आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी अलग ही तरह की राजनीति के लिए जाने जाते हैं। जातियों से ऊपर उठकर उन्होंने आम आदमी वाला एक अलग ही वोटबैंक तैयार किया है। लेकिन समय के साथ और बदलती जरूरतों के हिसाब से केजरीवाल की राजनीति में कई और सियासी रंग जुड़ चुके हैं। अब वे परिपक्व नेता की तरह रणनीति भी बना रहे हैं और अपने विरोधियों को घेरने का काम भी कर रहे हैं। इसी कड़ी में अरविंद केजरीवाल की एक नई नीति सामने आई है- फूट डालो राज करो
केजरीवाल का नया हथियार- बीजेपी को बांटो
असल में अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी पर हमला करने का नया तरीका खोज निकाला है। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस इतने सालों में भी इस मुद्दो को नहीं भुना पाई है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने इसे पकड़ लिया है। लोकसभा चुनाव के दौरान ही इसके रुझान देखने को मिल गए थे जब केजरीवाल लगातार बोला करते थे- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बीजेपी इस्तीफा ले लेगी, उनकी सीएम कुर्सी खतरे में है। वे तो दो कदम आगे बढ़कर यहां तक बोलते थे कि पीएम मोदी अक्टूबर में इस्तीफा दे देंगे, उनकी जगह अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा।
अब इन बयानों के मायने बताएंगे, लेकिन पहले केजरीवाल के एक और बयान को समझना जरूरी हो जाता है। हरियाणा में जनता की अदालत को संबोधित करते हुए जिस तरह से केजरीवाल ने संघ और बीजेपी के बीच में दरार पैदा करने की कोशिश की है, वो किसी से नहीं छिपा। उन्होंने पूरा प्रयास किया है कि बीजेपी अब RSS की एक नहीं सुनती है, बीजेपी अब RSS के दिशा-निर्देशों को नहीं मानती है। अब कहने को संघ-बीजेपी के रिश्ते उसका आंतरिक मामला है, लेकिन राजनीति में ज्यादा समय तक कुछ भी आतंरिक नहीं रहता है और सियासत कब उबाल मारने लग जाए, नहीं कहा जा सकता।
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केजरीवाल के संघ से सवाल, बीजेपी क्यों परेशान?
अब यहां भी आप संयोजक ने पूरी कोशिश की है कि बीजेपी और संघ एक दूसरे के खिलाफ हो जाए। उन्हें इस बात का अहसास है कि आज भी बीजेपी को संघ की जरूरत है, चाहे मीडिया के सामने इस बात को स्वीकार ना किया जाए, लेकिन कई राज्यों में आज भी संघ के सहारे ही बीजेपी अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है। असल में अरविंद केजरीवाल ने RSS से कुल पांच सवाल किए हैं- पहला सवाल तो यह रहा कि क्या बेटा, मां से बड़ा हो चुका है? दूसरा सवाल- क्या भ्रष्ट नेताओं को पार्टी में शामिल करना सही? तीसरा सवाल- क्या मोदी पर लागू नहीं होती उम्र सीमा? चौथा सवाल- विपक्षी नेताओं के पीछे एजेंसी, संघ सहमत?
