मनीष सिसोदिया को जमानत मिलने के बाद अरविंद केजरीवाल को भी हिम्मत आ गई है, उन्हें उम्मीद है कि वे भी जल्द बाहर आ जाएंगे। इसी कड़ी में उनकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि उन्हें जमानत मिले क्योंकि सीबीआई की गिरफ्तारी पूरी तरह गलत है। असल में दिल्ली हाई कोर्ट से भी ऐसी ही अपील दिल्ली के सीएम कर चुके हैं, लेकिन वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली। लेकिन अब जब मनीष सिसोदिया रिहा हो चुके हैं, केजरीवाल की उम्मीदें भी बढ़ी हैं।

Excise Scam: सिसोदिया को कैसे जमानत?

जानकारी के लिए बता दें कि मनीष सिसोदिया को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि ईडी द्वारा आठ बार आरोप पत्र तो दायर किया गया, लेकिन उनकी तरफ से एक बार भी ट्रायल शुरू नहीं हुआ। कोर्ट का साफ मानना था कि अगर आप किसी को आरोपी मानते हैं, तो उसके खिलाफ ट्रायल शुरू होने में इतनी देरी कैसे। कोर्ट ने सिसोदिया की सुनवाई के दौरान इस बात पर भी जोर दिया था कि ट्रायल में हो रही देरी के लिए पूर्व डिप्टी सीएम को जिम्मेदार नहीं बताया जा सकता।

जमानत पर बाहर, क्या फिर से डिप्टी सीएम बन सकते हैं मनीष सिसोदिया?

केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से क्या आस?

सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया था कि सिसोदिया की तो जो भी याचिकाएं थीं, वो सिर्फ पत्नी से मिलने के लिए थीं। निचली अदालत को इस बात पर ध्यान देना चाहिए था और उसी आधार पर आप नेता को जमानत भी दी जानी चाहिए थी। अब इसी वजह से अरविंद केजरीवाल को भी लगता है कि उन्हें सीबीआई केस में जमानत मिल जाएगी। सीबीआई ने भी केजरीवाल के खिलाफ ट्रायल शुरू नहीं किया है, निचली अदालत ने उनकी जमानत को भी अस्वीकार किया है, ऐसे में राहत की उम्मीद उन्हें लग रही है।

आम आदमी पार्टी के लिए केजरीवाल जरूरी

यह अलग बात है कि सीबीआई दावा करती है कि उनके पास केजरीवाल के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं, उन्होंने तो इस पूरे कथित घोटाले में सीएम को किंगपिन बता रखा है। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट राहत देता है या झटका, इस बात का इंतजार करना पड़ेगा। आम आदमी पार्टी तो जरूर चाहती है कि दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उनके सबसे बड़े नेता बाहर आ जाएं। उस स्थिति में पार्टी के लिए रणनीति बनाने से लेकर प्रचार करना खासा आसान हो जाएगा। कई राज्यों में दूसरी पार्टियों के साथ बातचीत करना भी सरल रह सकता है।

शराब घोटाले की पूरी कहानी सरल भाषा में

वैसे अगर कथित शराब घोटाले की बात करें तो इस वजह से ही दिल्ली में सारा सियासी घमासान देखने को मिला है। असल में तीन साल पहले 17 नवंबर 2021 को राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने नई शराब नीति लागू कर दी थी। उस नई नीति के मुताबिक तब दिल्ली को कुल 32 जोन में बांटा गया और कहा गया कि आप हर जोन में 27 शराब की दुकानें खोल सकते हैं। अगर इसी आंकड़े के हिसाब से टोटल किया जाए तो पूरी दिल्ली में 849 शराब की दुकानें खोलने की तैयारी थी। एक बड़ा बदलाव ये होने वाला था कि जो भी शराब की दुकाने खुलनी थीं, वो सारी प्राइवेट सेक्टर की थीं, सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं रहने वाला था। दूसरे शब्दों में जिस शराब करोबार में पहले सरकारी की हिस्सेदारी रहती थी, नई नीति के तहत उसे ही खत्म कर दिया गया।

नई शराब नीति से क्या होने वाला था?

इसे और आसानी से ऐसे समझा सकते हैं कि नई नीति लागू होने से पहले तक दिल्ली में शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी रहती थीं, वहीं 40 फीसदी प्राइवेट द्वारा ऑपरेट होती थीं। लेकिन नई नीति के बाद 100 फीसदी दुकानें प्राइवेंट करने की बात हुई थी। अब केजरीवाल सरकार ने अनुमान ये लगाया था कि इस नीति के बाद 3500 करोड़ का सीधा फायदा हो सकता है। लेकिन अनुमान के मुताबिर नहीं हो सका और सरकार विवादों में फंसती चली गई।