सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में चल रहे राजनीतिक संघर्ष के बारे में गुवाहाटी हाईकोर्ट के कुछ आदेशों से संबंधित याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंप दिया है। न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की पीठ ने कहा कि यह मामला राज्यपाल, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अधिकारों के सांविधानिक प्रावधानों से संबंधित है। इसलिए इस पर वृहद पीठ के विचार करने की आवश्यकता है।

कांग्रेस के 14 विद्रोही विधायकों और भाजपा विधायकों द्वारा विधानसभा अध्यक्ष के पद से हटाए गए नबम रेबिया, उपाध्यक्ष और राज्यपाल के वकील शीर्ष अदालत की पीठ के इस सुझाव से सहमत थे कि मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया जाए। जजों ने जैसे ही कहा कि वे इस मामले को वृहद पीठ को सौंप रहे हैं, विभिन्न पक्षों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील फली नरिमन, कपिल सिब्बल और हरीश साल्वे सहित अनेक वरिष्ठ वकील तुरंत ही प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अदालत पहुंचे और उनसे इस मामले पर विचार के लिए संविधान पीठ बनाने का अनुरोध किया। इन सभी का कहना था कि यह मामला बहुत संवेदनशील है और इस पर जल्द फैसला होना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने उन्हें इस मामले में जल्द फैसला देने का आश्वासन दिया। शीर्ष अदालत ने बुधवार को ही अपने आदेश में कहा था कि राज्य विधानसभा की कार्यवाही 18 जनवरी तक नहीं होगी। पीठ ने रेबिया को हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक आदेश के खिलाफ दायर याचिका वापस लेने की भी अनुमति दे दी थी। रेबिया ने राज्यपाल और उपाध्यक्ष के विभिन्न आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उनका आरोप था कि हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश ने न्यायिक पक्ष की ओर दायर उनकी अर्जी को त्रुटिपूर्ण तरीके से अस्वीकार कर दिया था। उन्होंने न्यायमूर्ति बीके शर्मा को भी इस मामले की सुनवाई से अलग रखने का अनुरोध किया था।

रेबिया को कांग्रेस के 14 विद्रोही विधायकों, जिन्हें अध्यक्ष ने अयोग्य करार दे दिया था और भाजपा विधायकों ने 16 दिसंबर को ईटानगर में एक सामुदायिक कक्ष में उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में संपन्न विधानसभा के सत्र में अध्यक्ष पद से हटा दिया था। उपाध्यक्ष ने रेबिया को अध्यक्ष पद से हटाने से पहले कांग्रेस के विद्रोही विधायकों को अयोग्य करार देने वाला आदेश भी रद्द कर दिया था। बाद में राज्यपाल और उपाध्यक्ष के विभिन्न आदेशों को रेबिया ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।