एक्ट्रेस यामी गौतम की फिल्म आर्टिकल 370 बॉक्स ऑफिस पर छप्परफाड़ कमाई कर रही है। कहनो को इसकी रिलीज को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, लेकिन जैसा माहौल दिखाई पड़ रहा है, फिल्म सफलता के झंडे गाड़ने वाली है। वैसे भी बॉलीवुड में जब भी सत्य घटनाओं पर आधारित कोई पॉलिटिकल फिल्म बनाई जाती है, एक धड़ा उसे इतना ज्यादा देखता है कि बॉक्स ऑफिस पर कई रिकॉर्ड्स का ध्वस्त होना लाजिमी है। अब इस बार फिल्म अनुच्छेद 370 के हटने पर बनाई गई है, दिखाया गया है कि किस तरह से कानूनी रास्ता अपनाने से लेकर कूटनीति चतुराई दिखाते हुए मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर का इतिहास हमेशा के लिए बदल दिया गया।
अब फिल्म मेकर्स ने तो साफ कहा था कि हमने ये फिल्म सत्य घटनाओं से प्रेरित जरूर रखी है, लेकिन कई ऐसे भी सीन्स हैं जहां पर क्रिएटिव लिबर्टी ली गई, यानी कि इसे पूरा सत्य नहीं माना जा सकता, अगर कोई ये सोचे कि इस फिल्म के जरिए उन्हें आर्टिकल 370 को लेकर सारी जानकारी मिल जाएगी, तो ये बेइमानी माना जाएगा। अब मेकर्स ने तो पूरा सच नहीं बताया है, लेकिन हमे वो क्रोनोलॉजी पता है जिसने आर्टकिल 370 को हटाने का काम किया था। रील की दुनिया से बाहर निकाल रीयल घटनाएं आपको बताने का काम करते हैं-
2014 से शुरू हुई कहानी
साल 2014 में सत्ता में बीजेपी काबिज तो हुई ही थी, जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव संपन्न हुए थे। उस चुनाव में पीडीपी को 28, बीजेपी को 25, एनसी को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं। बहुमत किसी के पास नहीं था, फारूक की पार्टी महबूबा के साथ जाने को तैयार नहीं थी। ऐसे में कई दिनों तक असमंजस की स्थिति बनी रही। किसी को नहीं पता था कि जम्मू-कश्मीर का भविष्य क्या रहने वाला है। यहां समझने वाली बात ये है कि बीजेपी का जो संकल्प पत्र था, उसमें लिखा था कि अनुच्छेद 370 को खत्म करना है। जम्मू-कश्मीर में क्योंकि कभी उसकी सरकार नहीं बनी, ये करना मुश्किल रहा।
ऐसा गठबंधन जिसकी कल्पना नहीं की
लेकिन साल 2014 में ये मौका बीजेपी के पास आ गया था। उस समय सरकार सामने से तो इसका जिक्र नहीं कर रही थी, लेकिन अंदरखाने चर्चा तेज थी। पहली प्राथमिकता ये थी कि जम्मू-कश्मीर में किसी तरह सरकार बनाई जाए। सरकार बनाने के लिए बीजेपी, पीडीपी से हाथ मिलाने को राजी हो जाती है। मार्च के महीने में कई दौर की बातचीत के बाद जम्मू-कश्मीर में एक ऐसा गठबंधन बनता जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। मुफ्ती मोहम्मद सईद सीएम तो बीजेपी की तरफ से निर्मल कुमार सिंह को डिप्टी सीएम बनाया गया।
अब बीजेपी का संकल्प 370 को खत्म करना, पीडीपी का संकल्प- पाकिस्तान से शांति के लिए बातचीत और अलगाववादियों के साथ भी संवाद स्थापित। कहने को दोनों ही पार्टियों ने एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया, लेकिन शुरुआत से ही दिक्कते चलती रहीं। किसी भी मुद्दे पर सहमति नहीं बन रही थी। महबूबा को रमजान के महीने में सीजफायर चाहिए था, बीजेपी तैयार नहीं थी। फिर भी लागू किया गया और आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी हो गई। बीजेपी को 370 हटाना था, पीडीपी किसी भी सूरत में उसे बचाने पर लगी हुई थी। पत्थरबाजों पर पीडीपी को रहम करना था, बीजेपी और सख्त एक्शन की मांग कर रही थी।
बुरहान वानी का मरना और 370 की रूपरेखा
इस सबके ऊपर 8 जुलाई, 2016 को हिजबुल के कमांडर बुरहान वानी को मौत के घाट उतार दिया गया। बीजेपी की नजर आतंकी, पीडीपी की नजर में कश्मीरी युवा और इसी मतभेद ने घाटी में आग लगा दी। सात महीनों तक हिंसा का दौर चलता रहा, कर्फ्यू लगाना पड़ा और 84 लोगों की मौत हो गई। 1990 की मिलिटेंसी के बाद कश्मीर ने फिर हिंसा का भयंकर दौर देखा। यानी कि इस गठबंधन ने कश्मीर की भलाई में तो क्या ही किया, लेकिन उस एक असमंजस की स्थिति ने कश्मीर में हालात और ज्यादा तनावपूर्ण बना दिए थे।
ये वो वक्त था जब बीजेपी और पीडीपी के बीच में दूरियां और ज्यादा बढ़ चुकी थीं, अलग होने के बजाय कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था। ऐसे में 40 महीने बाद 19 जून 2018 को बीजेपी ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। अब इस इवेंट को 370 के नजरिए से समझना जरूरी है। कहने को उस समय मीडिया के सामने सिर्फ चुनिंदा कारणों की चर्चा चल रही थी, लेकिन गठबंधन टूटने की एक बड़ी वजह अनुच्छेद 370 भी था।