अब देखिए संघ और बीजेपी के बीच के रिश्ते को समझना जरूरी हो जाता है। उसके बाद ही केजरीवाल के इस बयान के मायने समझे जा सकते हैं। अगर गौर किया जाए तो इस बार के लोकसभा चुनाव में उम्मीद के कम प्रदर्शन कर बीजेपी बुरा फंसी थी। संघ के नेताओं ने ही बीजेपी को आईना दिखाना शुरू कर दिया था। संघ प्रमुख का बयान कि ‘किसी को भी खुद को भगवान नहीं समझ लेना चाहिए, लोगों पर छोड़ देना चाहिए कि वो आपको भगवान मानते हैं या नहीं’ काफी चर्चा में रहा था। उस बयान में पीएम मोदी का नाम नहीं लिया गया, लेकिन जानकारों ने माना कि तंज उसी तरफ था।
संघ और बीजेपी का रिश्ता समझिए
अब संघ की एक बात हमेशा से रही है, उसे देश में बीजेपी का राज जरूर चाहिए, लेकिन उसे बेकाबू बीजेपी से परहेज है। वो कभी नहीं चाहती कि बीजेपी के पास इतनी ताकत आ जाए कि वो उन्हें ही नजरअंदाज करना शुरू कर दिए। इसी वजह से जब जेपी नड्डा ने लोकसभा चुनाव के वक्त बोल दिया था कि बीजेपी को अब संघ की जरूरत नहीं, तीखी प्रतिक्रिया भी आई थी और फिर सफाई तक देनी पड़ गई। जानकार भी मानते हैं कि बीजेपी और संघ के रिश्ते बहुत अच्छे दौर से नहीं गुजर रहे हैं, कई मौकों पर तो पीएम मोदी की जरूरत से ज्यादा आत्मनिर्भर वाली छवि भी संघ की विचारधारा के खिलाफ चली जाती है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अरविंद केजरीवाल ने आग में घी डालने का काम किया है। जो रिश्ते पहले से ही तनावपूर्ण चल रहे हैं, उनमें सवालों की बौछार के जरिए और ज्यादा असहज करने का काम किया गया है। यहां भी बीजेपी के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती इसलिए बन जाती है क्योंकि वो संघ के साथ अपने रिश्तों पर कभी भी खुलकर नहीं बोलती। वो यह नहीं दिखाना चाहती कि संघ के इशारों पर ही उसकी सरकार चल रही है। ऐसे में जब केजरीवाल इस तरह से सवाल दाग देते हैं, जवाब ना बीजेपी के पास होता और ना ही संघ के पास।
जब केजरीवाल ने योगी के इस्तीफे का बनाया माहौल
अब अरविंद केजरीवाल के पुराने बयान बताते हैं कि वे जानबूझकर इस रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं, उन्हें खुद सियासी रूप से इसका फायदा नहीं हो रहा है, लोकसभा चुनाव इसका सबसे बड़ा प्रमाण है, लेकिन प्रमाण यह भी बीजेपी को इसका नुकसान हुआ है। असल में चुनाव के वक्त जब केजरीवाल ने 2 महीने में सीएम योगी के इस्तीफे की बात कही थी- इससे दो बड़े नुकसान पार्टी को हुए थे। पहला नुकसान तो यह रहा कि इसने केशव प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के हौसले बुलंद कर दिए, इसका भी प्रमाण कुछ दिन पहले ही यूप की सियासत में दिख चुका है जब सरकार बनाम संगठनकी बहस छिड़ गई थी। दूसरा नुकसान पार्टी को यह रहा कि केजरीवाल के बयान ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को ही कन्फ्यूजन में डालने का काम किया।
मोदी के इस्तीफे के पीछे पड़े केजरीवाल?
ऐसे आरोप तो चुनाव के वक्त ही लग रहे थे कि प्रत्याशियों को चुनते वक्त सीएम योगी की पसंद-नापसंद को नजरअंदाज किया गया, ऐसे में जब मन में शक का बीज डाला गया कि योगी से 2 महीने में सीएम कुर्सी छीन ली जाएगी, एक वर्ग ने इस पर भरोसा भी किया। इसी तरह से राष्ट्रीय स्तर पर भी केजरीवाल ने इसी गेम प्लान को अंजाम तक पहुंचाने का काम किया। बीजेपी के नियम को ही उन्होंने अपनी ताकत बनाया और हमला बोल दिया कि पीएम मोदी 75 साल के हो रहे हैं, यानी कि उनका रिटायरमेंट होने वाला है और अगला पीएम अमित शाह को बना दिया जाएगा।
क्या बीजेपी में शुरू हो जाएगी बगावत?
अब इस प्रकार का बयान भी कार्यकर्ताओं को बस बांटने के लिए दिया गया है। अगर मोदी बनाम शाह की ही सियासी जंग शुरू करी गई तो पार्टी में फूट पड़ना तय है। अब केजरीवाल इसमें ज्यादा सफल होते तो नहीं दिखे, लेकिन उन्होंने अपनी इस रणनीति को कायम रखा है। अब उनकी तरफ से आडवाणी का जिक्र कर पूछा गया कि पीएम मोदी से इस्तीफा क्यों नहीं मांगा जा रहा? यह बात मायने रखती है क्योंकि अरविंद केजरीवाल अब खुलकर बीजेपी के अंदर बगावत का बिगुल फूंक रहे हैं, वे जानते हैं कि बीजेपी को हराना है तो उसे अब अंदरूनी रूप से कमजोर करना जरूरी है।