजनाएं सही से सिरे चढ़ें इसके लिए उनकी पहचान करना जरूरी है।

उधर, असम विधानसभा में विपक्ष के नेता ने कहा कि इस कदम से समुदायों के बीच और विभाजन हो सकता है। देवव्रत सैकिया ने कहा कि जैसी घोषणा की गई थी उसने अब हम यह सोचने पर मजबूर हैं कि ऐसे आईडी कार्ड का क्या उपयोग किया जाएगा? संविधान पहले ही इन छह धार्मिक समुदायों को दूसरों की तरह उनके अधिकार प्रदान कर चुका है।

भारत में अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में केंद्र ने बताया था कि किसी राज्य में अगर किसी धर्म या के आधार पर लोगों की आबादी 50 फीसदी से कम है तो उसे अल्पसंख्यक माना जाएगा। भारत के संविधान में अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30 में उन लोगों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं जो भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक असम में सबसे ज्यादा 61.47 फीसदी आबादी हिंदुओं की है। सूबे में 34.22 फीसदी मुस्लिम, 3.74 फीसदी ईसाई और सिख 0.07 फीसदी है। बौद्ध .18 और जैन .8 फीसदी हैं। इनकी गणना जनसंख्या के हिसाब से केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग करता है। उसकी रिपोर्ट पर अल्पसंख्यक कौन होगा? इसका फैसला केंद्र सरकार करती है। अल्पसंख्यक वो समुदाय होता है, जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करती है।