कांग्रेस पर संसद के एक के बाद एक सत्रों में कामकाज बाधित करने की रणनीति बनाने का आरोप लगाते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को कहा कि पार्टी को इस बात का अफसोस होना चाहिए कि असंगत और तर्कहीन रवैया संस्थाओं को नुकसान पहुंचा रहा है। वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को पारित करने पर कांग्रेस के सहमति नहीं जताने के संबंध में जेटली ने फेसबुक पर ‘स्ट्रे थॉट्स आफ्टर द विंटर सेशन’ शीर्षक से एक टिप्पणी में लिखा कि क्या पिछले साल बजट सत्र से जीएसटी में देरी करा के देश को नुकसान नहीं पहुंचाया गया।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भारतीय लोकतंत्र के प्रारंभिक वर्षों में स्वस्थ मिसाल पेश करने का श्रेय देते हुए जेटली ने कहा कि कांग्रेस पार्टी को नियंत्रित करने वाली मौजूदा पीढ़ी अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित परंपराओं को कमजोर करने के लिए इतिहास में जगह पाएगी। बिना चर्चा के आखिरी दिन अहम विधेयकों को पारित करना कितना उचित है? आंकड़ों के हिसाब से तो हमने कानून पारित कर लिया। लेकिन क्या संसद ने कानून में अपनी सोच लगाई?
संसद के शीतकालीन सत्र पर टिप्पणी करते हुए वित्त मंत्री ने लिखा कि संसद में प्रदर्शन भारत में कोई नई बात नहीं है और पहले भी गंभीर मामलों में कामकाज बाधित करने के उदाहरण रहे हैं। लेकिन पिछले दो सत्रों से कांग्रेस पार्टी का स्पष्ट रुख दिखाई दिया है कि संसद में कामकाज नहीं होने दिया जाएगा। कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने संसद में लगातार कामकाज बाधित रखने के उनके नेताओं के फैसले पर निजी तौर पर बेबसी जताई है। कांग्रेस पार्टी के लिए यह प्रश्न विचारणीय है कि ‘भारत में कानून कैसे बनता है?
वित्त मंत्री ने कहा कि साल 1993 से स्थायी समिति की प्रणाली ने बहुत अच्छी तरह काम किया है। महत्त्वपूर्ण विधेयक समिति को भेजे जाते हैं जिसमें संसद के दोनों सदनों से सभी राजनीतिक दलों के सदस्य होते हैं। लेकिन राज्यसभा में इस प्रणाली को कमजोर किया गया है। सदन बार-बार प्रवर समितियों की नियुक्ति कर रहा है, स्थायी समिति के विचारों पर सवाल खड़ा कर रहा है। अगर यह चलन जारी रहा तो स्थायी समिति की सफल संस्था को नुकसान हो सकता है। स्थायी समिति ने जीएसटी विधेयक को मंजूर किया और राज्यसभा की सर्वदलीय प्रवर समिति को भेजा गया। इस समिति ने भी मानसून सत्र में विधेयक को मंजूरी दे दी थी लेकिन राज्यसभा में इसे पारित नहीं कराया जा सका।
बकौल जेटली इसलिए सरकार ने दिवाला कानून पर अध्ययन के लिए एक संयुक्त समिति का वैकल्पिक रास्ता चुना। विधेयक को स्थायी समिति में भेजे बिना पारित कराने या उसे धन विधेयक (मनी बिल) की परिभाषा के दायरे में उचित रूप से बैठाने के लिए कानून का मसविदा तैयार करने जैसे विकल्प सुझाए गए थे लेकिन इन्हें तरजीह नहीं दी गई। वित्त मंत्री ने लिखा- कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व को गंभीरता से इस बात पर विचार करना चाहिए कि संसद में काम करने का उनका असंगत और तर्कहीन रवैया संस्थाओं को नुकसान पहुंचा रहा है। संसदीय लोकतंत्र विभिन्न राजनीतिक विचारों, क्षेत्रों, राज्यों, समुदायों और वर्गों के साथ संसद में निर्णय लेने की प्रक्रिया में रास्ता तलाशने में भारत की सर्वश्रेष्ठ ताकत रहा है।