दर्जनों नाटक, उपन्यास, लघु कथाएं और चालीस के करीब रचनाएं लिख चुके मशूहर लेखक असगर वजाहत ने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी है। 73 वर्षीय वजाहत ने हाल के दिनों में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के चलते सुर्खियों में रही जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बारे में भी बात की, जहां उन्होंने करीब 42 साल तक पढ़ाया। उन्होंने कई नाटक भी लिखे जो खासे मशहूर हुए। पढ़िए उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश-
सवाल- राजकुमार संतोषी द्वारा आपका नाटक गोडसे@गांधी.कॉम (2012) पर्दे पर उतारने के लिए अनुकूलित किया जा रहा है। यह आज क्या प्रासंगिक बनाता है?
जवाब- यह नाटक ऐसे बिंदु पर शुरू होता है जब गांधी देशद्रोह के आरोप में खुद को गोडसे के साथ जेल में पाते हैं। गोडसे जिसने गांधी की हत्या करने की कोशिश की। नाटक में गांधी गोडसे से जुड़ना चाहते हैं ताकि यह समझ सकें कि उनसे नफरत करने की वजह क्या है। आज, जब हम लोगों को उनकी विचारधाराओं के चलते उन्हें विभाजित देखते हैं, तो केवल बातचीत के माध्यम से हम इसे हल करने की उम्मीद कर सकते हैं। हालांकि प्रकाशित होने के बाद से यह नाटक खासा विवादित रहा है। कुछ अन्य चीजों के अलावा इसमें इसमें गोडसे को एक लोकप्रिय व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है, जिसे कई चीजें पसंद हैं। मगर नाटक में मैंने सिर्फ सच को चित्रित किया है।
सवाल- आपने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) से पढ़ाई की और हिंदी के प्रोफेसर के रूप में पहली नौकरी जामिया में शुरू की, जहां साल 2013 में रिटायरमेंट के बाद भी आप गेस्ट लेक्चरर के रूप में पढ़ा रहे हैं। मगर इन तीनों संस्थानों में हर एक आज विवाद के केंद्र में है।
जवाब- इन विश्वविद्यालयों में से प्रत्येक की इतिहास और विरासत की उन संस्थानों के रूप में ब्रांडिंग की जा रही है जो घृणा या एक निश्चित विचारधारा का प्रजनन करते हैं। मगर वास्तव में जामिया ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली को अस्वीकार करने के गांधीजी के आह्वान के जवाब में स्थापित किया गया था। महात्मा गांधी के पुत्र देवदास इस संस्थान के पहले हिंदी टीचर थे। जामिया एक मुस्लिम संस्थान हो सकता है मगर एडमिशन फॉर्म में धर्म का एक कॉलम तक नहीं है।
सवाल- जिस वक्त कैंपस में हमला हुआ, क्या आप उस वक्त वहां मौजूद थे?
जवाब- नहीं मैं वहां नहीं था। जो हुआ वो दुखद है। अगर पुलिस वास्तव में मानती है कि परिसर के अंदर अराजक तत्व मौजूद थे, तो स्थिति से निपटने के लिए अन्य तरीके हो सकते थे। बच्चों को आतंकित करना, लाइब्रेरी को नुकसान पहुंचाना, लड़कियों की पिटाई करना…ये सब देखना दर्दनाक था। हम डरे हुए हैं कि सरकार एएमयू की तरह हमें भी बंद करने के बहाने ढूंढ रही होगी। यह आसान भी है क्योंकि हमें केंद्र सरकार द्वारा फंड मिलता है।
सवाल- जिस लाहौर नई देखिया, वो जमियाई नई (1989) एक हिंदू महिला की कहानी बताता है जिसने बंटवारे के बाद भी लाहौर में ही रहना पसंद किया। घटना के चालीस साल बाद आपने क्या देखा?
जवाब- एक बार जब आप स्वीकार कर लेते हैं कि दो अलग-अलग धर्मों के लोग एक साथ नहीं रह सकते, आपको स्वीकार करना होगा कि दो अलग-अलग विचारधाराओं के लोग एक साथ नहीं रह सकते। एक बार जब आप इसे स्वीकार कर लेते हैं, तो जो कोई भी आपके दृष्टिकोण से अलग होता है तब वो ‘अन्य’ बन जाता है। पाकिस्तान इसका एक उदाहरण हैं जो एक मुस्लिम राष्ट्र बन गया। मगर क्या सुन्नी बहुमत ने अन्य मुस्लिम संप्रदायों को स्वीकार किया?
सवाल- एनआरसी और सीएए पर मौजूदा बहस के साथ, एक बढ़ती हुई आशंका है कि भारत धार्मिक रूप से असहिष्णु भविष्य की ओर बढ़ रहा है। क्या आपने इस नाटक को लिखने के समय ऐसा भविष्य देखा था?
जवाब- पिछले कुछ सालों में धर्म के आधार पर लोगों के बीच विभाजन बढ़ रहा है। एकता, धर्मनिरपेक्षता और साझा सांस्कृतिक समझ भारत के विचार के मूल में थे जब इसे बनाया जा रहा था। और सीएए इसे चुनौती देता है। मौजूदा सरकार ने बिना संविधान को बदले इसे बदल दिया। उनकी हरकतें गांधीवादी मूल्यों के खिलाफ हैं और उनका इस्तेमाल ऐसे व्यक्ति के खिलाफ ढाल के रूप में किया है जो उनसे सवाल करता है। मगर इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए? लेफ्ट और समाजवादी आंदोलन मर चुके हैं क्योंकि वो अवाम के साथ जुड़े नहीं रहे। और लोकतंत्र ऐसा सिस्टम हैं जहां आदमी तोला नहीं गिना जाता है।
सवाल- क्या आप अपनी किताब भीड़तंत्र में यह कहने की कोशिश कर रहे हैं?
जवाब- मेरी राय में भारत में लोकतंत्र मौजूद नहीं है। लोकतंत्र सोच से बनता है। जबकि भीड़तंत्र एक भीड़ है, वो बिना सोचे-समझे काम करता है, जो अक्सर भीड़ में बदल जाता है।