असम की हिमंत बिस्वा सरमा की सरकार ने राज्य की बॉर्डर पुलिस को निर्देश दिया है कि वह 2014 के आखिर से पहलेर भारत में एंट्री करने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई लोगों के नागरिकता मामलों को सीधे फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में ना भेजें। इसके बजाय बॉर्डर की पुलिस को उन्हें सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन देने के लिए बढ़ावा देना चाहिए।
सीएए को लेकर असम की ब्रह्मपुत्र घाटी समेत देश के कई हिस्सों में जमकर विरोध प्रदर्शन हुआ था। वहीं, बंगाली भाषी बराक घाटी में इसका स्वागत किया गया था। सीएए के तहत नागरिकता देने का काम भी शुरू कर दिया गया है। सीएए की वजह से अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में एंट्री करने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागिरकता मिलती है।
असम राज्य की सीमा बांग्लादेश के साथ में लगी हुई है। यहां पर पड़ोसी देश से अवैध इमिग्रेशन का सवाल काफी लंबे समय से एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। 24 मार्च 1971 के बाद राज्य में एंट्री करने वाले लोगों को विदेशी और अवैध अप्रवासी तय करने के तरीके अलग-अलग हैं। असम समझौते के मुताबिक, नागरिकता के लिए कट ऑफ डेट अवैध अप्रवासी और विदेशी नागरिक के बीच में अंतर बताती है।
केवल आठ लोगों ने नागरिकता लेने के लिए आवेदन दिया
असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने सोमवार को कहा कि सीएए के नियम लागू होने के चार महीनों बाद राज्य में केवल 8 लोगों ने ही नागरिकता के लिए आवेदन दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि इन आठ लोगों में से केवल दो ही प्रक्रिया में शामिल होने के लिए आए। 5 जुलाई को असम सरकार के गृह और राजनीतिक विभाग ने असम पुलिस के डीजीपी को पत्र लिखकर कहा कि सीएए के नियमों के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के पास नहीं भेजा जाए और ऐसे लोगों के खास रजिस्ट्री रखी जाए।
गृह और राजनीतिक विभाग के सचिव पार्थ प्रतिम मजूमदार ने कहा कि बार्डर पुलिस 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में एंट्री करने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदायों के लोगों के मामलों को सीधे फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के पास में नहीं भेज सकती है। ऐसे में इन लोगों को नागरिकता लेने के लिए पोर्टल पर आवेदन करने के लिए कहा जा सकता है। इसका फैसला भारत सरकार तथ्यों के हिसाब से करेगी। इस तरह के लोगों के लिए एक रजिस्टर अलग से बना सकते हैं।
31 दिसंबर 2014 के बाद असम में एंट्री करने वाले लोगों के साथ किसी भी तरह का गलत व्यवहार नहीं किया जाएगा। चाहे वह किसी भी धर्म से संबंध रखता हो। पत्र में कहा गया कि एक बार पता चलने के बाद में उन्हें आगे की कार्रवाई के लिए फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के पास में भेज दिया जाना चाहिए। एक सरकारी सूत्र ने कहा कि नया कानून बिल्कुल क्लियर है। उन्होंने कहा कि जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले एंट्री कर चुके हैं, वह नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र हैं। उन पर किसी भी तरह का केस नहीं चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इस कानून के नियमों के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं होगी।
क्या है फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल
असम का फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल वह है जो यह तय करता है कि उसके सामने पेश किया गया शख्स भारतीय है या कोई विदेशी नागरिक है। इसके पास दो तरह के मामले भेजे जाते हैं। इसमें पहले वह मामले होते हैं जो बार्डर की पुलिस इनके पास भेजती है। इसमें वह विदेशी होने के शक के आधार पर मामलों को भेजती है। वहीं दूसरे मामलों की बात करें तो वह वोटर्स लिस्ट में मतदाता के तौर पर रजिस्टर्ड होते हैं।
नागरिकता के लिए आवेदन करने का अधिकार- सीएम सरमा
सोमवार को सीएम सरमा ने कहा कि जो कोई भी 2015 से पहले भारत आया है, उसे नागरिकता के लिए आवेदन करने का पहला अधिकार है। अगर वे आवेदन नहीं करते हैं, तो हम उनके खिलाफ मामला दर्ज करते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में किसी भी तरह की कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। उन सभी को सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने का मौका दिया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह संभावना नहीं है कि ऐसे लोग सीएए के तहत नागरिकता हासिल करेंगे।
सरमा ने कहा कि हिंदू बंगालियों के लिए यह साबित करने के आसार ज्यादा हैं कि वे पहले से ही नागरिक हैं। उन्होंने कहा कि जिन भी हिंदू बंगालियों ने हमने संपर्क किया किया। उनमें से ज्यादातर सभी लोगों ने कहा कि हम भारतीय है और हमारे पास सभी तरह के कागजात मौजूद हैं। हमने बराक घाटी में अपनी पार्टी की तरफ से आउटरिच कार्यक्रम किए, लेकिन कोई भी आवेदन नहीं कर रहा है।