अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और उनकी जगह पार्टी के किसी नए नेता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान तो कर दिया है लेकिन इस ऐलान के बाद कई आशंकाएं भी पैदा होती हैं। मसलन यह कि यह आम आदमी पार्टी जिस नए नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी, क्या वह अगले विधानसभा चुनाव के बाद अगर दिल्लीं में पार्टी की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार होगा?
पिछले दो चुनावों में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में प्रचंड जीत दर्ज की थी। 70 सीटों वाली दिल्ली में 2015 में आप को 67 और 2020 में 62 सीटों पर जीत मिली थी।
यह सवाल यूं ही हवा में नहीं खड़ा हुआ है बल्कि इस सवाल की बुनियाद बेहद मजबूत है क्योंकि पिछले 10 सालों में ही उत्तर भारत के दो बड़े राज्यों में ऐसा देखने को मिला है जब दो मुख्यमंत्रियों ने अपनी कुर्सी से इस्तीफा दिया और पार्टी के नेताओं को सरकार का मुखिया बनाया लेकिन बाद में इन नेताओं ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया।
नीतीश ने दिया इस्तीफा, मांझी को सौंपी कुर्सी
पहला वाकया है उत्तर भारत की राजनीति को दिशा देने वाले राज्य बिहार का। बिहार में 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था और उसे सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी। नीतीश कुमार ने पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी के दलित नेता जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था। लेकिन 10 महीने बाद जब जेडीयू ने उनसे 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस्तीफा देने के लिए कहा तो जीतन राम मांझी भड़क गए।
मांझी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया। इसे लेकर जेडीयू के अंदर घमासान के हालात बन गए जिसके बाद पार्टी ने मांझी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। फरवरी 2015 में मांझी ने इस्तीफा दे दिया और उनके और नीतीश कुमार के रास्ते हमेशा के लिए अलग हो गए।
मांझी ने बनाई अलग पार्टी
इसके बाद मांझी ने अपनी अलग पॉलिटिकल पार्टी बनाई जिसका नाम हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) रखा। वर्तमान में मांझी की पार्टी एनडीए गठबंधन का हिस्सा है लेकिन नीतीश कुमार के लिए किसी और नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने का अनुभव अच्छा नहीं रहा।
हेमंत ने चंपई सोरेन को दी जिम्मेदारी
कुछ ऐसा ही उत्तर भारत के एक और राज्य झारखंड में भी देखने को मिला। झारखंड में जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने भूमि घोटाले के मामले में गिरफ्तार कर लिया था, तब उन्होंने पार्टी के ही बड़े आदिवासी चेहरे चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया था।
लेकिन जब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए तो झामुमो ने चंपई सोरेन से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कहा। चंपई सोरेन ने जुलाई में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी। चंपई सोरेन 2 फरवरी को मुख्यमंत्री बने थे और वह 5 महीने तक इस पद पर रहे।
चंपई ने मुख्यमंत्री की कुर्सी तो छोड़ दी थी लेकिन राजनीतिक हलकों में लगातार इस बात को कहा जा रहा था कि चंपई सोरेन पार्टी से नाराज हैं। यह बात तब सच साबित हुई जब चंपई पिछले महीने बीजेपी में शामिल हो गए।
चंपई का बीजेपी में शामिल होना निश्चित रूप से झामुमो के लिए एक झटका रहा क्योंकि राज्य में बहुत जल्द विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं।
बिहार और झारखंड के इन उदाहरणों से यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि अगर आम आदमी पार्टी के सामने भी ऐसे ही हालात बने तो क्या होगा? अगर 2025 के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी फिर से सत्ता में लौटी तो क्या वह नेता इतनी आसानी से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देगा जिसे अगले कुछ दिनों में पार्टी मुख्यमंत्री बनाने वाली है। क्या उस नेता के समर्थक इस बात की मांग नहीं करेंगे कि उनके नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने दिया जाए। अगर ऐसे हालात आम आदमी पार्टी के अंदर बने तो निश्चित रूप से पार्टी के लिए ऐसा फैसला मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
ताकत का खेल है राजनीति
यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है कि राजनीति ताकत का खेल है और राजनेता बहुत महत्वाकांक्षी होते हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी राज्य सरकार में सबसे बड़ी होती है और मुख्यमंत्री बनने के बाद नेता का कद बढ़ जाता है। ऐसे हालात में स्वाभाविक है कि कोई भी नेता आसानी से इस कुर्सी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होगा, बिहार और झारखंड के उदाहरण इस बात को और मजबूत करते हैं।