Himanta Biswa Sarma Government: असम में इन दिनों बड़े पैमाने पर अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चल रहा है। शनिवार को भी गोलपाड़ा जिले के विद्यापाड़ा में ऐसा ही अभियान चलाया गया। गोलपाड़ा के अलावा धुबरी, लखीमपुर, नलबाड़ी समेत कई जिलों में अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया जा चुका है और सिर्फ एक महीने में 3300 से ज्यादा परिवारों को बेदखल कर दिया गया है। इनमें से ज्यादातर परिवार बंगाली मूल के मुसलमान हैं।
राज्य सरकार का दावा है कि यह सभी लोग सरकार/वन विभाग/पंचायत की जमीन पर अतिक्रमण कर रहे थे।
शनिवार को जब गोलपाड़ा के विद्यापाड़ा में अभियान चलाया गया तो पूरे इलाके को छह ब्लॉक में बांटा गया और हर ब्लॉक में छह बुलडोजर मिलाकर कुल 36 बुलडोजर तैनात किए गए। अभियान में किसी तरह की ‘रुकावट’ ना आए इसके लिए पूरे इलाके में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था। विद्यापाड़ा में हटाए गए परिवारों की संख्या 1080 है।
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28 साल के रोकिबुल हुसैन विद्यापाड़ा के रहने वाले हैं। यहां रहने वाले सभी परिवारों ने पुलिस फोर्स और बुलडोजर के आने से पहले ही अपने घरों से टीन की छत हटा दी थी और सारा सामान ले जा चुके थे। हुसैन कहते हैं, ‘हमने अपना सारा सामान एक रिश्तेदार के घर पर रख दिया लेकिन रात को यहीं रुके थे।’
लगभग एक महीने से इस इलाके में रहने वाले लोग उन्हें यहां से बेदखल किए जाने के डर से जी रहे थे। शेख राजू अहमद (23) ने बताया कि उनसे पहले ही कहा गया था कि उन्हें 27 जून से पहले यहां से चले जाना चाहिए।
अहमद ने कहा, ‘पिछले 20 दिनों से पुलिस और अन्य बलों के जवान यहां चक्कर लगा रहे हैं। पिछले दो दिनों में सभी ने अपना घर खाली कर दिया और जहां सामान रख सकते थे रख दिया।’ इससे सटी जंबारी बस्ती में रहने वाले समेश अली (28) कहते हैं कि सात परिवारों ने अपना सामान उनके घर में रखा है लेकिन उनके यहां रहने की जगह नहीं है इसलिए शायद उन्हें कहीं और अपना ठिकाना बनाना पड़ेगा।
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अदालत से नहीं मिला स्टे
इन लोगों का दावा है कि उनके परिवारों ने यह प्रॉपर्टी यहां रहने वाले गोरो निवासियों से ‘राजस्व भूमि’ के रूप में खरीदी थी लेकिन उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट से अतिक्रमण के अभियान पर उन्हें स्टे नहीं मिला। इस मामले में वन विभाग के अफसरों और जिला प्रशासन का कहना है कि यह अभियान हाई कोर्ट के उस निर्देश पर चलाया जा रहा है जिसमें कहा गया है कि वन विभाग की जमीन को खाली कराया जाए और मानव-हाथी के संघर्ष को कम किया जाए।
दो लोगों की हो गई थी मौत
इस हफ्ते की शुरुआत में धुबरी में जब ऐसा ही अभियान चला तो कुछ लोगों ने बुलडोजर पर पथराव कर दिया था। पुलिस ने इसके खिलाफ लाठीचार्ज किया। पिछले साल सोनापुर में प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ झड़प हुई थी और इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी।
फैजुल हक नाम के शख्स को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया क्योंकि उसका घर गिराए जाने से पहले वह फांसी लगाने की कोशिश कर रहा था। यहां रहने वाले शाहजहां अली कहते हैं, ‘यहां कोई लड़ने वाला नहीं है… अगर आप रोएंगे भी तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपके घर को छोड़ दिया जाएगा और अगर आप विरोध करने की कोशिश करेंगे तो आपकी जान जा सकती है। हम इस बारे में कुछ नहीं कर सकते।’
पिछले चुनाव में बीजेपी ने किया था वादा
2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने वादा किया था कि वह सरकार की जमीन को ‘अतिक्रमणकारियों’ से मुक्त कराएगी और इसे ‘स्वदेशी भूमिहीन लोगों’ को देगी। पिछले कुछ महीनो में इस तरह के अभियान काफी तेज हुए हैं। असम में अब विधानसभा चुनाव होने में 1 साल से भी कम का वक्त बचा है और इसलिए यह मामला राजनीतिक रूप से काफी बड़ा हो चुका है।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने हाल ही में कहा था कि जिन जगहों पर यह अभियान चल रहा है वहां सरकार ‘डेमोग्राफी को रीस्टोर’ करने की कोशिश कर रही है जबकि कांग्रेस के सांसद रकीबुल हुसैन ने दावा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह बीजेपी सरकार में बेदखल किए गए सभी लोगों को मुआवजा देगी।