महबूबा से गठबंधन टूटा, सरकार की मंथा पता चली
बीजेपी ये बात समझ चुकी थी कि अगर पीडीपी के साथ गठबंधन में रहा गया तो उनका असल संकल्प कभी पूरा नहीं हो पाता। जानकार मानते हैं कि गठबंधन टूटना अनुच्छेद 370 के खात्मे के लिहाज से एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट था। ऐसा इसलिए क्योंकि गठबंधन खत्म होने के बाद गवर्नर रूल लगा दिया गया था। सत्यपाल मलिक को राज्यपाल बनाया गया और उन्होंने 23 अगस्त को अपना पद भी संभाल लिया। अब समझने वाली बात ये थी कि गर्वनर रूल को भी 6 महीने से ज्यादा एक्सटेंड नहीं किया जा सकता था, ऐसे में 19 दिसंबर, 2018 को वो खत्म कर दिया गया और जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा।
फैक्स मशीन का खराब होना और राष्ट्रपति शासन
अब एक बात समझने वाली है, राष्ट्रपति शासन लगने से पहले सत्यपाल मलिक ने एक बहुत बड़ा काम किया था। उनकी तरफ से 21 नवंबर को जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को भंग कर दिया गया था। यहां गौर करने वाली बात ये है कि पीडीपी और एनसी मिलकर सरकार बनाना चाहते थे, सबकुछ फाइनल हो चुका था, बस खेल हुआ। राज्यपाल के दफ्तर की फैक्स मशीन खराब हो गई और दोनों पार्टियों की चिट्ठी गर्वनर तक नहीं पहुंची। अब ये जो फैक्स मशीन वाला कांड था, इसे लेकर अलग-अलग राय हैं। महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला इसे एक बड़ी साजिश का हिस्सा मानते हैं जिससे सरकार ना बन सके।
वहीं अगर मोदी सरकार की रणनीति के लिहाज से देखें, अगर पीडीपी-एनसी की सरकार बन जाती तो 370 खत्म करने का संकल्प पूरा ही नहीं हो पाता। इसी वजह से कुछ लोग मानते हैं कि जानबूझकर एक बड़ी रणनीति के तहत सत्यपाल मलिक द्वारा विधानसभा को भंग करवाया गया और बाद में राष्ट्रपति शासन लग गया। ये वो समय था जब लोकसभा चुनाव करीब था और सरकार को पूरा भरोसा था कि फिर सत्ता वापसी होने वाली है। ऐसे में अंदरखाने उस बड़े मिशन के लिए तैयारियां शुरू कर दी गई थीं।
कानूनी किताबों को चाटना और सबसे बड़ी चालाकी
अनुच्छेद 370 को कैसे खत्म किया जाए, इस पर जोर दिया जा रहा था। कई अधिकारियों का दिमाग इस पर लगा हुआ था। सारी कानून की किताबें पढ़ी जा रही थीं, हर कीमत पर एक सुरक्षित और मजबूत फैसला देने पर फोकस था। अब ऐसा हुआ भी क्योंकि सत्ता वापसी के बाद ही मोदी सरकार ने अपनी प्राथमिकता 370 को खत्म करना ही बनाई। एक तरफ तो कश्मीर में लगातार बड़े अधिकारी और नेताओं के दौरे हुए, दूसरी तरफ वहां पर सुरक्षा मुस्तैद करने के लिए भी कदम उठाए गए।
घाटी में बढ़ते सुरक्षाबल और ‘गुमराह राजनीति’
एक समय बाद घाटी में अचानक से सुरक्षाबलों की तैनाती भी बढ़ती जा रही थी। उस समय क्योंकि पाकिस्तान के साथ भी तनाव की स्थिति थी, ऐसे में सभी को लगा कि पड़ोसी से निपटने के लिए ये सारी तैयारी की जा रही हैं। लेकिन असल कारण वो था जो 5 अगस्त, 2019 को पूरे देश के सामन आया। अब सरकार ने 370 को खत्म करने के लिए काफी दिमाग लगाया, कई कानूनी जानकरों से बात की, कानून मंत्रालय तक से घंटों का मंथन हुआ, तब जाकर कुछ बदलाव कर ये बड़ा फैसला लिया गया।
अब अगर ध्यान से समझने की कोशिश करें तो 5 अगस्त को राष्ट्रपति का एक आदेश आया था। उस आदेश में जम्मू-कश्मीर को लेकर एक संशोधन किया गया। उस संशोधन के तहत अभी तक जम्मू-कश्मीर में हमे जिसे संविधान सभा मान रहे थे, उसे बदलकर विधानसभा का दर्जा दे दिया गया। इसके ऊपर ये भी कहा गया कि राज्य की सरकार राज्यपाल के समकक्ष होगी। अब यहां भी एक बड़ा खेल था, कह सकते हैं कि जानबूझकर ये बदलाव किया गया था।
कैसे बदला कानून और रचा इतिहास?
असल में जम्मू-कश्मीर में तो राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था, ऐसे में सवाल ये था कि राज्यपाल राय किससे लेते, वहां तो उस समय किसी की सरकार ही नहीं थी। सामान्य स्थिति में तो विधानमंडल की राय माननी पड़ जाती, लेकिन उस स्थिति में सारी ताकत फिर केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के पास ही आ गई। इसी वजह से राष्ट्रपति ने एक आदेश में कह दिया कि भारतीय संविधान के जितने भी प्रावधान है वो जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे। इस तरह से अनुच्छेद 370 खत्म हुए बिना ही निरस्त कर दिया गया। इसके साथ-साथ 35ए के प्रावधान भी निष्क्रिय हो गए।