दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार हो चुके हैं, कथित शराब घोटाले में उनके खिलाफ ईडी ने बड़ा एक्शन लिया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद से ही राजधानी विरोध का नया अड्डा बन चुकी है। एक तरफ आम आदमी पार्टी के तमाम कार्यकर्ता इस समय जमीन पर हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी दूसरे कारणों से प्रदर्शन करती दिख रही है। एक बहुत बड़ा विवाद भी इस गिरफ्तारी वाले विवाद के साथ जुड़ा हुआ है।
असल में अरविंद केजरीवाल ने दावा किया है कि वे जेल से भी सरकार चलाने वाले हैं, वे किसी भी कीमत पर इस्तीफा नहीं देंगे। उनका इस्तीफा ना देना ही इस समय एक बड़ा विवाद बना हुआ है। सीएम तो पहले भी गिरफ्तार हुए हैं, लेकिन पहले ट्रेंड ये देखा गया है कि वो इस्तीफा देते हैं, उनकी जगह कोई दूसरा सीएम बनता है। लेकिन अरविंद केजरीवाल एक अलग तरह की सियासत को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं। वे जेल में रहकर भी सरकार चलाने का दावा कर रहे हैं।
इसी कड़ी में अभी तक केजरीवाल द्वारा जल मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए दो आदेश भी जारी किए गए हैं। उन्हीं आदेशों के दम पर आतिशी और सौरभ भारद्वाज दावा कर रहे हैं कि केजरीवाल सिर्फ दिल्ली की जनता के बारे में सोचते हैं, उनके लिए अपनी परेशान कुछ नहीं है। वे निस्वार्थ भाव से बस जनता की सेवा कर रहे हैं। अब सवाल ये उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल जेल में बैठकर आदेश जारी कर सकते हैं? क्या जेल से सरकार चलाई जा सकती है?
अब सच्चाई ये है कि संविधान निर्माताओं ने कभी इस स्थिति के बारे में नहीं सोचा था, किसे पता था कि कोई नेता आएगा और दावा करेगा कि जेल में भी सीएम रहते हुए वो सरकार चला सकता है। इसी वजह से संविधान इस बात कहीं जिक्र तक नहीं है कि कोई जेल में रहकर सरकार चला सकता है या नहीं। लेकिन एक बड़ा पहलू ये है कि किसी भी राज्य का सीएम अपनी मर्जी से फैसले नहीं ले सकता है, उसे मंत्रियों की सलाह लेनी होती है, कई फैसलों में सभी को साथ लेकर चलना भी पड़ता है। यही वो पहलू है जो इस समय केजरीवाल को मुश्किल में डाल सकता है।
असल में किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री की कुछ जिम्मेदारियां होती हैं, संविधान ने उन जिम्मेदारियों को तय कर रखा है। अगर वो जिम्मेदारियां पूरी नहीं होंगी तो उस शख्स का सीएम बनने का कोई फायदा नहीं है। मंत्री परिषद की जिम्मेदारियों की नजर से एक मुख्यमंत्री के पास ये ताकत होती है-
अपनी सरकार में किसे मंत्री रखना है, ये फैसला सीएम के पास रहता है। कोई भी सीएम राज्यपाल को सुझाव देता है कि किसे वो अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहता है। इसी तरह जो मंत्रिमंडल विस्तार देखने को मिलते हैं, या फिर जिस तरह से कई बार मंत्रियों के विभाग बदल दिए जाते हैं, ये काम भी एक सीएम का ही रहता है। किसी मंत्री को अगर इस्तीफा दिलवाना हो तो ये ताकत भी मुख्यमंत्री अपने पास रखते हैं। कौन सा मंत्रालय क्या काम कर रहा है, उस मंत्रालय में मंत्रियों का कैसा प्रदर्शन है, ये सबकुछ भी एक सीएम देखता है।
अब सबसे बेसिक सवाल यही आता है कि अगर अरविंद केजरीवाल जेल में हैं, वे ऊपर बताई गईं कोई भी जिम्मेदारी कैसे निभा सकते हैं? ईडी ने साफ कहा है कि सीएम केजरीवाल को कोई पेन नहीं दिया गया है, कोई कागज उनके पास नहीं है और मोबाइल फोन होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है। ऐसे में जब वे पूरी तरह आइसोलेट चल रहे हैं, उनके कोई भी आदेश सरकार तक कैसे पहुंच सकते हैं? इस सवाल को ही बीजेपी भी अपने विरोधा का आधार बना रही है।
वैसे अरविंद केजरीवाल का जेल से ही सरकार चलाना इसलिए भी मुश्किल लगता है क्योंकि विधानसभा के पटल पर भी कई ऐसे फैसले होते हैं जिनमें सीएम का सीधा हस्तक्षेप रहता है। असल में जब भी किसी विधानसभा सदन को बुलाना होता है या फिर जब उसे स्थगित करना होता है, उसमें सीएम का सुझाव मायने रखता है। इसी तरह जब भी कोई नई योजना का ऐलान पटल से किया जाता है, ये काम भी सीएम द्वारा होता है। अब सवाल वही, केजरीवाल जब अंदर, वे कैसे ये सारी जिम्मेदारियां निभा पाएंगे?
अब एक समझने वाली बात ये भी है कि सीएम जब कोई आदेश जारी करते हैं तो उनका हस्ताक्षर होना जरूरी होता है। इस समय सौरभ भारद्वाज और आतिशी ने जो आदेश मीडिया के सामने दिखाए, दोनों पर ही केजरीवाल के सिग्नेचर नहीं थे। लेकिन एक बड़ा संदेश जरूर लिखा हुआ था, ऐसे में क्या सही केजरीवाल ने कोई लेटर लिखा भी था या नहीं?
दूसरी संभावना अभी कम इसलिए लगती है क्योंकि ईडी ने खुद साफ कर दिया है कि उनकी तरफ से कोई कागज या पैन नहीं दिया गया है। ऐसे में सवाल मन में आता है कि आखिर केजरीवाल के हस्ताक्षर वाले कागज सौरभ भारद्वाज और आतिशी के हाथ में कैसे आ गए हैं? क्या किसी स्तर पर कोई फर्जीवाड़ा हुआ है, क्या किसी और ने सीएम के साइन कर दिए? इन सवालों के जवाब खोजना जरूरी है क्योंकि इस मामले में चल रही चुप्पी आम आदमी पार्टी को और ज्यादा मुश्किलों में डाल सकती है।
जानकार यहां तक मानते हैं कि आम आदमी पार्टी अभी हर कीमत पर जनता के बीच में एक सहानुभूति की लहर शुरू करना चाहती है। उसके लिए ये दिखाना जरूरी है कि अरविंद कजेरीवाल हर मुश्किल में भी बस दिल्ली की जनता के बारे में सोचते हैं। ऐसे में संभावना है कि इस प्रकार के आदेशों के जरिए केजरीवाल की ही ब्रान्डिंग करने की कोशिश की जाए। लेकिन अगर ये किसी रणनीति का हिस्सा है तो आम आदमी पार्टी का और ज्यादा मुश्किल में फंसना तय है क्योंकि ईडी ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। जांच करनी है कि क्या केजरीवाल ने सही में कोई आदेश जारी किया या नहीं, सवाल ये क्या केजरीवाल के नाम पर आतिशी और सौरभ भारद्वाज ने अपनी तरफ से ही आदेश जारी कर दिया?